Ramanand Sagar : जब नवीन पटनायक के पिता ने रामानंद सागर को पाकिस्तानी सैनिकों से बचाया | Jharokha

Updated : Dec 13, 2022 15:03
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Mukesh Kumar Tiwari

Ramanand Sagar : चंद्रमौली चोपड़ा कहिए या रामानंद सागर.. दिसंबर 1917 को जन्मे और 12 दिसंबर 2005 को आज ही के दिन उनका निधन हुआ... टीवी शो रामायण (Ramanand Sagar's Ramayan) बनाकर उन्होंने खुद को अमर कर दिया.. भारत सरकार ने साल 2000 में कला और सिनेमा में उनके योगदान के लिए उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया... लेकिन ये कहानी इतनी सी है... रामानंद सागर की कहानी में एक किरदार पड़ोसी देश पाकिस्तान भी है, जहां उनका जन्म हुआ था... 

1947 में जब देश आजाद हुआ तब वह 30 साल के थे और कई साल पहले परिवार कश्मीर आकर बस चुका था... सब ठीक ठाक ही चल रहा था लेकिन अचानक पाकिस्तान के हमले और कबायलियों के आतंक ने रामानंद सागर और उनके परिवार की जिंदगी बदलकर रख दी... आतंकी हमलों के बीच तब पायलट बीजू पटनायक हवाई जहाज लेकर उन्हें बचाने पहुंचे थे...

वही बीजू पटनायक (Biju Patnaik), जो खुद भी ओडिशा के सीएम रहे और अभी उनके बेटे नवीन पटनायक (Naveen Patnaik) ओडिशा के मुख्यमंत्री हैं...

अक्टूबर 1947 में पाकिस्तानी सेना-कबाइलियों ने किया कश्मीर पर हमला

27 अक्टूबर 1947, 30 साल के रामानंद सागर पत्नी, 5 बच्चों, सास, साले और उनकी पत्नी के साथ पूरी रात श्रीनगर के पुराने हवाई अड्डे की दीवार से चिपके रहे...गोलियों की आवाज रात भर उन्हें डराती रही... 

पाक सेना की मदद से 10 हजार जिहादी मुस्लिम कबायली बारामूला पहुंचने के बाद श्रीनगर के लिए बिजली की लाइन काट चुके थे... राजधानी में अंधेरी छा गया था.. लूट, अपहरण, बलात्कार का खेल शुरू हो चुका था... 

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27 अक्टूबर दिवाली के आसपास का वक्त था...  राज्य की सेना ने धान के खेत में पटाखे रखवा दिए थे... कुछ कुछ देर में इन्हें फोड़ा जाता.. ये शोर कबायलियों को रोककर रखे हुए था... रामानंद सागर के परिवार के 13 सदस्यों सहित वहां मौजूद सभी शरणार्थियों की आंख में मौत का डर हावी था...

सभी के चेहरे जर्द हो चुके थे... बच्चों की आंखों में भी दहशत तैर रही थी... अगर दुश्मन बची हुई इस आखिरी उम्मीद हवाई पट्टी को काट देता तो मतलब था श्रीनगर पर जीत... और कश्मीर पर डोगरा राजवंश का अंत...

कशअमीर को बचाने के लिए जमीनी रास्ते ठीक नहीं थे... दुर्गम पहाड़ों के जरिए दूर इलाकों में पहुंचना नामुमकिन था ... सो सिर्फ हवाई मार्ग ही आखिरी उम्मीद था... एक हफ्ते फंसे शरणार्थियों को बचाने के लिए यही रास्ता था...

डकोटा विमान से श्रीनगर हवाई अड्डे पर उतरे थे बीजू पटनायक

उस सुबह डकोटा इंजन की धीमी आवाज ने रामानंद सागर और परिवार के सदस्यों में आशा की किरण जगा दी... बीजू पटनायक जहाज के पायलट थे... उनके डीसी3 विमान ने जमीन पर पूरा चक्कर लगाया और साढ़े 8 बजे इंजन के तेज आवाज के साथ रुका... 

ये RIAF स्क्वॉड्रन नंबर 13 का डगलस डकोटा विमान था जो दिल्ली से विंग कमांडर केएल भाटिया की देखरेख में सुबह 6 बजे पालन एयरपोर्ट से उड़ा था..

जहाज देखकर सभी पागलों की तरह उसकी ओर भागे... हड़बड़ी में एक बाल्टी किसी के हाथ से छूट गई थी.. बेटे प्रेम सागर ने इसे झट से उठा लिया... ये पीतल की वह बाल्टी और एकमात्र घर का सामान था जिसे परिवार पाकिस्तान से बंबई लेकर आया था...

रामानंद सागर का ट्रंक देखकर भड़क गए थे बीजू पटनायक

तब रामानंद सागर ने सिर पर एक बड़ा ट्रंक उठाया हुआ था... यह ट्रंक किसी तिजोरी जैसा लग रहा था..

सभी भागकर डकोटा डीसी3 के खुले दरवाजे तक पहुंच गए... भीड़ उमड़ रही थी और पूरी तरह भ्रम और खलबली में अंदर चढ़ने की कोशिश कर रही थी... विमान का दरवाजा 6-8 फीट ऊंचा था... कर्मी दल चिल्लाने लगा सिर्फ शरणार्थी... कोई सामान नहीं... शरणार्थी खुद को बचाने के लिए छोटा मोटा सामान वहीं फेंकने लगे. 

रामानंद सागर के सिर पर बड़ा ट्रंक देखकर कर्मीदल ने परिवार के किसी भी सदस्य को विमान में चढ़ाने से इनकार कर दिया. हो हल्ला मचा हुआ था.. हताश शरणार्थी धक्का मुक्की कर रहे थे.. रामानंद सागर जोर से चिल्लाए ट्रंक मेरे साथ ही जाएगा, वर्ना परिवार का कोई नहीं जाएगा..

इंजन की तेज आवाज ने अफरातफरी और बढ़ा दी... रामानंद सागर टस से मस नहीं हुए... उन्होंने ट्रंक को विमान के फर्श पर अंदर धकेल दिया.. पायलट बीजू पटनायक ने रामानंद सागर को घूरकर देखा और गुस्से से चिल्लाए... ओ लालची आदमी, तू अपना धन साथ लेकर जा रहा है. और लोगों की जान की कीमत. बीजू पटनायक ने ट्रंक को बाहर धकेलने की कोशिश की.

एक महिला ने किया था रामानंद सागर का बचाव 

तभी एक मोटी तगड़ी पंजाबी जाटनी ने केवल ट्रंक को ही विमान में नहीं धकेला बल्कि रामानंद सागर को भी उठाकर विमान में फेंक दिया... उसने पायलट से कहा- तुझे शर्म नहीं आती... 4 दिन से हमने कुछ खाया नहीं है. पायलट बीजू शांत तो हो गए थे लेकिन वह ट्रंक के पास आए और उसे खोलने के लिए कहा... जब ट्रंक खोला गया तो उसमें मिले रामानंद सागर के उपन्यास के नोट्स... विभाजन के अनुभव, बरसात फिल्म की स्क्रिप्ट... रामानंद सागर रो दिए.... बोले- हां यही मेरे हीरे जवाहरात हैं जो मैं लेकर जा रहा हूं...

बीजू पटनायक ने अगले ही पल रामानंद सागर को गले से लगा लिया... विमान में शोर मचाती भीड़ में भी जोश बढ़ गया था... बता दें कि बहुमुखी प्रतिभाशाली बीजू पटनायक दो बार उड़ीसा के मुख्यमंत्री रहे... वह असम के राज्यपाल भी बने और इंडियन एयरलाइंस को कमर्शल रूप से शुरू करने का श्रेय भी उन्हीं का ही है.

लाहौर के पास असल गुरु में हुआ था रामानंद सागर का जन्म

बात करें रामानंद सागर की तो उनका जन्म लाहौर के पास असल गुरु में हुआ था. उनके परदादा, लाला शंकर दास चोपड़ा, लाहौर से कश्मीर चले आए थे. रामानंद को उनकी नानी ने गोद लिया था. उस समय उनका नाम 'चंद्रमौली चोपड़ा' से बदलकर 'रामानंद सागर' कर दिया गया था.

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सागर की मां की मृत्यु के बाद उनके पिता ने दूसरी शादी की और इस शादी से पिता के जो बच्चे हुए उसमें विधु विनोद चोपड़ा भी थे. इस तरह रामानंद सागर और विधु विनोद चोपड़ा सौतेले भाई हुए... सागर ने चपरासी, ट्रक क्लीनर, साबुन बेचने वाले जैसे काम किए और डिग्री पाने के लिए रात में पढ़ाई की...

वह 1942 में पंजाब विश्वविद्यालय से संस्कृत और फारसी में गोल्ड मेडलिस्ट रहे. वह अखबार डेली मिलाप के संपादक भी थे. उन्होंने "रामानंद चोपड़ा", "रामानंद बेदी" और "रामानंद कश्मीरी" जैसे नामों से कई लघु कथाएँ, उपन्यास, कविताएँ, नाटक आदि लिखे. 1942 में उन्हें टीबी हो गया तो उन्होंने अपनी बीमारी के बारे में "डायरी ऑफ़ ए टी.बी. पेशेंट" लिखी. यह कॉलम लाहौर में अदब-ए-मशरिक मैगजीन में छपा था...

चलते चलते 12 दिसंबर को हुई दूसरी घटनाओं पर एक नजर डाल लेते हैं

1800: वाशिंगटन डीसी को अमेरिका की राजधानी बनाया गया

1911: भारत की राजधानी कलकत्ता से दिल्ली शिफ्ट की गई

1923: इटली में पो नदी डैम फटने से 600 लोगों की मौत हुई

1958: गिनि संयुक्त राष्ट्र संघ का सदस्य बना

1963: केन्या आजाद हुआ

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