Coal Shortage in India: दिल्ली की सर्दी तो आपने फिल्मी गानों में भी सुना है. लेकिन इस बार बात होगी दिल्ली की गर्मी की. अप्रैल महीने में दिल्ली में अधिकतम तापमान (Delhi Temperature) 43.5 डिग्री दर्ज किया गया है, जो महीने के हिसाब से पिछले 12 सालों में सबसे अधिक है.
अप्रैल महीने में दिल्ली का सबसे अधिक तापमान 45.6 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया था, साल 1941 में. हालांकि दिल्ली से सटे गुरुग्राम (Gurugram) में तापमान 45 डिग्री पार कर गया है. ऐसे में देशभर में बिजली की मांग बढ़ती जा रही है, लेकिन कोयले की कमी (Coal Crisis) के गहराते संकट के बीच देश के एक चौथाई पावर प्लांट बंद हैं. इस वजह से 16 राज्यों में 10 घंटे तक की बिजली कटौती शुरू हो चुकी है.
बिजली कटौती का असर राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली समेत, यूपी, महाराष्ट्र, राजस्थान, बिहार और कई अन्य राज्यों में दिखने लगा है. बिजली कटौती की असल वजह देश के एक चौथाई बिजली प्लांट्स का बंद होना है. इनमें से 50% प्लांट कोयले की कमी के चलते बंद हैं.
कोल इंडिया (Coal India) ने भी माना है कि बिजली उत्पादन के लिए प्रतिदिन 22 लाख टन कोयला जाता रहा है. जबकि फिलहाल उनकी तरफ से रोजाना 16.4 लाख टन कोयले की ही सप्लाई की जा रही है. सबसे पहले जानते हैं कि देश में बिजली उत्पादन का गणित क्या है?
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ऊर्जा मंत्रालय के मुताबिक, देश के 18 बिजलीघर यानी कि पिटहेट प्लांट जो कोयला खदानों के मुहाने पर हैं, उनमें तय मानक का 78% कोयला ही मौजूद है. जबकि दूर दराज के 147 बिजलीघर यानी कि नॉन-पिटहेट प्लांट में मानक का औसतन 25% कोयला उपलब्ध है. यदि इन बिजलीघरों के पास कोयला स्टॉक तय मानक के मुताबिक होता तो पिटहेट प्लांट 17 दिन और नॉन-पिटहेट प्लांट्स 26 दिन चल सकते हैं. देश के कुल 173 पावर प्लांट्स में से 106 प्लांट्स में कोयला शून्य से लेकर 25% के बीच ही है.
देश में बिजली की जितनी मांग है, उसका 70 फीसदी, सिर्फ कोयले से बनता है. साल 1973 में कोयला खदानों के राष्ट्रीयकरण के बाद से अधिकतर कोयले का उत्पादन, सरकारी कंपनियां ही करती हैं. भारत में 90 फ़ीसदी से अधिक कोयले का उत्पादन कोल इंडिया करती है. कुछ खदानें बड़ी कंपनियों को भी दी गई हैं, इन्हें कैप्टिव माइन्स कहा जाता है. इन कैप्टिव खदानों का उत्पान कंपनियां अपने संयंत्रों में ही ख़र्च करती हैं.
भारत में जितना कोयला खपत होता है उसका तीन-चौथाई हिस्सा सिर्फ बिजली उत्पादन पर खर्च होता है. एक नजर देश के उन थर्मल पावर प्लांट्स पर डालते हैं जहां कोयले से ही बिजली उत्पादन होता है.
भारत के पास कुल 300 अरब टन कोयले का भंडार है. इसके बावजूद भारत, इंडोनेशिया, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका जैसे देशों से बड़ी मात्रा में कोयले का आयात कर रहा है. एक अनुमान के मुताबिक साल 2023 तक भारत में कोयले की मांग एक अरब टन पार हो जाएगी.
कोल इंडिया ने साल 2030 के लिए अपने दृष्टिपत्र में तापीय कोयले की मांग 115 करोड़ टन से 175 करोड़ टन रहने की भविष्यवाणी की है. भारत कोयला उत्पादन के मामले में तीसरा सबसे बड़ा देश है. यही वजह है कि यहां बिजली उत्पादन के लिए मुख्य तौर पर कोयला का इस्तेमाल किया जाता है.
भारत जैसे विकासशील देश में ऊर्जा के बिना बेहतर अर्थव्यवस्था की कामना नहीं की जा सकती. भारत में बिजली कटौती की यह हालत तब है जब खपत के मामले में भारत दुनिया के कई देशों के मुकाबले काफी पिछड़ा है.
यानी भारत में बिजली की खपत, वैश्विक औसत की एक-तिहाई ही है. जबकि कोयले को लेकर भारत की दूसरे देशों पर निर्भरता, 23 फीसदी पर पहुंच गई है.
भारत दुनिया के उन पांच देशों में से एक है जहां कोयले के सबसे बड़े भंडार हैं. दुनिया में कोयले के सबसे बड़े भंडार अमेरिका, रूस, ऑस्ट्रेलिया, चीन और भारत में हैं. भारत में इन राज्यों में कोयला का सबसे बड़ा भंडार माना जाता है.
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इसके अलावा आंध्र प्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश, मेघालय, असम, सिक्किम, नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश में भी कोयला मिला है. बीते एक दशक में भारत की कोयले की खपत लगभग दोगुनी हो गई है. देश अच्छी गुणवत्ता का कोयला आयात कर रहा है और उसकी योजना आने वाले सालों में कई दर्जन नई खदान खोलने की है.
अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा समिति के अनुसार, भारत में अगले 20 सालों में ऊर्जा की ज़रूरत किसी भी देश से सबसे अधिक होगी. और भारत में अभी भी कोयला ही सबसे सस्ता ईंधन है.
कोयला वायु प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण भी है और भारत पर अपने पर्यावरण लक्ष्य हासिल करने का दबाव भी है. ऐसे में भारत अक्षय ऊर्जा स्रोतों का विकास भी कर रहा है. लेकिन विश्लेषकों की माने तो भारत के लिए कोयले से दूरी बनाना आसान नहीं होगा. हालांकि कोयला उत्पादन की भी चुनौतियां हैं.
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पूरे देश में कोयले की कमी की वजह से हो रही बिजली कटौती को लेकर रेल मंत्रालय ने बड़ा कदम उठाया है. रेलवे ने पावर प्लांट्स तक कोयले की तेजी से सप्लाई के लिए 24 मई तक कई पैसेंजर ट्रेनों को रद्द कर दिया है, ताकि कोयला ले जा रही मालगाड़ियां समय पर निर्धारित स्टेशनों पर पहुंच सकें.
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या सरकार के इस प्रयास से बिजली कटौती की समस्या समाप्त हो जाएगी या संकट और गहराने वाला है?