देश की सियासत का रुख 2024 की ओर मुड़ चुका है...नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) को सत्ता से हटाने के लिए विपक्ष सैद्धांतिक तौर पर एकजुट होने की जरूरत को तो समझता है लेकिन हकीकत की धरातल पर हर कोई इस तथाकथित एकता में पलीता लगाते दिख रहा है. ताजा मामले की शुरुआत की है देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी (opposition party) के नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने...पहले आप इनका बयान सुनिए फिर बात को आगे बढ़ाते हैं...
राहुल गांधी ने बुधवार को मेघालय (meghalaya election) की जनसभा में टीएमसी को उसका इतिहास बताया तो अगले दिन ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी (Abhishek Banerjee) भी मैदान में कूद पड़े...उन्होंने ट्वीट कर कहा- मैं कांग्रेस नेता राहुल गांधी से आग्रह करता हूं कि हम पर हमले की जगह घमंड की सियासत पर विचार करें. आपके हिसाब से तो जब कांग्रेस ने पश्चिम बंगाल विधानसभा (west bengal assembly elections) के 2021 के चुनाव में 92 सीटों पर लड़ा, तो क्या बीजेपी की मदद की थी?
जाहिर है विपक्ष मोदी का मुकाबला तो करना चाहता है कि लेकिन न तो कांग्रेस ही विपक्ष को मजबूत होने देना चाहती है और न ही विपक्ष राहुल का नेतृत्व स्वीकार करने को तैयार है...अब एक नजर डाल लेते हैं कि हाल के दिनों में कब-कब विपक्षी एकता के प्रयास परवान नहीं चढ़ सके
विपक्षी एकता के विफल प्रयास !
बिहार में महागठबंधन की 25 फरवरी को रैली, पोस्टर में राहुल कहीं नहीं
बिहार कांग्रेस ने कहा- राहुल PM उम्मीदवार, RJD ने कहा- नीतीश बनेंगे PM
राहुल ने श्रीनगर में 'भारत जोड़ो यात्रा' खत्म की, कई विपक्षी दिग्गज रहे नदारद
तेलंगाना में KCR की रैली हुई, अखिलेश, केजरीवाल और नीतीश कुमार मौजूद
त्रिपुरा में वामदल-कांग्रेस साथ आए तो केरल में अलग-अलग चुनाव लड़ा
खुद ममता बनर्जी ने भी त्रिपुरा चुनाव अकेले लड़ने का ही दांव चला
मायावती ने भी साफ कर दिया है कि उनकी पार्टी अकेले ही चुनाव लड़ेगी
शरद पवार ही कांग्रेस के साथ दिख रहे !
देखा जाए तो केवल महाराष्ट्र के दिग्गज नेता शरद पवार (Sharad Pawar) ही कांग्रेस के नेतृत्व को स्वीकारते नजर आ रहे हैं दूसरा कोई बड़ा विपक्षी नेता राहुल की रहनुमाई स्वीकार करता नहीं दिख रहा. हकीकत तो ये है कि आंध्रप्रदेश, बिहार, तेलंगाना, ओडिशा, बंगाल, दिल्ली और पंजाब आदि राज्यों में विपक्षी एकता की दिशा और दशा ही अलग-अलग है... वहां कई नेता प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षाएं पाले हुए हैं...विपक्षी एकता की राह में यही सबसे बड़ा रोड़ा है.
कांग्रेस की असल दिक्कत ये है
दूसरी तरफ कांग्रेस के साथ दिक्कत ये है कि देश के 17 राज्यों में उसका एक भी सांसद नहीं है...लिहाजा मोलभाव के मोर्चे पर वो कमजोर है. वैसे अब आम चुनाव में 15 महीने ही बचे हैं लिहाजा विपक्षी दलों को बयानों से ऊपर उठ कर एकता के ठोस प्रयास करने पड़ेंगे.