Population : क्या जनसंख्या विस्फोट के लिए एक 'वर्ग' जिम्मेदार ? NFHS की रिपोर्ट आंखें खोल देगी ?

Updated : Nov 28, 2022 20:33
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Deepak Kumar Mishra

विश्व जनसंख्या दिवस (World Poulaion Day) के मौके पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (UP CM Yogi Adityanath) ने एक बड़ा बयान देते हुए कहा कि ऐसा नहीं हो कि एक वर्ग की आबादी (Population) फुल स्पीड से बढ़े और जो मूल निवासी हैं उनकी आबादी कम हो जाए. सीएम के मुताबिक अगर ऐसा हुआ तो फिर अराजकता (Anarchy) फैलने का खतरा रहता है. योगी आदित्यनाथ ने कहा कि जिन देशों की आबादी ज्यादा होती है वहां असंतुलन चिंता का विषय है, क्योंकि इससे रिलीजियस डेमोग्राफी (Religious Demography) पर उल्टा असर पड़ता है. ऐसी स्थिति होने पर एक वक्त के बाद अराजकता और अव्यवस्था जन्म लेने लगती है. सीएम ने जनसंख्या नियंत्रण कार्यक्रम (Population Control Program) को सफलतापूर्वक आगे बढ़ाने पर जोर दिया. साथ ही जनसांख्यिकी असंतुलन पैदा न हो, इसको लेकर ताकीद भी की.  

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2023 में भारत सबसे ज्यादा आबादी वाला देश
सीएम योगी के इस बयान के बाद देश में एक बार फिर जनसंख्या नियंत्रण कानून (Population Control Law) को लेकर बहस तेज हो गई है. होना भी लाजिमी है, क्योंकि भारत (India) दुनिया का दूसरा ऐसा देश है, जहां सबसे ज्यादा जनसंख्या रहती है. आजादी (Independence) के वक्त देश की आबादी करीब 33 करोड़ थी जो अब करीब 132 करोड़ है. उधर, विश्व जनसंख्या दिवस 2022 के मौके पर संयुक्त राष्ट्र (United Nations) ने भारत को लेकर एक रिपोर्ट दी है, जिसमें कहा गया है कि अगले साल यानी 2023 में भारत दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बन सकता है. यानी भारत अगले साल जनसंख्या के मामले में चीन (China) को पछाड़ देगा. यूएन की रिपोर्ट के मुताबिक 2022 में भारत की आबादी 1.412 अरब होगी, जबकि चीन की आबादी 1.426 अरब. साथ ही इस रिपोर्ट में अनुमान जताया गया है कि 2050 में भारत की आबादी 1.668 अरब होगी और तब चीन की जनसंख्या 1.317 अरब होगी.

कितनी है देश की आबादी ?
सीएम योगी जनसंख्या बढ़ने पर चिंता तो जता रहे हैं. लेकिन यह नहीं बता रहे कि किस वर्ग की आबादी फुल स्पीड से बढ़ रही है. ऐसे में हम भी किसी वर्ग विशेष का नाम लिए बिना आंकड़ों के जरिए जमीनी हकीकत जानने की कोशिश करेंगे. इसके लिए अगर 2011 की जनगणना (Census 2011) को आधार बनाया जाए तो उस समय भारत की कुल आबादी 121. 09 करोड़ थी. अगर समुदाय की हिसाब से बात की जाए तो 2011 में हिंदू (Hindu) आबादी 96.63 करोड़ (79.8 फीसदी), मुस्लिम (Muslim) आबादी 17.22 करोड़ (14.2 फीसदी), ईसाई (Christian) 2.78 करोड़ (2.3 फीसदी), सिख (Sikh) 2.08 करोड़ (1.7 फीसदी), बौद्ध (Buddhist) 0.84 करोड़ (0.7 फीसदी), जैन (Jain) 0.45 करोड़ (0.4 फीसदी) थी. 

2001-2011 तक किसकी आबादी कितनी बढ़ी ?
2011 की जनगणना के मुताबिक 2001-2011 तक भारत की आबादी में करीब 17.7 फीसदी की बढ़ोतरी हुई. अगर अलग-अलग धर्मों की बात की जाए तो इस दौरान हिंदू आबादी में 16.8 फीसदी, मुस्लिम 24.6 फीसदी, ईसाई 15.5 फीसदी, सिख 8.4 फीसदी, बौद्ध 6.1 फीसदी और जैन आबादी में 5.4 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई. उधर, साल 2015 में सामने आए अमेरिकी थिंक टैंक (American think tank) प्यू रिसर्च सेंटर (Pew Research Center) के मुताबिक साल 2050 तक दुनिया में सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी (Muslim Population) भारत में होगी, जो 30 करोड़ तक पहुंच जाएगी. बावजूद इसके भारत में हिंदू धर्म (Hindu Religon) को मानने वाले ही बहुसंख्यक रहेंगे.

भारत में प्रजनन दर कितनी है ?  
आमतौर पर जनसंख्या वृद्धि की दर को लेकर एक धारणा है कि मुस्लिम समुदाय की प्रजनन दर (Fertility Rate) अधिक होती है. लेकिन स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (Ministry of Health and Family Welfare) की ओर से किए गए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (National Family Health Survey) के आंकड़े इसके उलट तस्वीर पेश कर रहे हैं. एनएफएचएस (NFHS) के ताजा आंकड़े बताते हैं कि भारत में सभी समुदायों में प्रजनन दर गिर गई है. पिछले दो दशकों की बात करें तो सभी धार्मिक समुदायों में मुस्लिम समुदाय की जनसंख्या में सबसे ज्यादा गिरावट देखी गई है. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (NFHS) के आंकड़ों के मुताबिक भारत में प्रजनन दर गिरकर 2 फीसदी पर आ गई है. वहीं इस रिपोर्ट से पता चलता है कि देश में मुस्लिम समुदाय के प्रजनन दर में सबसे तेज गिरावट हुई है. इस सर्वे की मानें तो 1992-93 में मुस्लिम समुदाय में प्रजनन दर जहां 4.4 फीसदी थी.  वहीं 2015-16 में घटकर 2.6 फीसदी रह गई. इसके अलावा 2019-21 के सर्वे में ये दर 2.3 फीसदी ही रह गई है.  

ज्यादा बच्चों का आधार
आमतौर पर देश का एक वर्ग जनसंख्या वृद्धि को धर्म से जोड़ कर देखता है. मगर सही मायने में जनसंख्या का संबंध किसी धर्म से नहीं, बल्कि जीवन स्तर (Living Standard) से माना जाता है. जिस समाज का जीवन स्तर जितना ऊंचा होता है. वहां आमतौर पर कम बच्चा पैदा करने की प्रवृति होती है. व्यक्ति एक बार जब समाज में एक ऊंचे जीवन स्तर पर पहुंच जाता है, तो उसे बरकरार रखने की हरसंभव कोशिश करता है. ऐसे में वो कम बच्चे पैदा कर अपने खर्च को सीमित रखता है ताकि अपने जीवन स्तर ऊंचा रख सके.

योगी के बयान पर फुल स्पीड में सियासत 
सीएम योगी के बयान पर देश में सियासत भी तेज हो गई है. पूर्व केंद्रीय मंत्री (Former Union Minister) और बीजेपी के सीनियर नेता मुख्तार अब्बास नकवी (Senior BJP leader Mukhtar Abbas Naqvi) ने जनसंख्या नियंत्रण को लेकर बड़ा बयान दिया है. अपने एक ट्वीट (Tweet) में नकवी ने लिखा है- "बेतहाशा जनसंख्या विस्फोट किसी मज़हब की नहीं, मुल्क की मुसीबत है, इसे जाति, धर्म से जोड़ना जायज़ नहीं". इससे पहले केंद्रीय मंत्री और बीजेपी के फायरब्रांड नेता गिरिराज सिंह (Union Minister Giriraj Singh) ने एक ट्वीट किया, जिसमें उन्होंने लिखा- "बढ़ती आबादी भारत के संसाधनों, सामाजिक समरसता और विकास को दीमक की तरह खा रही है. जरूरत है ऐसे जनसंख्या नियंत्रण कानून की जो सभी धर्मों पर समान रूप से लागू हो और 8-8/10-10 बच्चे पैदा करने वाली विकृत मानसिकता पर भी अंकुश लगे." वहीं  इस कानून को लागू करने की बहस के बीच AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) ने तंज कसा और कहा कि विश्व जनसंख्या दिवस के मौके पर संघ (RSS) के लोग फेक न्यूज फैलाएंगे. उन्होंने कहा कि भारत की प्रजनन दर रीप्लेसमेंट लेवल नीचे है. कोई जनसंख्या विस्फोट नहीं है. देश में एक स्वस्थ और प्रोडक्टिव युवा आबादी तैयार करने की जरूरत है.

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साफ है कि जिस मुद्दे को लेकर देश में एक खास वर्ग को निशाना बनाया जा रहा है. वो सच्चाई से परे है. कम से कम आंकड़ें तो इसी तरफ इशारा कर रहे हैं. वैसे भी देश में काफी वक्त से जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाए जाने की मांग हो रही है. इस कानून की मांग इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) के जमाने से होती आ रही है. इसके बाद से न जाने कितनी सरकारें आई और चली गई, लेकिन देश में जनसंख्या नियंत्रण कानून को लागू करने की जहमत किसी ने नहीं उठाई. 

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