Prophet Muhammad Contempt Controversy: BJP की निलंबित नेता नूपुर शर्मा (Nupur Sharma) के पैगंबर मोहम्मद साहब को लेकर दिए आपत्तिजनक बयान ने ना केवल खाड़ी देशों को भारत के विरोध में ला खड़ा किया है. बल्कि अमेरिका और पाकिस्तान जैसे देश को भी भारत पर दबाव बनाने का मौका दिया है. अगस्त 2019 में जब पाकिस्तान, कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने को लेकर भारत का विरोध कर रहा था तो अरब देशों ने इसपर ज्यादा तवज्जों नहीं दिया. इतना ही नहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को UAE के सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'ऑर्डर ऑफ जायद' से सम्मानित किया गया था. वहीं सऊदी अरब और UAE के प्रमुख सहयोगी देश बहरीन ने भी पीएम मोदी को किंग हमद पुरस्कार से नवाजा था.
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खाड़ी के देशों कुवैत, सऊदी अरब, कतर, ओमान, बहरीन और UAE के साथ भारत का मजबूत आर्थिक रिश्ता है. लेकिन नुपूर शर्मा के विवादित बयान के बाद इन सभी देशों ने भारत की आलोचना की है. हालांकि निंदा अभियान के बाद BJP ने दोनों प्रवक्ताओं को जरूर निलंबित कर दिया, लेकिन सवाल उठता है कि इस प्रकरण के बाद भी क्या भारत के संबंध खाड़ी देशों के साथ गर्मजोशी वाले बने रहेंगे?
यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि मार्च 2019 में UAE ने जब भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को न्योता दिया था तो पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने धमकी दी थी कि वह ओआईसी की बैठक का बहिष्कार करेंगे. लेकिन UAE ने कुरैशी की धमकी को खारिज कर दिया... और तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने ओआईसी की बैठक को संबोधित किया.
सोचिए पाकिस्तान को इस्लामिक देशों के संगठन का बहिष्कार का सामना करना पड़ा था, वो भी भारत के लिए... यह अपने आप में दुर्लभ था. लेकिन पैगंबर विवाद को लेकर ओआईसी ने भी पाकिस्तान के सुर में सुर मिलाते हुए भारत के खिलाफ जहरीला बयान दिया है...
एक डर यह भी है कि अमेरिका, भारत और खाड़ी देशों के बीच तल्ख रिश्तों का रूस को लेकर फायदा उठा सकता है और आने वाले समय में नई दिल्ली पर दबाव बढ़ा सकता है. बाइडन प्रशासन भारत की रूस नीति से खुश नहीं है. अमेरिका की हाल में आई वार्षिक धार्मिक स्वतंत्रता रिपोर्ट भी इस बात की तस्दीक करती है. क्योंकि रिपोर्ट के बहाने अमेरिका ने धार्मिक स्वतंत्रता को लेकर भारत की कड़ी आलोचना की है.
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हालांकि मुस्लिम देशों से तीखी प्रतिक्रिया के बाद सरकार तो सफाई दे ही रही है. BJP भी डैमेज कंट्रोल के मूड में दिख रही है. BJP ने धार्मिक भावनाएं आहत करने वाले अपने 38 नेताओं की पहचान की है. इनमें से 27 चुने हुए नेताओं को बयान देने से बचने की हिदायत दी है. इनसे कहा गया है कि धार्मिक मुद्दों पर बयान देने से पहले पार्टी से परमिशन ले लें.
RSS प्रमुख मोहन भागवत ने भी पिछले हफ्ते ही ज्ञानवापी मुद्दे पर भड़काऊ बयानबाजियों से बचने की नसीहत दी थी. उन्होंने दो टूक कहा था कि हर मस्जिद में 'शिवलिंग' क्यों ढूंढना. संघ अब किसी मंदिर के लिए आंदोलन नहीं चलाएगा क्योंकि अयोध्या मूवमेंट पूरा हो चुका है...
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तो क्या यह मान लिया जाए कि अब कम से कम पार्टी की तरफ से ध्रुवीकरण वाली बयानबाजी नहीं होगी? क्या पीएम मोदी के लिए भी यह सही समय होगा कि वह कट्टर हिंदुत्व वाले छवि से बाहर निकल जाएं?