Pervez Musharraf Unknown Story: 1965 जंग में मुशर्रफ भी थे शामिल, आज ही हुआ था सीजफायर | Jharokha 23 Sep

Updated : Oct 02, 2022 12:52
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Mukesh Kumar Tiwari

Pervez Musharraf Unknown Story : परवेज़ मुशर्रफ़ (Pervez Musharraf) का जन्म 11 अगस्त 1943 को हुआ था. मुशर्रफ पाकिस्तान के राष्ट्रपति और सेना प्रमुख रह चुके हैं. मुशर्रफ ने साल 1999 में नवाज़ शरीफ की सरकार का तख्तापलट कर पाकिस्तान की बागडोर संभाली और 20 जून 2001 से 18 अगस्त 2008 तक पाकिस्तान के राष्ट्रपति रहे. मुशर्रफ़ का जन्म दिल्ली शहर में दरियागंज में हुआ था. भारत के विभाजन (Partition of India) के बाद उनका परिवार कराची में जाकर बस गया. अप्रैल से जून 1999 तक भारत और पाकिस्तान के बीच हुए कारगिल युद्ध के दौरान मुशर्रफ़ ही पाकिस्तान के सेना-प्रमुख थे.

2006 में 23 सितंबर को मुशर्रफ ने दिया था बातचीत का प्रस्ताव

23 सितंबर... 2006 में इसी दिन पाकिस्तान के तब के राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ ने भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह (Manmohan Singh) को बातचीत का प्रस्ताव दिया... और 41 साल पहले यही वो दिन था जब भारत-पाक की सेनाओं ने 1965 की जंग में सीजफायर मानते हुए युद्ध रोक दिया था.

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एक सिरे पर जंग के बाद की खामोशी है तो एक सिरे पर भारत पर लगातार होते हमले के बीच झूठी दोस्ती की कड़ी.. परवेज मुशर्रफ 2006 में भी अहम किरदार थे और 1965 की जंग में भी... 1965 में भी वह भारत से लड़ रहे थे और 2006 में भी...  आज झरोखा में हम पलटेंगे 41 सालों के इसी समयकाल को... 

साल 2006, पाकिस्तानी राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ़ ने भारतीय प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह को वार्ता का निमंत्रण दिया... इसके बाद दोनों नेताओं में एक घंटे की बैठक हुई... भारत और पाकिस्तान के द्विपक्षीय रिश्तों को बातचीत के जरिए पटरी पर लाने की प्रतिबद्धता दोहराई जाती है... लेकिन मुलाकातें कई और मोहब्बत बिल्कुल नहीं... सालों का यही किस्सा यहां भी बदस्तूर जारी रहता है... इसके कुछ ही साल बाद, पाकिस्तान के आतंकी 26/11 आतंकी हमले को अंजाम दे देते हैं...

करगिल के बाद से ही मुशर्रफ से मुलाकातों का दौर चला

मुलाकातों का दौर 2001 से ही चल रहा था... करगिल के बाद आगरा शिखर वार्ता जुलाई 2001 में हुई. अटल बिहारी वाजपेयी और परवेज मुशर्रफ आगरा में मिले. बातचीत नाकाम होती है, दोनों एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते हैं...  इसके बाद सार्क समिट को लेकर जनवरी 2004 में बैठक हुई. अटल बिहारी वाजपेयी और परवेज मुशर्रफ इस बार इस्लामाबाद में समिट से इतर मुलाकात करते हैं.

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2004 में भारत में सत्ता बदलती है. अब संयुक्त राष्ट्र में सितंबर 2004 में मनमोहन सिंह और मुशर्रफ मिलते हैं. यूपीए के सत्ता में आने के बाद पहली मुलाकात. पाकिस्तान के रास्ते आने वाले गैसपाइप लाइन पर बात की गई. इसके बाद क्रिकेट डिप्लोमेसी को लेकर अप्रैल 2005 में मनमोहन सिंह और मुशर्रफ मिलते हैं. सीमा पार बस सेवा शुरू होने के दस दिन बाद मुशर्रफ ने भारत आकर भारत-पाक मैच देखा. अब बारी आती है नाम समिट की...  अक्टूबर 2006 में मनमोहन सिंह और मुशर्रफ, हवाना में मिलते हैं. मुंबई में ट्रेन बम धमाकों के बाद यह मुलाकात थी.

मुशर्रफ से मुलाकातों का सिलसिला यहीं तक... मुशर्रफ के रहते भारत पाक के रिश्ते बुरे दौर में ही रहे... करगिल... संसद हमले और फिर मुंबई ट्रेन ब्लास्ट.

दिल्ली के नाहरवाली हवेली में जन्मे थे मुशर्रफ

साल 1943 में दिल्ली में जन्मे परवेज मुशर्रफ पाकिस्तान में मुहाजिर बनकर गए थे. उनका परिवार मूलतः भारत के यूपी में आजमगढ़ से है. हालांकि, मुशर्रफ जन्मे थे दिल्ली के नाहरवाली हवेली में... हवेली का एक हिस्सा आज भी सलामत है.

1965 की जंग में भी शामिल थे मुशर्रफ

साल 1947 में जब परिवार पाकिस्तान गया तो नन्हें मुशर्रफ 5 बरस के थे. और जब भारत पाक के बीच 1965 की जंग हुई तब वह एक युवा लेफ्टिनेंट बनकर पाक सेना में शामिल हो चुके थे. युद्ध के बाद उन्हें इम्तियाज ए सनद का सम्मान दिया गया. कहा जाता है कि उनका तोपखाना भारतीय हमले से घिर गया था लेकिन उन्होंने अपनी पोजिशन छोड़ने से साफ इनकार कर दिया था.

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मुशर्रफ 1 आर्मर्ड डिवीजन आर्टिलर की 16 फील्ड रेजिमेंट में सेकेंड लेफ्टिनेंट थे. 1965 की जंगी यादों को ताजा करते हुए मुशर्रफ ने एक पाक टीवी चैनल से कहा था कि चांगा मांगा से कसूर भेजा गया. यहां से पाक दस्ते भारत के खेमकरन को कब्जे में लेकर आगे बढ़ गए थे.

1965 की जंग में मुशर्रफ ने देखा खेमकरण

मुशर्रफ ने बताया कि वह खेमकरण की गलियों में घूमते फिरते रहे... मुशर्रफ ने दावा तो यहां तक किया कि अगर फौज को लाहौर वापसी का आदेश न मिला होता तो वे भारतीय फौज को अमृतसर के पीछे से काट देते. चैनल पर मुशर्रफ ने कहा कि खेमकरण की गलियों में मैंने स्कूटर और मोटरसाइकिलें खड़ी देखी हैं. कोई भी उठाकर मैं ले जा सकता था.

वलटुआ के आगे हमारी एक रेजिमेंट को भारी नुकसान पहुंचा. उसे शिकस्त मिली लेकिन अगर हम चलते रहते तो भारतीय सेना कभी लाहौर की ओर नहीं आती.. खेमकरण से बरकी हडियारा में ड्यूटी दी जहां से उन्हें चविंडा भेज दिया गया. 22 सितंबर को दुश्मन की गोलीबारी से एक टैंक में आग लग गई... मुशर्रफ ने बताया कि मैं उस टैंक में गया, उसमें आग लगी थी, और 3 सैनिक शहीद हो गए थे. उनके खून ने बहकर कीचड़ का रूप ले लिया था.

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अकरम नाम के एक हवलदार ने मुशर्रफ की बाहों में दम तोड़ा... मुशर्रफ ने गोले टैंक से बाहर फेंके... 3 सिपाहियों को बाहर निकाला.. रहमान सिपाही भी रेस्कयू के लिए आया जिसे बाद में तमगा ए जुर्रत मिला... अकरम को शेल का टुकड़ा पेट में दाईं ओर लगा था. मुशर्रफ के दावे एक तरफ और तथ्य एक ओर...  इसी खेमकरण में वीर अब्दुल हमीद ने पाक टैंकों की कब्रगाह बना डाली थी. 

 पाकिस्तान सेना के जनरल हेडक्वार्टर ने भारत के खिलाफ 1965 युद्ध में पाकिस्तानी सेना की जीत के दावों को झुठलाती किताब की सभी कॉपियां खरीद डालीं थी. इस किताब को पूर्व ISI चीफ ने लिखा था. The Myth of 1965 Victory by Lieutenant General Mahmood Ahmed किताब को पाक सेना ने तब खरीदा जब उसे अपनी शिकस्त की बातें इसमें लिखी होने का पता चला... सेना ने बुक की सभी 22 हजार कॉपियां खरीद डालीं.

मुशर्रफ को जिया उल हक ने साल 1988 में गिलगित और बालटिस्तान में शियाओं का जनसंख्या संतुलन बिगाड़ने के लिए चुना गया था. उन्होंने पंजाबियों और पख्तूनों को इस इलाके में बसाया. इस शिया विरोधी ऑपरेशन में मुशर्रफ ने अफगानिस्तान मिशन के दौरान संपर्क में आए ओसामा बिन लादेन की मदद ली. 

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इस जंग में युद्ध विराम 23 सितंबर 1965 को सुबह साढ़े 3 बजे हुआ... भारत ने पाक की संभवतः 710 वर्ग किलो मीटर जमीन कब्जाई जबकि भारत ने पाक के 210 वर्ग किलोमीटर इलाके को कब्जे में लिया था... हालांकि ताशकंद में दोनों देश युद्ध पूर्व की स्थित कायम करने पर एकमत हो गए थे...

चलते चलते 23 सितंबर को हुई दूसरी घटनाओं पर भी एक नजर डाल लेते हैं

1803 - ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने असाये के युद्ध में मराठा सेना को हराया
1908 - हिन्दी के मशहूर कवि रामधारी सिंह 'दिनकर' (Ramdhari Singh Dinkar) का जन्म हुआ
1935 - हिन्दी फिल्म अभिनेता प्रेम चोपड़ा (Prem Chopra) का जन्म हुआ
1918 -भारतीय सेना की 29वीं लांसर्स रेजिमेंट में रिसालदार बदलू सिंह (Badlu Singh) का निधन हुआ

Manmohan SinghPakistanPervez Musharraf1965 war

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