Liz Truss resigns : लिज़ ट्रस ने सिर्फ 45 दिनों के कार्यकाल के बाद प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. इस्तीफा देते हुए उन्होंने जो कुछ कहा उसका लुब्ब-ए-लुबाब यह था कि ब्रिटेन की जनता ने उन्हें तब चुना जब ब्रिटेन गहरे आर्थिक और अंतर्राष्ट्रीय अस्थिरता से जूझ रहा था. ऐसे में वहां की जनता को उम्मीद थी कि लिज़ ट्रस उन्हें इन हालातों से उबारेंगी. ब्रिटिश सरकार ने उन्हीं वादों को ध्यान में रखते हुए तेल और गैस की कीमतों में कटौती की. कम टैक्स और उच्च विकास वाली अर्थव्यवस्था का एक दृष्टिकोण निर्धारित किया. इन सबके बावजूद वह अपनी ज़िम्मेदारी निभाने में असफल रहीं. जिस मैन्डेट के तहत उनका चुनाव हुआ था उसे वो पूरा नहीं कर सकेंगी और इसलिए वह अपने पद से इस्तीफ़ा दे रही हैं.
भारत में इसी हवाले से कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी भी अपने वादे निभाने में असफल रहे हैं, इसलिए उन्हें भी इस्तीफ़ा दे देना चाहिए. कांग्रेस नेता बीवी श्रीनिवास ने लिज़ ट्रस के इस्तीफे वाला वीडियो पोस्ट करते हुए लिखा है- UK की प्रधानमंत्री अपने वादों को पूरा नही कर सकी. इसलिए उन्होंने इस्तीफा दे दिया. भारत के प्रधानमंत्री की अंतरात्मा कब जागेगी?
सवाल उठता है कि यह सवाल सिर्फ पीएम मोदी से ही क्यों? बिलकिस बनो गैंगरेप के दोषियों की फूलमालाओं से स्वागत करते हुए इन लोगों से क्यों नहीं? महिला को गाली देने वाले और बदसलूकी करने वाले श्रीकांत त्यागी के उन समर्थकों से क्यों नहीं, जो 72 दिनों बाद जेल से रिहा होने के बाद जयजयकार के नारे ऐसे लगा रहे थे मानो युद्ध जीतकर आए हों. राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से क्यों नहीं जिनके राज्य में 2021 में रेप के कुल 6337 मुकदमे दर्ज हुए हैं. एनसीआरबी की ताजा रिपोर्ट (NCRB Report) के मुताबिक ये देशभर में किसी भी राज्य में दर्ज हुए रेप के सर्वाधिक मामले हैं.
मध्यप्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान से क्यों नहीं, जहां भर्ती पूरी करने की मांग को लेकर मार्च निकाल रहे युवाओं को एमपी पुलिस ने भोपाल बॉर्डर पर ही रोक दिया. औरैया के इस युवक से क्यों नहीं जो एक दलित बुजुर्ग पर हमला कर उसे बुरी तरह ज़ख्मी कर देता? जबकि हमारे देश के पूर्व राष्ट्रपति भी दलित थे.
समाज, सिस्टम से आगे बढ़कर हम इंसान होने का मतलब भी भूलते जा रहे हैं. क्या यह सवाल हम सब से नहीं होना चाहिए. इन सब से इतर ब्रिटेन की राजनीति पर भी होगी बात...आपके अपने कार्यक्रम में जिसका नाम है मसला क्या है?
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सबसे पहले यह वीडियो देखिए... विकास बंसल नाम के एक ट्विटर यूजर ने पीएम मोदी के नौ वायदों वाली एक वीडियो बनाई है. जिसमें कालाधन वापस लाने से लेकर गंगा सफाई और 5 ट्रिलियन इकोनॉमी वाली अर्थव्यवस्था का वायदा भी शामिल है. ट्विटर यूजर इस वीडियो को शेयर कर यह बताना चाह रहे हैं कि पीएम मोदी ने जो भी वायदा किया था वो सारे सफ़ेद झूठ निकले. पहले एक बार यह वीडियो देख लीजिए...
वहीं कांग्रेस नेता बीवी श्रीनिवास ने UK की प्रधानमंत्री लिज़ ट्रस के इस्तीफे वाला वीडियो पोस्ट करते हुए, लिखा है कि भारत के प्रधानमंत्री की अंतरात्मा कब जागेगी? यानी कुल मिलाकर देखें तो उनका भी विकास बंसल वाला ही आरोप है कि पीएम मोदी कोई वायदा पूरा तो कर नहीं पाए, सो अब उनको इस्तीफ़ा दे देना चाहिए. एक बार ब्रिटेन की पीएम लिज़ ट्रस का पूरा बयान सुन लेते हैं.
सरकारों से सवाल तो किए ही जाते रहे हैं. मानव होने के नाते मेरा आपसे सवाल है कि श्रीकांत त्यागी ने ऐसा कौन सा महान काम किया था, जो उनके समर्थक जेल से रिहा होने के बाद इस तरह जयजयकारा कर रहे थे. सत्ता और पावर के इर्द-गिर्द रहने के चक्कर में आप अपने इंसान होने का फर्ज़ भी भूलते जा रहे हैं. फिर लोगों की शिकायत होती है कि उनकी बहन-बेटियां सुरक्षित नहीं है. कैसे रहेंगी सुरक्षित, जब आप बहन-बेटियों को शर्मसार करने वाले व्यक्ति के लिए ज़िंदाबाद के नारे लगाएंगे? ऐसे लोगों का समाजिक बहिष्कार क्यों नहीं होना चाहिए?
विडंबना तो यह है कि रेप के दोषी गुरमीत राम रहीम जेल से पैरोल पर बाहर आकर ऑनलाइन सत्संग करने लग जाता है. लेकिन धर्म के नाम पर लोग इतने अंधे कैसे हो सकते हैं कि वह रेप के दोषी गुरमीत राम-रहीम के ऑनलाइन सत्संग में पहुंच जाएं? इतना ही नहीं बीजेपी मेयर रेणु बाला गुप्ता राम रहीम को 'पिताजी' कह रही हैं. सोचिए इससे शर्मनाक क्या हो सकता है? क्या हमलोग ख़ुद ही क़ानून का मज़ाक नहीं बना रहे? जिसको कोर्ट ने रेप का दोषी बताया, हम उससे धर्म का पाठ पढ़ रहे हैं. एक बार करनाल की मेयर और राम-रहीम के बीच संवाद वाला यह वीडियो सुन लेते हैं.
उत्तर प्रदेश के औरैया में जाति के नाम पर एक दलित बुजुर्ग को लाठी-डंडो से पीटा जाता है. समाज बुजुर्ग को मारने से रोकता है लेकिन वह अकेला युवक पूरे समाज को ठेंगा दिखाते हुए कमज़ोर, लाचार और निहत्थे बुजुर्ग को बुरी तरह ज़ख्मी कर देता है. क्या हमें इस समाज से नैतिकता के नाते सवाल नहीं पूछना चाहिए.
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रोज़ाना भारत के किसी ना किसी हिस्से में नैतिकता की ऐसी-तैसी करने वाले करोड़ो की तादाद में लोग मिल जाएंगे. अगर यह सच नहीं है तो फिर संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरस ने भारत से क्यों कहा कि जब तक आप अपने देश के अंदर लोगों को गंभीरता से नहीं लेंगे तब तक विश्वमंच पर आपकी बात को गंभीरता से नहीं लिया जाएगा...
दरअसल गुटेरस भारत के आधिकारिक दौरे पर हैं. बुधवार को आईआईटी बॉम्बे में गुटेरस ने भारत में मानवाधिकारों को लेकर कई बातें कहीं.. उन्होंने कहा कि भारत की बात वैश्विक मंच पर तभी गंभीरता से ली जाएगी, जब वह अपने घर में मानवाधिकारों को लेकर प्रतिबद्ध रहेगा. भारत को पहले ख़ुद ही गांधी के मूल्यों पर चलने की ज़रूरत है. इसके अलावा भारत में अल्पसंख्यकों के अधिकारों को भी सुरक्षा मिलनी चाहिए.
एक तरफ नरेंद्र मोदी सरकार विश्व का नेतृत्व करने का दावा कर रही है. वहीं संयुक्त राष्ट्र महासचिव, भारत के भीतर समावेशी व्यवस्था और मानवाधिकारों को सहेजने की बात कर रहे हैं. तो क्या इसपर भी पीएम मोदी से इस्तीफ़ा मांगना चाहिए? वैसे जो लोग बिट्रेन के पीएम के इस्तीफ़े की कहानी बताकर भारत के प्रधानमंत्री मोदी से इस्तीफ़ा मांग रहे हैं. उनके लिए वहां के हालात भी बता देता हूं.
लिज़ ट्रस 6 सितंबर 2022 को प्रधानमंत्री बनी थीं. 44 दिनों बाद उन्होंने ये कहते हुए इस्तीफ़ा दे दिया कि जिस मैन्डेट के तहत उनका चुनाव हुआ था वो उसे पूरा नहीं कर सकेंगी. ऐसा माना जा रहा है कि पहले दिन से ही लिज़ ट्रस की मुश्किलें बढ़ गई थीं. जब वित्त मंत्री क्वाज़ी क्वार्टेंग ने 'मिनी बजट' की घोषणा की.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पीएम के समर्थन के बाद ही 45 अरब की टैक्स कटौती के बारे में कहा गया था. लेकिन इस फ़ैसले की वजह से बड़े पैमाने पर आर्थिक परेशानियां बढ़ने के आरोप भी लगे. हालांकि लिज़ ट्रस ने कहा कि हालात को देखते हुए "ये सही क़दम था". बाद में क्वार्टेंग को बर्ख़ास्त कर जेरेमी हंट को देश का वित्त मंत्री बनाया गया.
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नतीजा यह हुआ कि पार्टी के अन्य मंत्री खुलकर लिज़ ट्रस के विरोध में आ गए और उनके इस्तीफ़े की मांग करने लगे. यहां तक कि गृह मंत्री सुएला ब्रेवरमैन ने ये कहते हुए ट्रस सरकार से इस्तीफ़ा दे दिया कि नई सरकार जिस दिशा में जा रही है उसे लेकर वो बेहद चिंतित हैं.
सोचिए क्या हमारे देश में सरकार का कोई मंत्री यह दुस्साहस कर सकता है. क्या कोई मंत्री यह कहते हुए इस्तीफ़ा दे सकता है कि मौजूदा सरकार जिस दिशा में जा रही है, उसको लेकर वह बेहद चिंतित है. हमारे देश में पानी पी पीकर कोसने वाले विरोधी दल के नेता भी मंत्री पद मिलते ही सरकार के साथ हो लेते हैं और कहते हैं सब ठीक ठाक है.
ख़ैर एक बार बिट्रेन के भविष्य की बात कर लेते हैं. ट्रस ने इस्तीफ़ा देते हुए कहा कि जब तक नया नेता नहीं चुन लिया जाता वो कार्यकारी प्रधानमंत्री के पद पर बनी रहेंगी. बीबीसी के मुताबिक अगले सप्ताह कंज़र्वेटिव पार्टी के नेता के लिए चुनाव होने वाले हैं. ऐसे में माना जा रहा है कि लिज़ के बाद उनके प्रतिद्विंदी रहे ऋषि सुनक पीएम पद के दावेदार हो सकते हैं.
हालांकि सियासी गलियारों में पूर्व प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन को भी दोबारा से पीएम पद के लिए दावेदार माना जा रहा है. वहीं पेनी मरडॉट और रक्षा मंत्री रहे बेन वॉलेस के नाम पर भी कयास लगाए जा रहे हैं. कन्ज़र्वेटिव पार्टी के पास कुल 357 सांसद हैं, जबकि सदन की फुल क्षमता 650 की है. यानी जबतक पार्टी एकजुट है और वो चुनाव नहीं चाहती तो चुनाव नहीं होंगे.
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