PFI ban explained: केंद्र सरकार ने बुधवार सुबह UAPA के तहत पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) को 5 सालों के लिए बैन कर दिया. इसके साथ ही 8 अन्य सहयोगी संगठनों पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है. इन सभी संगठनों पर टेरर लिंक के आरोप हैं. जांच एजेंसियों की छापेमारी के दौरान संगठन से जो दस्तावेज मिले हैं, उसके आधार पर दावा किया गया है कि यह संगठन देश के आंतरिक सुरक्षा के लिए बेहद ख़तरनाक हो सकते थे.
प्रवर्तन निदेशालय यानी कि ED ने कुछ दिनों पहले ही दावा किया था कि PFI ने पीएम मोदी पर हमले की साज़िश भी रची थी. इतना ही नहीं पकड़े गए लोगों के पास से जो दस्तावेज़ मिले हैं, उसमें इस बात के सबूत है कि यह संगठन धीरे-धीरे हिंदुस्तान की सत्ता पर काबिज होना चाहता था.
इस्लामिक राष्ट्र बनाने की थी साज़िश
ऐजेंसी के मुताबिक दस्तावेज़ में लिखा था कि 2047 में जब देश आजादी के 100 साल मना रहा होगा, तब तक भारत को इस्लामिक राष्ट्र बना दिया जाएगा. NIA, ED और राज्यों की पुलिस ने 22 और 27 सितंबर को PFI और उससे जुड़े सभी संगठनों पर ताबड़तोड़ छापेमारी की. दोनों राउंड की छापेमारी के बाद कुल 356 PFI कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया.
जांच एजेंसियों के मुताबिक PFI के खिलाफ पर्याप्त सबूत मिलने के बाद ही यह कार्रवाई की गई है. हालांकि PFI पर बैन लगने के बाद RJD प्रमुख लालू यादव और कांग्रेस सांसद के. सुरेश ने RSS पर भी बैन लगाने की मांग की है. ऐसे में लोगों के लिए यह समझना बेहद ज़रूरी है कि PFI संगठन क्या है? आज इसी मुद्दे पर होगी बात, आपके अपने कार्यक्रम मसला क्या है में?
8 अन्य संगठनों पर भी प्रतिबंध
PFI के साथ 8 अन्य संगठनों पर भी 5 साल का प्रतिबंध लगाया गया है. इनमें रिहैब इंडिया फाउंडेशन (RIF), कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (CFI), ऑल इंडिया इमाम काउंसिल (AIIC), नेशनल कॉन्फेडरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स ऑर्गनाइजेशन (NCHRO), नेशनल विमेन्स फ्रंट, जूनियर फ्रंट, एम्पावर इंडिया फाउंडेशन और रिहैब फाउंडेशन हैं. सरकार ने इन सभी संगठनों की गतिविधियों को देश की सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा बताते हुए कहा है कि यह सभी संगठन देश में आतंकवाद का समर्थन कर रहे हैं.
सरकार के मुताबिक इन सभी संस्थाओं के ख़िलाफ़ राजद्रोह, ग़ैर-क़ानूनी कामों में संलग्न होने, समुदायों के बीच नफ़रत फैलाने, भारत की अखंडता को नुक़सान पहुंचाने की कोशिश और आतंकवाद फैलाने जैसे संगीन आरोप हैं. जांच एजेंसियों ने दावा किया है कि पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया, यानी PFI के सदस्यों से ज़ब्त किए गए सामान में बम बनाने से जुड़ी किताबें और IED बनाने की सामग्री भी शामिल थी. सरकार के मुताबिक यह संगठन सऊदी अरब, ओमान, कुवैत पाकिस्तान, बांग्लादेश, मालदीव, श्रीलंका, बहरीन, मॉरीशस और तुर्की में भी सक्रिय है. नेपाल और बांग्लादेश के रास्ते इस संगठन को फंडिंग की जाती थी. बैंकिंग चैनल्स, हवाला और डोनेशन आदि के जरिए PFI और इससे जुड़े संगठनों के लोगों ने भारत समेत अन्य देशों से फंड इकट्ठा किया.
सरकार ने क्या कहा?
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने PFI पर बैन लगाने की अधिसूचना जारी करते हुए कहा- "PFI और इसके सभी सहयोगी संगठन या संबद्ध संस्थाएं या अग्रणी संगठन एक सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक संगठन के रूप में काम करते हैं, लेकिन ये गुप्त एजेंडा के तहत समाज के एक वर्ग विशेष को कट्टर बनाकर लोकतंत्र की अवधारणा को कमज़ोर करने की दिशा में काम करते हैं. PFI कई आपराधिक और आतंकवादी मामलों में शामिल रहा है और ये देश के संवैधानिक प्राधिकार का अनादर करता है. साथ ही ये बाहर से फंडिंग लेकर देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए एक बड़ा ख़तरा बन गया है."
PFI और अन्य सहयोगी संगठनों पर बैन लगाने के बाद कई नेताओं के बयान आ रहे हैं. उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने केंद्र सरकार के इस फ़ैसले पर ख़ुशी ज़ाहिर करते हुए ट्वीट किया, राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में संलिप्त पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) और उसके अनुषांगिक संगठनों पर लगाया गया प्रतिबंध सराहनीय एवं स्वागत योग्य है. यह 'नया भारत' है, यहां आतंकी, आपराधिक और राष्ट्र की एकता व अखंडता तथा सुरक्षा के लिए खतरा बने संगठन एवं व्यक्ति स्वीकार्य नहीं हैं.
वहीं मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता कमलनाथ ने सवाल खड़े करते हुए कहा कि ये संगठन इतने दिनों से भारत के अंदर आतंकवादी गतिविधियों में संलिप्त रहा. यह एक साल में तो पैदा नहीं हुए होंगे. फिर क्या वजह रही कि इतने सालों तक एजेंसियां आंखे मूंदे बैठी रही.
इधर राष्ट्रीय जनता दल प्रमुख लालू यादव ने कहा है कि जिस तरह PFI पर प्रतिबंध लगा है RSS पर भी प्रतिबंध लगना चाहिए. ये हिंदू मुस्लिम करके देश को तोड़ रहे हैं. वहीं सपा सांसद शफीक उर रहमान बर्क ने पीएफआई पर बैन को गलत बताया है. आपके मन में सवाल उठ रहे होंगे कि आख़िर PFI संगठन क्या है और इतने समय तक यह देश के अंदर कैसे बचा रहा?
PFI ने अपनी वेबसाइट पर ख़ुद को एक ऐसी संस्था बताया है, जिसका उद्देश्य देश में बराबरी क़ायम करना है, फिर चाहे वह सामाजिक हो या आर्थिक. इसके साथ ही वह राष्ट्रीय एकता और अखंडता की बात भी करता है. संस्था के अनुसार उसका मिशन, एक भेदभावहीन समाज की स्थापना करना है, जहां दलित, आदिवासी और अल्पसंख्यकों को उनका हक़ मिल सके.
बीबीसी से बात करते हुए समाजशास्त्री जाविद आलम ने बताया कि 1980 के दशक में उग्र हिंदुत्व का प्रसार और 1992 में बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद 'भारतीय शासन और राजनीति के प्रति मुसलमानों की सोच में' बड़ी तब्दीलियां आईं. दिल्ली की जामा मस्जिद के इमाम अहमद बुख़ारी की 'आदम सेना' से लेकर, बिहार की 'पसमांदा मुस्लिम महाज़' और मुंबई की 'भारतीय अल्पसंख्यक सुरक्षा महासंघ' सब इसी दौर में बने.
केरल में 'नेशनल डेवलेपमेंट फ्रंट' (NDF), तमिलनाडु की 'मनिथा निथि पसाराई' (MNP) और 'कर्नाटक फ़ोरम फ़ॉर डिग्निटी' (NDF) की स्थापना भी इसी दौर में हुई. हालांकि साल 2004 से ही इन तीनों संगठनों के बीच तालमेल दिखने लगा था. लेकिन साल 2006 में तीनों संगठनों ने मिलकर पॉपुलर फ्रंट इंडिया (PFI) का गठन किया था. ये संगठन शुरुआत में दक्षिण भारत के राज्यों में ही सक्रिय था, जो अब UP-बिहार समेत 23 राज्यों में फैल चुका है.