Major Somnath Sharma PVC Biography : भारत-पाकिस्तान के बीच पहली जंग देश की आजादी के तुरंत बाद अक्टूबर 1947 में हुई थी. Brigadier Mohammad Usman, Naik Karam Singh, Major Somnath Sharma, Lieutenant NG David, Dafadar Jage Ram, Company Havildar Major Piru Singh, Second Lieutenant Rama Raghoba Rane, Jadunath Singh जैसे कई वीर इस जंग से निकले लेकिन आज हम बात करेंगे मेजर सोमनाथ शर्मा की जिन्होंने बड़गाम के मोर्चे पर टूटे हाथ से पाकिस्तानी कबाइलियों से जंग लड़ी.
दुश्मन हमसे सिर्फ 50 गज की दूरी पर है. वे हमसे संख्या में कहीं ज्यादा हैं. हम भयानक आग से घिरे हैं, लेकिन मैं रत्ती भर भी पीछे नहीं हटूंगा... आखिरी सैनिक और बंदूक में आखिरी गोली रहने तक आखिरी सांस तक लड़ूंगा...
ये अजर अमर हो जाने वाले शब्द हर भारतीय के दिलों में गूंजते हैं. ये शब्द भारतीय सेना के मेजर सोमनाथ शर्मा (Major Somnath Sharma) के थे. भारत के सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र (Param Vir Chakra) को प्राप्त करने वाले वे पहले सैन्य अधिकारी थे. परम वीर चक्र भारत का सर्वोच्च सैन्य सम्मान है... ये शब्द साल 1947 में उस वक्त के हैं, जब देश को आजाद हुए 2 महीने से कुछ ही ज्यादा वक्त गुजरे थे.
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आज झरोखा में बात मां भारती के उस वीर सपूत की जिसकी बदौलत कश्मीर पाकिस्तान हमसे छीन न सका... उसने एक हाथ से पाकिस्तान के भेजे कबाइलियों को शिकस्त दी थी. मेजर सोमनाथ शर्मा का जन्म 31 जनवरी 1923 को हुआ था और वह शहीद हुए थे 3 नवंबर 1947 को यानी आजादी के बरस आज ही के दिन.... अगर आप....
आइए आज का सफरनामा शुरू करते हैं
कश्मीर कब्जाने का मंसूबा पाले पाकिस्तान ने कबाइलियों को लूटो और बलात्कार करो का पाठ पढ़ाया और उन्हें गोला बारूद से लैस कर श्रीनगर रवाना किया. साथ में 300 फौजी लारियां भी थी जिनमें भरपूर पेट्रोल भरा था. हमले से घबराकर महाराजा हरि सिंह (Maharaj Hari Singh) ने 24 अक्टूबर 1947 को भारत की ओर देखा. भारत की शर्त थी कि मदद से पहले जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय हो. 26 अक्टूबर को विलय के हस्ताक्षर के बाद भारत ने फैसला कर लिया कि वह राज्य की मदद करेगा.
31 अक्टूबर 1947 को मेजर सोमनाथ दिल्ली में थे. हॉकी के मैदान में उनका दाहिना हाथ टूट गया था, उस पर प्लास्टर चढ़ा था, तभी आदेश आया था कि मेजर सोमनाथ बडगान के मोर्चे पर कूच करें. मेजर सोमनाथ के पास हाथ टूटे होने की वजह से स्पष्ट सुविधा थी कि वह अपनी असमर्थता जाहिर करके कूच से बच जाएं लेकिन उन्होंने इसे मौके के तौर पर स्वीकार किया और बडगान की ओर बढ़ चले. इस तरह से 161 इंवेंट्री ब्रिगेड सबसे पहले मोर्चे पर पहुंची.
मेजर सोमनाथ दूसरे विश्वयुद्ध में अराकान और बर्मा में मुश्किल लड़ाई लड़ चुके थे. बात 3 नवंबर 1947 की है... कैप्टन वुड ने समाचार दिया कि दुश्मन दूर दूर तक नहीं है और रास्ते के गांव सुरक्षित हैं. मेजर शर्मा ने भी खबर दी कि बड़गाम में सबकुछ सुरक्षित है. गांव के लोग अपने रोजमर्रा के काम बेधड़क कर रहे हैं. उन्होंने ये भी देखा कि गांववालों का एक समूह एक नाले के पास इकट्ठा है.
मेजर शर्मा को आदेश मिला कि डेढ़ बजे से वे वापस लौटना शुरू कर दें. 2 बजे मेजर शर्मा ने समाचार दिया कि ए कंपनी हवाई अड्डे की ओर लौट रही है. ब्रिगेड के कमांडर ब्रिगेडियर एल पी सेन (अतिविशिष्ट सेवा सम्मान से सम्मानित) ने मेजर शर्मा से कहा कि वे एक घंटे तक मोर्चे पर डटे रहें और पीछे आना 5 बजे से शुरू करें. मेजर शर्मा ने दोबारा आश्वस्त किया कि बड़गाम अभी भी शांत है. तब तक उन्हें अहसास नहीं था कि अगले आधे घंटे में क्या होने वाला है.
ए कंपनी के लौटने के आधा घंटे बाद नाले के पास इकट्ठा ग्रामीण अलग अलग दिशा में बिखरने लगे. वे मेजर शर्मा की कंपनी को चारों ओर से घेरने लगे. कंपनी के सिपाहियों ने सोचा कि ग्रामीण अपने घरों की ओर लौट रहे हैं लेकिन उन्हें ये नहीं पता था कि ये धूर्त आक्रमणकारी थे जिन्होंने कश्मीरी ग्रामीणों की पोशाक पहन रखी थी और ढीले ढाले कपड़ों के अंदर हथियार छिपा रखे थे. अचानक गांव में घरों की छत हमला शुरू हो गया.
मेजर शर्मा की टुकड़ी 3 ओर से घिर गई थी... सामने थे 700 पाकिस्तानी घुसपैठिए. मेजर शर्मा समझ चुके थे कि श्रीनगर शहर और हवाई अड्डा दुश्मन कब्जे में ले सकते हैं. वक्त की इसी नजाकत को समझते हुए मेजर सोमनाथ शर्मा अपनी 90 सैनिकों की टोली के साथ दुश्मन को हराने के लिए आगे बढ़े, ये वह वक्त था जब वो खुद घायल थे और उनके एक हाथ में प्लास्टर बंधा था.
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मेजर शर्मा के साथियों की संख्या कम हो रही थी. उन्होंने ब्रिगेड से मदद मांगी. ब्रिगेड ने भरोसा दिया कि हवाई सहायता मिलेगा. बहुत कम जवान होने के बावजूद सोमनाथ शर्मा ने एयरफोर्स के लिए जमीनी संकेत स्थापित किए. ताकि फाइटर प्लेन लक्ष्य साध सकें.
उधर 1 पंजाब भी मदद के लिए आगे बढ़ने लगी. मेजर को पता था कि अभी इसमें वक्त लगेगा सो बचे जवानों का जोश बढ़ाना जारी रखा और दुश्मन की लाशों के ढेर लगाने लगे.
दुश्मनों की संख्या कहीं ज्यादा होने के बावजूद मेजर शर्मा की टुकड़ी सेना की दूसरी टुकड़ियों के पहुंचने तक अगले 6 घंटो तक दुश्मनों का बहादुरी से मुकाबला करती रही और उन्हें आगे नहीं बढ़ने दिया. आखिर में मेजर और उनके वीर सिपाही शहीद हो गए लेकिन 300 दुश्मनों की जान लेकर.
मेजर सोमनाथ शर्मा की असाधारण वीरता ने शहर को बचा लिया था और अतिरिक्त सैन्य बल पहुंचने तक का समय सेना को मिल गया था.
मेजर सोमनाथ का क्षत विक्षत शव कोई पहचान न सका. उनकी जेब में रखी श्रीमद्भगवद्गीता से उन्हें पहचाना गया. मेजर शर्मा अपनी किशोरावस्था से अपनी जेब में गीता रखते थे. भगवान श्रीकृष्ण का संदेश सीखकर 24 साल का युवक देश के लिए जिया और देश के लिए शहीद हो गया.
चलते चलते 3 नवंबर को हुई दूसरी घटनाओं पर एक नजर डाल लेते हैं
1394 - फ्रांस के सम्राट चार्ल्स षष्ठम ने यहूदियों को फ्रांस से बाहर खदेड़ा
1962 - चीन के हमले के बाद भारत में गोल्ड बॉन्ड स्कीम का ऐलान किया
1688- राजा सवाई जयसिंहका जन्म हुआ
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