दुनिया में भारतीय सिनेमा के दीवानों की कमी नहीं है...राजकपूर की फिल्म 'मेरा नाम जोकर' (Mera Naam Joker) ने भारत-रूस की दोस्ती बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई तो जब अटल जी के सामने पाकिस्तान का संकट आया तो उन्होंने दिलीप कुमार (Dilip Kumar) की मदद ली...'खुदा गवाह' (Khuda Gawah) फिल्म की शूटिंग के दौरान अफगानिस्तान के कबीलों ने कुछ वक्त के लिए लड़ाई ही रोक दी...
मतलब ये है कि आप ढूंढते जाइए आपको ऐसी अनंत गाथाएं मिलती जाएंगी...लेकिन क्या आपको पता है कि दुनिया को अपना दीवाना बनाने वाले भारतीय सिनेमा की शुरुआत फ्रांस से ऑस्ट्रेलिया जा रहे एक हवाई जहाज में खराबी आने की वजह से संयोगवश हुई थी...दरअसल, आज यानी 7 जुलाई का संबंध उसी ऐतिहासिक तारीख से है.
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नमस्कार मैं हूं स्वर्णिका और देश-दुनिया की ऐतिहासिक घटनाओं से आपको रूबरू कराने वाले हमारे शो झरोखा में आज हम झाकेंगे भारतीय सिनेमा के उन्हीं शुरुआती दिनों में... जब पहली बार भारत में सिनेमा से साक्षात्कार का चमत्कार हुआ था...
मोशन पिक्चर्स (Motion Pictures) का आविष्कार करने वाले फ्रांस के निवासी लुमियर ब्रदर्स (Lumiere Brothers) अपने बनाए पिक्चर्स को दुनिया भर में फैलाना चाहते थे. इसी मकसद से उन्होंने अपने एजेंट मॉरिस के जरिए ऑस्ट्रेलिया के लिए फिल्म का पैकेज रवाना किया लेकिन मुंबई पहुंचने पर मॉरिस का हवाई जहाज खराब हो गया. वो तारीख थी 5 जुलाई 1896...मजबूरी में मॉरिस कोलाबा स्थित वॉटसन होटल (Watson's Hotel) में जाकर ठहर गया...ये होटल अब नौसेना के दफ्तर में तब्दील हो चुका है. होटल में जहाज ठीक होने का इंतजार कर रहे मॉरिस के दिमाग में आया कि जो काम ऑस्ट्रेलिया जाकर करना है, उसे मुंबई में ही क्यों न अंजाम दिया जाए?
मॉरिस के इस आइडिया पर लुमियर ब्रदर्स ने भी मुहर लगा दी. जिसके बाद 6 जुलाई को मॉरिस सीधे टाइम्स ऑफ इंडिया के दफ्तर गया और अगले दिन के लिए एक विज्ञापन बुक कराया. इस विज्ञापन का मजमून था- दुनिया का अजूबा देखना है तो आइए...इस विज्ञापन को पढ़कर मुंबई के कोने-कोने से दर्शकों का हुजूम वॉटसन होटल के लिए उमड़ पड़ा. टिकट का रेट था- 1 रुपये प्रति व्यक्ति...उस जमाने के लिहाज से ये रकम काफी बड़ी थी लेकिन फिर भी 200 लोगों का हुजूम इस अजूबे को देखने के लिए आया...
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वॉटसन होटल में 7 से 13 जुलाई 1896 तक फिल्मों का लगातार प्रदर्शन होता रहा. बाद में इस प्रदर्शन को 14 जुलाई से मुंबई के नौवेल्टी थिएटर में शिफ्ट कर दिया गया, जहां ये 15 अगस्त 1896 तक लगातार चलते रहे. लुमियर ब्रदर्स अपने साथ 6 फिल्में लाए थे जिसमें किसी की भी अवधि 1 मिनट से ज्यादा नहीं थी. लेकिन भारतीयों के लिए ये किसी चमत्कार से कम नहीं था. उन्होंने पहली बार परदे पर चलते-फिरते लोगों को देखा था.
अहम ये है कि 7 जुलाई को जब वॉटसन होटल में फिल्म का प्रदर्शन हो रहा था तब वहां फोटोग्राफर हरीशचन्द्र सखाराम भाटवड़कर (Harishchandra Sakharam Bhatavdekar) भी मौजूद थे. मुंबई में साल 1880 से ही अपना फोटो स्टूडियो चला रहे हरीशचंद्र ने सोचा कि क्यों न इसी तरह से हिंदुस्तान में भी ऐसी फिल्में बनाई और दिखाई जाए. लिहाजा साल 1898 में उन्होंने आनन-फानन में लुमिएर सिनेमाटोग्राफ यंत्र को मंगवाया. अब समस्या ये थी कि फिल्म कौन सी बनाई जाए.
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इसके लिए हरीशचंद्र ने मुंबई के हैगिंग गार्डन (Hanging Garden) में कुश्ती का आयोजन करवाया और उसी पर एक लघु फिल्म बनाई. उनकी दूसरी फिल्म सर्कस के बंदरों की ट्रेनिंग पर आधारित थी. इन फिल्मों को शूट करने बाद उन्होंने प्रोसेस के लिए इसे लंदन भेजा. इसके बाद साल 1899 में हरीश ने विदेशी फिल्मों के साथ जोड़कर उनका प्रदर्शन किया. इस तरह वे भारत में फिल्म बनाने वाले पहले भारतीय बन गए. उन्होंने अपनी यह फ़िल्में पेरी थिएटर में प्रदर्शित की. तब टिकट की दर थी आठ आना से लेकर तीन रुपये तक. इसके बावजूद हर शो में उनको 300 रुपये तक मिल जाते थे.
फिर धीरे-धीरे भारत में सिनेमा का सफर बढ़ने लगा. फिर आया साल 1904 का वक्त...जब मणि सेठना ने भारत का पहला सिनेमाघर (India's First Movie Theatre) बनाया, जो विशेष रूप से फ़िल्मों के प्रदर्शन के लिए ही बनाया गया था. इसमें नियमित फ़िल्मों का प्रदर्शन होने लगा. उसमें सबसे पहले विदेश से आयी दो भागों मे बनी फ़िल्म ‘द लाइफ आफ क्राइस्ट’ प्रदर्शित की गयी. यही वह फ़िल्म थी जिसे देखने के बाद भारतीय सिनेमा के पितामह दादा साहब फाल्के को भारत में सिनेमा की नींव रखने का ख्याल आया.
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इसके बाद भारतीय सिनेमा के इतिहास में 1913 का साल एक बड़ी खबर लेकर आया और दादा साहब फाल्के (Dadasaheb Phalke) ने राजा हरिश्चंद्र नामक पहली पूरी लंबाई की फीचर फिल्म बनाई. 40 मिनट की अवधि वाली यह एक मूक फिल्म थी लेकिन यह वहीं फिल्म थी जिसने भारतीय सिनेमा के आगाज की शुरुआत की थी. इस फिल्म को 3 मई 1913 को रिलीज किया गया था.
अब चलते-चलते 7 जुलाई को इतिहास में घटी दूसरी घटनाओं पर भी निगाह डाल लेते हैं…
1999: कारगिल युद्ध के दौरान परमवीर चक्र विजेता कैप्टन विक्रम बत्रा (Captain Vikram Batra) शहीद हो गए.
2007: न्यू 7 वंडर्स फाउंडेशन ने दुनिया के 7 अजूबों की घोषणा की. भारत के ताजमहल को भी इस लिस्ट में शामिल किया गया.
2008: काबुल में भारतीय दूतावास पर आतंकी हमले में 41 लोगों की मौत हुई.
2013: बिहार के बोध गया में महाबोधी मंदिर परिसर में सिलसिलेवार 10 धमाके हुए.
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