PM Modi Europe visit: वैसे तो पीएम मोदी की शॉल के लिए दीवानगी किसी से छिपी नहीं है. लेकिन शायद ही कोई पुरुष प्रधानमंत्री रहे हों जिन्होंने विदेशी दौरे पर इस तरह से शॉल का इस्तेमाल किया हो. सबसे पहले यह तस्वीरें देखिए... सबसी पहली तस्वीर बर्लिन (Berlin) की है, जब प्रधानमंत्री मोदी शॉल ओढ़कर विमान से नीचे उतरे और स्वागत के लिए सामने खड़े थी जर्मनी की सेना, सैन्य अफसर और बड़े-बड़े अधिकारी. यहां पर पीएम मोदी को गार्ड ऑफ ऑनर भी दिया गया था.
वहीं दूसरी तस्वीर बर्लिन के होटल एडलॉन केम्पिंस्की की है. जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारतीय समुदाय के लोगों के बीच पहुंचे थे. इस दौरान भी पीएम मोदी ने शॉल ओढ़ रखी थी. इस दौरान वहां मौजूद भारतीय समाज के लोगों ने गर्मजोशी से पीएम का स्वागत किया...
अब यह तीसरी तस्वीर देखिए. जो डेनमार्क के कोपेनहेगन की है. जहां पीएम मोदी ने किंगडम ऑफ डेनमार्क की महारानी मार्गरेट द्वितीय से मुलाकात की. इस दौरान भी पीएम मोदी शॉल ओढ़े नजर आए. महारानी ने पीएम मोदी का भव्य स्वागत किया.
वहीं चौथी तस्वीर बर्लिन के पॉट्सडामर प्लाट्ज़ की है. जहां पर वह भारतीय समुदाय के लोगों को संबोधित करने पहुंचे थे. यहां पर भी पीएम मोदी ने शॉल ओढ़ रखी थी.
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पीएम मोदी की इन चार तस्वीरों में अलग-अलग शॉल दिख रहे हैं. यह बताता है कि पीएम मोदी को शॉल कितना प्रिय है. हालांकि आपको जानकर आश्चर्य होगा कि इससे पहले भारत के जो भी प्रधानमंत्री औपचारिक विदेश दौरे पर गए उनके परिधान भी उसी प्रकार के रहे...
भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू अक्सर विदेशी दौरे पर अचकन यानी कि बंद गले के कोट जैसी पोशाक और पायजामा पहना करते थे. या फिर कोर्ट पैंट पहनते थे. यहां तक कि ज्यादातर भारतीय परिधान पहनने वाले पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी भारत में भले ही धोती-कुर्ते के साथ नेहरु जैकेट पहनते हों, लेकिन विदेश दौरे पर वह भी फॉर्मल कोट पेंट ही पहनते थे. यानी कहा जा सकता है कि पीएम मोदी ने पुराने सभी प्रधानमंत्रियों के ट्रेंड को तोड़ दिया है.
विदेश ही नहीं अपने देश के अंदर भी पीएम मोदी कई मौकों पर शॉल ओढ़े नजर आए हैं. 19 नवंबर 2021 को पीएम मोदी ने जिस शॉल को पहन कर कृषि कानून वापस लिया उस शॉल को बनाने में पूरे 6 महीने का समय लगा था. इतना ही नहीं मीडिया रिपोर्ट्स में इस शॉल की कीमत 1.25 लाख रुपए से ज्यादा बताई गई थी.
आपको याद होगा पिछले साल सोशल मीडिया पर एक पोस्ट वायरल हो रहा था. जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शॉल पहने हुए फोटो के साथ आहूजा एंड संस की शॉपिंग वेबसाइट का स्क्रीन शॉट लगा था. इस पश्मीना शॉल की कीमत करीब 2 लाख रुपए बताई गई थी. हालांकि बाद में पता चला कि पीएम मोदी को यह शॉल बिहार विधानसभा स्पीकर विजय कुमार सिन्हा ने सम्मान देते हुए पहनाई थी. और वह शॉल पश्मीना नहीं, बिहार की प्रसिद्ध मधुबनी डिजाइन थी. जो किसी भी शॉल, साड़ी या दुपट्टे पर बनाई जाती है.
समर्थकों का मानना है कि पीएम मोदी इस तरह से पूरे विश्व में भारतीय शॉल की एडवरटाइजिंग कर रहे हैं, प्रचार कर रहे हैं. वहीं विरोधियों का मानना है कि पीएम मोदी का ध्यान काम से ज्यादा परिधान पर होता है. डेनमार्क की प्रधानमंत्री मेटे फ्रेडरिक्सन की फोटो शेयर करते हुए कई लोग कह रहे हैं कि पूरे मुलाक़ात के दौरान प्रधानमंत्री मोदी, अलग-अलग कपड़ों में दिखते रहे, जबकि मेटे फ्रेडरिक्सन एक ही कपड़े में रहीं.
हालांकि यह सच है कि प्रधानमंत्री मोदी ने कई कई विदेशी राष्ट्राध्यक्षों को शॉल भेंट की है. शुरुआत यूरोप दौरे से. 4 मई को पीएम मोदी ने अपने स्वीडिश समकक्ष मैग्डेलेना एंडरसन से मुलाकात की और उन्हें कश्मीरी पश्मीना शॉल भेंट की है.
इससे पहले साल 2019 में पीएम मोदी ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग (Xi Jinping) को हाथ से बनी रेशम की एक बड़ी शॉल भेंट की थी. शॉल में सुनहरे रंग के जरी के काम से शी की तस्वीर बनाई गई थी और इस शॉल की पृष्ठभूमि चटक लाल रंग की थी. मोदी ने मामल्लापुरम में शी को यह शॉल भेंट की थी.
वहीं साल 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) जब पाकिस्तान की सरप्राइज विजिट के दौरान लाहौर पहुंचे थे तो उन्होंने नवाज शरीफ की पोती मेहरूनिसा को इंडियन ड्रेस तोहफे में दी थी, जबकि शरीफ की मां को वह शॉल देकर आए थे.
इसके अलावा साल 2017 में पीएम मोदी, जब अमेरिका दौरे पर गए थे तो तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की पत्नी मेलानिया ट्रंप के लिए जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश में हाथ से बनी शॉल लेकर गए थे.
हालांकि आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि पीएम मोदी जिस शॉल को पूरी दुनिया में भारतीय परंपरा का हिस्सा के तौर पर पेश कर रहे हैं, दरअसल वह शब्द भारत का है ही नहीं. शॉल को भारत में दुशाला भी कहा जाता है. माना जाता है कि यह शब्द कश्मीर से लिया गया है. लेकिन इस शब्द का मूल ईरान के एक शहर हमादान से है.
जानकार बताते हैं कि सईद अली हमदानी ने ही भारत में शॉल बनाने की कला शुरू की थी. मीर अली हमदानी 14वीं शताब्दी में लद्दाख आए थे. यहां पर उन्होंने पश्मीना बकरियां देखी और लद्दाखी कश्मीरी बकरियों के फर से मुलायम ऊन का उत्पादन शुरू किया.
मीर अली हमदानी ने कश्मीर के राजा, सुल्तान कुतुबुद्दीन को इस ऊन से मोजे बनाकर उपहार स्वरूप भेंट किया. इसके बाद हमदानी ने राजा को इस ऊन से कश्मीर में शॉल बुनाई का उद्योग शुरू करने का सुझाव दिया. इस तरह से भारत में पश्मीना शॉल का उद्योग शुरू हुआ. आगे चलकर पूरे भारत में अन्य कई प्रकार के शॉल बनने लग गए.