Om Puri Biography Life Career Achievements : बॉलीवुड के महान अभिनेता ओमपुरी (Om Puri) का बचपन बेहद मुश्किल दौर से गुजरा था. बचपन में गरीबी का सामना परिवार करता रहा. ओमपुरी इसके साथ ही पिता का गुस्सा भी झेलते रहे. वक्त के थपेड़ों से होकर वह किस तरह बॉलीवुड तक पहुंचे आइए जानते हैं, इस लेख में.
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साल 1957 का वक्त... रेलवे स्टोर में चोरी के आरोप में एक शख्स को गिरफ्तार किया जाता है... परिवार पहले ही गरीबी झेल रहा था और एकमात्र कमाने वाले की गिरफ्तारी से बिखर जाता है... नतीजा ये होता है कि उसके 7 साल के बच्चे को एक चाय की दुकान पर काम करने को मजबूर होना पड़ता है...
7 साल के बच्चे के बड़े भाई इस दौरान कुली का काम करते. वो तो भला हो पड़ोसियों का जो वो इनकी मदद करते हैं. आगे चलकर ये लड़का और उसका भाई घर चलाने के लिए नौकरी शुरू करते हैं. लड़के का नाम ओमपुरी था. वह जिस कॉलेज में पढ़ता उसी में असिस्टेंट लाइब्रेरियन की नौकरी भी करता... आगे चलकर वह National School of Drama (NSD) पहुंचा और फिर बॉलीवुड की चमक से भरी दुनिया में भी...
वह टेक चंद पुरी और तारादेवी की सबसे छोटी संतान थे, लेकिन उनके आठ भाई-बहनों में से केवल दो ही जीवित रहे. 18 अक्टूबर 1950 ही वह तारीख है जब हरियाणा के अंबाला में जन्म हुआ था इस महान अभिनेता का... आज हम ओमपुरी के जिंदगी के पन्नों को करीब से पलटेंगे झरोखा में.
बॉलीवुड के महान अभिनेता ओमपुरी की पत्नी रही नंदिता पुरी (Nandita Puri) ने साल 2009 में उन पर एक आत्मकथा लिखी थी. इसके बाद ओमपुरी की निजी जिंदगी बदल गई थी. लोगों ने उनपर ओमपुरी की छवि को नुकसान पहुंचाने के आरोप लगाए थे. बॉयोग्राफी का नाम था 'अनलाइकली हीरो : ओम पुरी'... (Unlikely hero: Om Puri) किताब के लॉन्च होने के बाद से ही दोनों के बीच विवाद शुरू हो गया था और इसका अंत काफी दर्दनाक रहा.
इस किताब के जरिए जर्नलिस्ट पत्नी नंदिता ने ओम पुरी की जिंदगी के कई राज उजागर किए थे. किताब में लिखा गया कि जब ओमपुरी चाय की दुकान पर काम कर रहे थे और परिवार की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही थीं. परिवार को खाने तक के लाले पड़ गए थे. तब एक 7 साल के ओमपुरी एक पंडित के पास गए लेकिन पंडित ने मदद करने की बजाय इस बच्चे के साथ शोषण किया. इस तरह से ओम पुरी का बचपन बेहद डिस्टर्ब रहा.
ओमपुरी जब 14 साल के थे तो उनके जीवन में एक टर्निंग पॉइंट आया. यह वह दौर था जब ओमपुरी का संघर्ष शुरू हो चुका था. उनके आसपास कोई भी हमउम्र लड़की नहीं थी. उन्होंने महिला के रूप में या तो अपनी मां को देखा था या फिर मामी को... या फिर मामी के घर काम करने वाली 55 साल की नौकरानी शांति को.
ओमपुरी का पहला शारीरिक संबंध यहीं बना. जब ओम पुरी की मां का निधन हुआ तो वह पटियाला के सन्नौर में अपने मामा के पास रहने लगे थे. जब वे मामा के घर रहकर पढ़ाई कर रहे थे तो उन्हें घर की कामवाली के साथ पानी लाने का जिम्मा सौंपा गया था. वहीं पर एक रोज 14 साल के ओमपुरी के साथ 55 साल की कामवाली ने छेड़खानी शुरू की. उसने ओमपुरी को दबोच लिया. जिस वक्त ये सब हो रहा था, घर की बत्ती गुल थी.
यहीं पर ओम ने एक और चूक कर डाली. किशोर अवस्था में उन्हें संभालने के लिए कोई नहीं था. मां इस दुनिया में नहीं थी और पिता भी पास नहीं थे. भावनाओं की कश्मकश में उलझे ओमपुरी ने रात को मामी के अस्त व्यस्त कपड़ों को देखा तो खुद पर काबू नहीं रख सके और उनके शरीर को प्यार से सहलाना शुरू कर दिया.
मामी नींद से तमतमाकर उठी और नीचे चली गई. अगली सुबह जब ओमपुरी सोकर उठे तो उनके मामा ने उन्हें एक जोरदार तमाचा रसीद किया और घर से निकाल दिया.
ये सब बातें अनंत विजय की किताब बॉलीवुड सेल्फ़ी से ली गई हैं. किताब में टीएस इलियट का उदाहरण देते हुए कहा गया है कि अतीत ही वर्तमान को प्रभावित नहीं करता है, वर्तमान भी अतीत को प्रभावित करता है. किसी तरह दोस्तों की मदद और कठिन परिश्रम से ओमपुरी ने पढ़ाई पूरी की. यहां भी एक दिलचस्प प्रसंग हुआ.
साल 1965-66 का दौर था... और ओमपुरी लुधियाना में थे... एक दिन लुधियाना में 65 की जंग के सैनिकों का स्वागत हुआ.. इसे देखकर ओमपुरी ने भी फौजी बनने की ठान ली लेकिन कठोर और हमेशा भन्नाए रहने वाले पिता ने ओमपुरी के इस सपने पर पानी फेर दिया.
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ओमपुरी जब 9वीं क्लास में थे तो उनके मन में ग्लैमर की दुनिया में जाने की इच्छा हुई. अचानक एक दिन अखबार में उन्हें एक फिल्म के ऑडिशन का विज्ञापन दिखाई दिया और उसके लिए अर्जी डाल दी. कुछ दिनों के बाद एक रंगीन पोस्टकार्ड पर ऑडिशन में लखनऊ पहुंचने का बुलावा था. तंगहाली में दिन गुजार रहे ओमपुरी के पास न तो पचास रुपये थे और न ही लखनऊ आने जाने का किराया. सो फिल्मों का सफर यहां रुक सा गया. जिस फिल्म के लिए ओमपुरी के पास चिट्ठी आई थी, वह फिल्म जियो और जीने दो थी.
आगे चलकर ओमपुरी कॉलेज पहुंचे. हालांकि ग्रेजुएशन के दूसरे वर्ष में, ओम पुरी को पैसों के लिए रेलवे कैंटीन में काम करने सहारनपुर जाना पड़ा. तीस साल पहले दिलीप कुमार ने भी पुणे में आर्मी कैंटीन में मैनेजर के रूप में अपना करियर शुरू किया था, जहां उन्होंने ब्रिटिश और अमेरिकी सैनिकों के लिए सैंडविच और कॉकटेल बनाना सीखा. इसके बाद कॉलेज फेस्ट में एक रोज वह नाटक में ऐक्टिंग कर रहे थे. इसी दौरान उन्हें एनएसडी ग्रेजुएट रहे हरपाल तिवाना ने देखा. तिवाना पंजाब कला मंच नाम से पहला मॉडर्न थिएटर ग्रुप शुरू करने पंजाब लौट आए थे. तिवाना के साथ, ओम पुरी को एक पेशेवर थिएटर में पहला अनुभव मिला और कमाई भी. तिवाना ने ही ओमपुरी को NSD जाने के लिए प्रेरित किया.
तिवाना के ही साथ ओमपुरी का एक दिलचस्प किस्सा और है. ओम पुरी ने जिंदगी में पहली बार रेस्टोरेंट में खाना तिवाना के साथ ही खाया था. यह भोजन उन्होंने चंडीगढ़ के ग्रेट पंजाब होटल में किया था. तब उन्हें ऐसा लग रहा था कि तिवाना उनके सामने मानो नादिर शाह जैसे बैठे हों. आखिरी में नींबू के स्लाइड्स के साथ गर्म पानी का कटोरा आया. ओमपुरी को लगा यह पीने के लिए है और वह गटागट इसे पी गए.
वक्त के थपेड़ों से जूझते ओमपुरी दिल्ली आते हैं और नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में एडमिशन ले लेते हैं. लेकिन यहां भी हिन्दी और पंजाबी में हुई अपनी शिक्षा को लेकर उनके मन में कुंठा पैदा होती है. अंग्रेजी उन्हें आती नहीं थी. मन में वापस पटियाला जाने का ख्याल आया. लेकिन तब एनएसडी के डायरेक्टर रहे अब्राहम अल्काजी ने ओमपुरी की परेशानी भांपी और एमके रैना को उनसे बात करके उत्साहित करने का जिम्मा सौंपा. अब मन से कुंठा गायब हुई और ओमपुरी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा...
ओमपुरी के साथ NSD में नसीरुद्दीन शाह भी थे. 1970 में दोनों NSD आए थे.. दोनों उसके बाद एफटीआईआई में चले गए. आर्ट सिनेमा में दोनों ने बड़ा नाम कमाया.
जब ओमपुरी ने पहली बार फिल्मी दुनिया में एंट्री ली तो नसीरुद्दीन शाह (Naseeruddin shah) ने उन्हें सुझाव दिया कि वह अपना नाम बदलकर विनम्र कुमार या अंतिम खन्ना कर लें. फिर उन्हें उनके मिडिल नेम प्रकाश को यूज करने का सुझाव दिया गया. उन्हें विलोम पुरी और आजाद पुरी के सुझाव भी दिए गए.
एफटीआईआई में ओम पुरी के रूम-मेट डेविड धवन थे. डेविड धवन ने ओम पुरी की एक्स्ट्राऑर्डिनरी गंभीरता का गई बार जिक्र भी किया. धवन को ओम पुरी इतने सीरियस लगे कि वह अपना कमरा भी बदलना चाहते थे. सालों बाद दोनों ने कुंवारा सहित गोविंदा स्टारर कुछ फिल्मों में साथ किया, तब वही धवन ओमपुरी की कॉमेडी देख हैरान रह गए थे. शायद उन्होंने जाने भी दो यारों को नहीं देखा था.
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FTII में फर्स्ट ईयर के ब्रेक के दौरान ओम पुरी ने B. V. Karanth की Chor Chor Chhip Jaye फिल्म की, जो बच्चों के लिए थी. इसके लिए उन्हें 3 हजार रुपये भी मिले. ये तब तक उन्हें मिला सबसे बड़ा मेहनताना था. लेकिन ये रकम पता नहीं उन्होंने कहां खर्च कर डाली... FTII से पढ़ाई पूरी होने के दौरान उनपर 280 रुपये बकाया थे. FTII ने उन्हें कई रिमाइंडर भी भेजे लेकिन उन्होंने न उसे चुकाया और न ही डिग्री ली.
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