Maharashtra Political Crisis: खेला होवे का नारा गढ़ा तो पश्चिम बंगाल में गया था लेकिन हो महाराष्ट्र में गया... पहली नजर में लग रहा है कि यह पूरा मामला शिव सेना (Shiv Sena) का अंदरुनी है. जैसा कि एनसीपी प्रमुख शरद पवार (Sharad Pawar) ने भी मंगलवार को कहा था. लेकिन परदे के पीछे की असल कहानी कुछ और ही है... परदे के पीछे की कहानी जानने से पहले मामला समझ लेते हैं... उद्धव ठाकरे सरकार (Uddhav Thackeray Government) में मंत्री एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) जो अब बाग़ी हो गए हैं, उनका दावा है कि उनके साथ 46 विधायक है. उनके साथ होने का मतलब है कि यह विधायक अब उद्धव ठाकरे के साथ नहीं है.
शुरुआत में खबर आई थी कि शिंदे के साथ दर्ज़नों शिव सेना के विधायक हैं. लेकिन बुधवार दोपहर को टीवी चैनलों से बात करते हुए शिंदे ने दावा किया है कि उनके साथ 46 विधायक हैं और ये शिव सेना के अलावा दूसरे दलों के भी हैं...
इससे पहले शिंदे कह रहे थे कि वे यह सब बीजेपी के बहकावे में नहीं, बल्कि शिवसेना के मूल स्वरूप को बचाने के लिए कर रहे हैं. आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि शिवसेना में एकनाथ ही अकेले जमीनी स्तर के नेता हैं. शिंदे के अलग होने का दो ही मतलब है- बीजेपी बाहर से समर्थन देगी और शिंदे एक-दो दिनों में CM बनेंगे या फिर प्रदेश में मिली जुली सेना और बीजेपी की सरकार बनेगी... अगर नहीं तो फिर तो चुनाव तय हैं.
उद्धव ठाकरे ने राजनीतिक उठापटक को देखते हुए दोपहर में कैबिनेट मीटिंग बुलाई थी. जानकारी के मुताबिक कैबिनेट मीटिंग से 8 मंत्री गायब थे. इससे पहले एक और खबर आई. सूरत होटल से शिवसेना विधायक नितिन देशमुख भागकर नागपुर पहुंच गए. उन्होंने बताया कि मुझे अस्पताल ले जाने के बाद 20 से 25 लोगों ने जबरन इंजेक्शन लगाया. मुझे बेहोश करने की कोशिश की गई. मैं उद्धव ठाकरे का शिवसैनिक था, शिव सेना में रहूंगा.
यह कहानी जिस तरह से चल रही है, इससे कहीं भी यह साबित नहीं किया जा सकता कि बीजेपी ये सब करवा रही है. पहली नजर में पूरी तरह यह मामला शिव सेना के अंदर का लगता है. लेकिन इसमें बीजेपी की भूमिका क्यों लगती है कुछ फैक्ट्स से समझते हैं.
शिंदे अपने विधायकों को सबसे पहले गुजरात लेकर जाते हैं. इन विधायकों को वहां गुजरात पुलिस का समर्थन भी मिल रहा है. बस से उतर रहे विधायकों को जिस तरह प्रोटेक्ट किया जा रहा है वह प्रदेश सरकार की भूमिका के बिना नहीं हो सकता... वहीं एयरपोर्ट का यह विजुअल देखिए, हाथों में कैमरा और गनमाइक लिए पत्रकार विधायकों से बात करने के लिए दौड़ रहे हैं, लेकिन उन्हें रुकने तक नहीं दिया जा रहा है.
कुछ विधायकों ने ज़ुबान खोला भी तो बस इतना कहा कि शिंदे जी से बात कीजिए, वही बताएंगे. शायद इन विधायकों में अभी एकनाथ शिंदे जितनी राजनीतिक परिपक्वता नहीं है, उन्हें नहीं पता कि कितना निगलना है और कितना उगलना है. राजनीति के शिखर पर पहुंचने के लिए इन गुणों का होना बहुत जरूरी है.
खैर ये तो राजनीति में सफलता के मंत्र हैं.. उसपर बात किसी और दिन... अभी महाराष्ट्र के सियासी भूचाल पर ही रहते हैं... सूरत से भाग रहे इन विधायकों को फिलहाल गुवाहाटी के रेडिसन ब्लू होटल में रखा गया है. होटल के अंदर-बाहर असम पुलिस का पहरा है साथ में CRPF भी लगा रखी है. मीडिया को फटकने तक नहीं दिया जा रहा है... सवाल उठता है कि विधायक नाराज़ हैं तो भाग क्यों रहे हैं और उन्हें प्रदेश पुलिस क्यो प्रोटेक्ट कर रही है?
हालांकि लेटेस्ट न्यूज़ यह है कि शिंदे ने सभी विधायकों को गुवाहाटी से इंफाल भेजने की तैयारी कर ली है. इतना ही नहीं खबर यह भी है कि शिंदे ने अपने सभी भरोसेमंद विधायकों से काग़ज़ पर लिखवाकर रख लिया है कि ये सभी महाराष्ट्र सरकार से अपना समर्थन वापस ले रहे हैं.
ख़ैर अब बीजेपी की रणनीति पर आते हैं. पिछले ढाई साल के दौरान देवेंद्र फडणवीस उद्धव ठाकरे पर कभी भ्रष्टाचार के आरोप, कभी कोविड के कुप्रबंधन और कभी 'सांप्रदायिक ध्रुवीकरण' के नाम पर लगातार हमला करते रहे हैं.
2019 का महाराष्ट्र चुनाव, बीजेपी और शिव सेना साथ मिलकर लड़ी लेकिन बाद में शिव सेना ने एनसीपी और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बना ली. देवेंद्र फडणवीस कई मौकों पर कह चुके हैं कि उनके साथ धोखा हुआ. सीएम तो उन्हें ही बनना था. हालांकि शिव सेना का कहना था कि बीजेपी दोनों पार्टियों के बराबर मंत्री बनाने और मुख्यंमत्री पद के ढाई-ढाई साल के बंटवारे से मुकर गई. बीजेपी ने कभी नहीं सोचा होगा कि हिंदुत्व के मुद्दे पर चलने वाली शिव सेना कांग्रेस के साथ गठबंधन कर लेगी.
बीजेपी को शिव सेना के इस फैसले से इतनी निराशा हुई कि देवेंद्र फडणवीस ने शुरुआत में एनसीपी के अजित पवार के एक गुट के साथ मिलकर सरकार बनाने की एक कोशिश की. लेकिन ये सरकार दो-ढाई दिन तक ही चल पाई. बीजेपी को दूसरी बार झटका लगा था. पार्टी के लिए स्थिति चोट खाने से ज्यादा सम्मान का हो गया था. लेकिन अब पार्टी ऐसी कोई गलती नहीं करना चाहती थी जिससे लोगों में यह मैसेज जाए कि बीजेपी सत्ता में बने रहने के लिए कुछ भी कर सकती है.
बीजेपी ने दूसरी रणनीति के तहत सरकार की कमियों को लेकर प्रहार करना शुरू किया. फिर चाहे कोविड का मामला हो या गैस सिलिंडर का या फिर रैलियों के ज़रिये सरकार को घेरना,असेंबली के बाहर और भीतर बीजेपी बेहद आक्रामक रही.
विश्लेषक मानते हैं कि इस दौरान ईडी, सीबीआई, इनकम टैक्स या नारकोटिक्स डिपार्टमेंट जैसी एजेंसियों के दौरान एनसीपी और शिव सेना के नेताओं के ख़िलाफ़ छापेमारी चलती रही. जिससे शिव सेना के विधायकों में डर बैठ गया कि अगला नंबर कहीं उनका तो नहीं. विधायक प्रताप सरनाईक ने तो उद्धव ठाकरे को खत लिख कर ईडी-सीबीआई से बचाने और बीजेपी के साथ हाथ मिलाने की गुहार तक की थी. जाहिर है दो मंत्री अनिल देशमुख और नवाब मलिक
को ईडी की कार्रवाई के बाद जेल जाना भी पड़ा था.
सूत्रों के मानें तो ताजा घटनाक्रम की पूरी पटकथा सोमवार को हुए विधानपरिषद चुनाव से दो दिन पहले ही लिख ली गई थी. वहीं चुनाव के दौरान BJP के हंगामे ने इसे फिल्माने का मौक़ा दे दिया. जब काउंटिंग के दौरान बीजेपी की ओर से क्रॉस वोटिंग का संदेह जताते हुए कुछ देर के लिए हंगामा किया गया. इस दौरान महाविकास अघाड़ी के नेताओं का ध्यान बीजेपी पर रहा और इसी बीच शिंदे और उनके समर्थित विधायक सूरत के लिए निकल लिए.
एकनाथ शिंदे और पूर्व CM देवेंद्र फडणवीस के बीच पहले से भी बेहद अच्छे संबंध रहे हैं. फडणवीस सरकार के दौरान शिंदे के पास PWD मंत्रालय था. शिंदे को BJP और शिवसेना के बीच एक अहम कड़ी भी माना जाता रहा है. समृद्धि एक्सप्रेसवे प्रोजेक्ट के दौरान दोनों की राजनीतिक दोस्ती और मजबूत हुई. मौजूदा बगावत को उसी दोस्ती का नतीजा माना जा रहा है.
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