निर्मला सीतारमण, महंगाई और ग्लोबल इकोनॉमी ग्रोथ के गिरते अनुमान को कैसे संभालेंगी?

Updated : Oct 31, 2022 19:03
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Deepak Singh Svaroci

आज बात होगी अगले बजट की. जीडीपी ग्रोथ में कटौती, पांच महीने के सबसे उच्चतम स्तर पर महंगाई, बेरोजगारी, भूखमरी, गरीबी और भारत को 2028-29 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी वाला देश बनाने का सपना... अर्थव्यवस्था के ख़्याल से देखें तो भारत की स्थिति बहुत बेहतर नहीं कही जा सकती है. इसके साथ ही रुपया का लगातार कमज़ोर होना... माफ कीजिएगा डॉलर का मजबूत होना, रूस-यूक्रेन युद्ध, तेल कटौती पर अमेरिका और सऊदी अरब के बीच बिगड़ते रिश्ते और वैश्विक मंदी की आशंका के बीच भारत के आर्थिक ग्रोथ को संभालना और लगातार बढ़ रही महंगाई को कंट्रोल करना आसान नहीं होगा.

महंगाई को कंट्रोल करने के नाम पर RBI मई महीने से ही रेपो रेट बढ़ाता जा रहा है. 1.9 प्रतिशत नीतिगत दर बढ़ने के बाद रेपो दर अबतक बढ़कर 5.9 प्रतिशत पर पहुंच गया है. लेकिन महंगाई है कि कंट्रोल होता ही नहीं है. जनवरी, 2022 से खुदरा मुद्रास्फीति दर छह प्रतिशत से ऊपर बनी हुई है. सितंबर में यह 7.41 प्रतिशत रही.

दाल, सब्जियां सब महंगी

खाने-पीने के सामान, दाल, सब्जियां सब महंगी हैं. इन सब चुनौतियों के बीच भी केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का जोश हाई है. पिछले हफ्ते उन्होंने कहा कि वित्तीय वर्ष 2023 में भारत की अर्थव्यवस्था लगभग 7% बढ़ सकती है. इतना ही नहीं उन्होंने यह भी कहा कि ग्रोथ को बनाए रखने और महंगाई को कंट्रोल करने के लिए आगामी केंद्रीय बजट को सावधानी से बनाना होगा.

सवाल उठता है कि जब सरकार और RBI के लगातार प्रयास करने के बावजूद ना तो महंगाई कंट्रोल हो रही है और ना ही ग्रोथ बढ़ रहा है. तो ऐसे में निर्मला सीतारमण इस बार के बजट में ऐसा क्या करेंगी, जिससे उम्मीद की जाए कि देश में भविष्य की आर्थिक चुनौतियां कम हो जाएंगी. या यूं कहें कि बतौर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को क्या करने की ज़रूरत है, जिससे देश के हालात को सुधारा जा सके.

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7% का रहेगा इकोनॉमी ग्रोथ

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के मुताबिक भारत की इकोनॉमी फाइनेंशियल ईयर-23 में लगभग 7% बढ़ सकती है. जबकि इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड (IMF) ने कुछ दिनों पहले ही अपनी लेटेस्ट वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक रिपोर्ट में भारत के इकोनॉमिक ग्रोथ के अनुमान को एक बार फिर से घटा दिया था. IMF ने पहले फाइनेंशियल ईयर 2023 के लिए देश की अनुमानित GDP ग्रोथ 7.4% बताया था लेकिन अब उस अनुमान में 0.60% की कटौती की गई है. जिसके बाद GDP ग्रोथ 6.8% रहने का अनुमान जताया गया है.

इसके बावजूद निर्मला सीतारमण ने ग्रोथ के 7% तक रहने की उम्मीद जताई है. ख़ैर उम्मीद तो भारत को 2028-29 तक 5 ट्रिलियन डॉलर वाली इकोनॉमी बनाने की भी है. लेकिन इसके लिए अगले पांच सालों तक लगातार 9 फीसदी की दर से जीडीपी होनी चाहिए. तो उम्मीद यह भी की जा सकती है कि 2023 में GDP ग्रोथ वित्त मंत्री के उम्मीद को भी पार कर जाएगी... लेकिन आज बात उम्मीदों की नहीं, चुनौतियों की होगी.  

वैश्विक चुनौती

भारत के आंतरिक हालात पर बात करें, उससे पहले एक बार मौजूदा वैश्विक हालात पर चर्चा कर लेते हैं. वित्त मंत्री ने शुक्रवार को IMF और विश्व बैंक की विकास समिति की सालाना बैठक में वैश्विक चिंताओं की ओर ध्यान दिलाते हुए कहा कि तनावपूर्ण और अनिश्चित भू-राजनीतिक संकट सर्दियों में कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस जैसे महत्वपूर्ण कमोडिटी की आपूर्ति में नयी चिंताओं को पैदा कर सकता है. इसके साथ ही विकसित अर्थव्यवस्थाओं में महंगाई दर नियंत्रण एक प्रमुख चिंता का विषय है.

वहीं रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध का वैश्विक ऊर्जा प्रणाली पर बुरा प्रभाव पड़ा है. इसके कारण आपूर्ति और मांग बाधित हुई है और विभिन्न देशों के बीच लंबे समय से चले आ रहे व्यापारिक संबंधों में खटास आई है. वहीं सऊदी अरब ने अमेरिका की अपील के बावजूद तेल उत्पादन में कटौती का फ़ैसला लिया है. सऊदी अरब का कहना है कि इससे महंगाई कंट्रोल में आएगी.

तेल की कीमतों पर कंट्रोल चाहता है अरब

कई जानकार भी मानते हैं कि सऊदी अरब तेल उत्पादन कम कर तेल की कीमतों पर अपना कंट्रोल चाहता है. जिससे उनका देश मंदी की चपेट में न आए. क्योंकि सऊदी अरब और OPEC+ देशों का अनुमान है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था मंदी की ओर जा रही है. ऐसे में तेल की डिमांड कम हो सकती है. भारत में डीजल-पेट्रोल और गैस के दाम देखें तो पहले ही काफी बढ़े हुए हैं, ऐसे में भारत सरकार के पास आने वाले समय में महंगाई को बढ़ने से रोकने के लिए क्या रास्ता है, यह तो समय ही बताएगा?

वहीं वैश्विक मंदी ने करेला ऊपर से नीम चढ़ा जैसे हालात पैदा कर दिए हैं. ग्लोबल मंदी, करेंट अकाउंट घाटा बढ़ना और फॉरेक्स रिजर्व का गिरना भारतीय इकनॉमी को प्रभावित कर सकता है. RBI महंगाई कंट्रोल करने के लिए आगे भी नीतिगत दरें बढ़ाने की फैसला कर सकती है. एक्सपर्ट्स के मुताबिक अगले 6 महीनों में भारतीय शेयर बाजार और भी कमजोर होगा... कोरोना महामारी और फिर रूस-यूक्रेन युद्ध, इन दोनों ने हालात पहले ही बिगाड़ दिए थे. ऐसे में महंगाई पहले से ही बढ़ रही है लेकिन आने वाली स्थिति और भी ख़राब होने के संकेत मिल रहे हैं.

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घरेलू चुनौती

अब देश के अंदर की बात कर लेते हैं. सितंबर में रिटेल महंगाई बढ़कर 7.41% हो गई है. अगस्त महीने में ये 7% थी. कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स (CPI) के आंकड़ों के मुताबिक खाने-पीने के सामान, खास तौर पर सब्जियों और दालों की कीमतों के बढ़ने की वजह से महंगाई बढ़ी है. सितंबर महीने में खाने-पीने की चीजों की महंगाई दर 8.6% है. जबकि अगस्त महीने में यह 7.62% थी. जबकि सब्जियों की महंगाई अगस्त के 13.23% से बढ़कर 18.05% पर पहुंच गई है.

आपको बता दूं, कच्चे तेल, कमोडिटी की कीमतों, मैन्युफैक्चर्ड कॉस्ट के अलावा कई अन्य चीजें को मिलाकर रिटेल महंगाई दर तय की जाती है. इस बीच अगस्त महीने में इंडस्ट्रियल ग्रोथ घटकर -0.8% रह गई है. जबकि जुलाई महीने में इंडेक्स ऑफ इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन (IIP) ग्रोथ 2.4% थी. गैर-कृषि क्षेत्रों के रोजगार में उथल-पुथल मची है. होटल, पर्यटन और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टरों में रोजगार के अवसर पैसेंजर ट्रेन बनी हुई है.

वहीं ग्लोबल हंगर इंडेक्स में लगातार दूसरे साल भारत की रैंकिंग में गिरावट दर्ज की गई है. हंगर इंडेक्स के मामले में भारत 2020 में 94वें पायदान पर था. साल 2021 में भारत 7 रैंक गिरा और 101वें पायदान पर पहुंच गया. 2022 में भारत की रैंकिंग में 6 पायदान की और गिरावट हुई. इसके साथ ही भारत 107वें स्थान पर पहुंच गया है. सिर्फ 8 देश हमसे पीछे हैं. पड़ोसी देश पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल इस मामले में हमसे बेहतर स्थिति में है...

रोजगार के अवसर?

हालांकि रियल एस्टेट और कंस्ट्रक्शन, शिक्षा, आईटी, डिलिवरी और खुदरा कारोबार जैसे क्षेत्र रोजगार पैदा करने वाले बड़े क्षेत्रों के रूप में उभर रहे हैं. ‘माइक्रो, स्माल ऐंड मीडियम एंटरप्राइजेज़ (एमएसएमई) रोजगार के अवसर पैदा करने में अहम भूमिका निभा सकते हैं. राज्यमंत्री द्वारा दी गई सूचना के मुताबिक इस सेक्टर में 2021-22 में रोजगार के 93 लाख से ज्यादा अवसर पैदा हुए. ताजा आंकड़ों के मुताबिक सितंबर में 1.677 करोड़ घरों ने काम की मांग की. यह इससे पिछले महीने में की गई मांग से 5 फीसदी ज्यादा थी. 

वहीं अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में रुपये की कीमत डॉलर के मुक़ाबले कम होना भी बड़ी चिंता का विषय है. हालांकि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के मुताबिक रुपया कमज़ोर नहीं हुआ है, बल्कि डॉलर मज़बूत हुआ है. एक बार इस बयान को भी सुन लेते हैं. 

वित्त मंत्री के इस पंक्ति का आशय क्या है? भारत के लिए वर्तमान चुनौतियां क्या हैं? महंगाई पर कंट्रोल या भारत की विकास दर को दुरुस्त करना, सरकार की पहली प्राथमिकता क्या हो, निर्मला सीतारमण का यह कहना कि इस बार का बजट काफी ध्यान से बनाना होगा, के क्या मायने हैं? महंगाई के नाम पर जेब से ज़्यादा पैसा चुकाकर देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले भारतीय नागरिकों को क्या इस बार टैक्स में राहत मिल सकती है और वैश्विक मंदी से भारत कैसे उबरेगा? 

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