Why Elephants banned in R-Day: राजपथ पर कभी शान से निकलती थी हाथी की सवारी, जानें क्यों कर दिया गया बैन?

Updated : Jan 26, 2023 13:25
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Mukesh Kumar Tiwari

Why Defence Ministry bans Elephants from R-Day Parade : गणतंत्र दिवस की परेड (Republic Day Parade) आज वैसी बिल्कुल नहीं है, जैसी यह पहली बार थी... इस परेड में कई बदलाव आए हैं. परेड का स्थल बदल चुका है, प्रदेश की झाकियां मॉडर्न हो चुकी हैं, सैनिक साजो सामान अब और भी घातक दिखाई देते हैं... हालांकि एक बदलाव और भी है जिसपर कम ही लोगों का ध्यान जाता है, और वो ये कि अब परेड में हाथियों (Elephants in R-Day Parade) की मौजूदगी नहीं दिखाई देती है. क्या आपने कभी ये सोचने की कोशिश की है कि आखिर गणतंत्र दिवस परेड से हाथी आउट क्यों हो गए? (Why Elephants banned in R-Day Parade) आइए आज हम इसी को समझने की कोशिश करते हैं...

2008 में हाथियों ने मचाया था गणतंत्र दिवस परेड में उत्पात || In 2008, elephants created nuisance in the Republic Day parade

गणतंत्र दिवस परेड से हाथियों (Elephants in Republic Day Parade) को बाहर किए जाने की एक से ज्यादा वजहें सामने आती हैं. इसमें से एक है 2008 में परेड के दौरान हाथियों का मचाया उत्पात... जिसने सुरक्षा को लेकर घोर चिंताएं खड़ी कर दी थी. 2008 में दो हाथियों ने परेड के दौरान राष्ट्रपति (President of India) के मंच के नजदीक पहुंचने पर उत्पात मचाया था.

नतीजा ये रहा कि 2009 में 3 दशक बाद ऐसा हुआ जब परेड से हाथियों को बाहर किया गया था... इन्हीं हाथियों पर बहादुरी पुरस्कार से सम्मानित बच्चे बैठकर निकलते थे. 

हाथियों का कब्ज बना बवाल की वजह || Constipation of elephants became the reason for the ruckus

परेड में हाथियों का इस्तेमाल रोकने को लेकर एक और वजह बताई जाती है... दरअसल, हाथी पर जो खर्च दिया जाता था उसे महावत चट कर जाते थे और कई हाथियों को कब्ज की बात पर बखेड़ा खड़ा हो गया था.. इस वजह से भी इस परंपरा को रोकना पड़ा.

दरअसल, बहादुर बच्चों की सवारी के लिए दिल्ली सरकार का राजस्व विभाग (Revenue Department of Delhi Government), रक्षा मंत्रालय (Ministry of Defence) के अनुरोध पर वैरिफाइड पालतू या माइक्रो चिप लगी हथनियां किराए पर लेता था. हथनियों का किराया, उनके चारे का खर्च और महावत की फीस का भुगतान भी होता था. 2008 में 11 हथनियों के लिए प्रति हथिनी 7 हजार रुपये के रेट से भुगतान किया गया था.

परेड से 10 दिन पहले से यानी 17 जनवरी से हथनियों का ठिकाना दिल्ली का चिड़ियाघर (Delhi Zoo) बन जाता था. महावत हथनियों पर खर्च से हाथ खड़े कर देते और चिड़ियागर अथॉरिटी को ही हथनियों के भोजन का बंदोबस्त करना पड़ रहा था. दवा का बोझ भी प्रशासन पर ही आता... 

परेड में हथनियां राजपथ (Rajpath) लीद से गंदा न करें इसलिए उन्हें बाकायदा कब्ज की दवा दी जाती, केरल से सजाने का सामान मंगाया जाता. इस दवा के इस्तेमाल ने ही बवाल पैदा कर दिया... इसे अत्याचार बताया गया... कई संस्थाओं ने पत्र लिखे और मामला संसद में भी उठा. जानवरों के अधिकारों पर काम करने वाले संगठन भी हाथियों के इस्तेमाल को रोकने की मांग करने लगे थे.

मामला तत्कालीन रक्षा मंत्री ए.के.एंटनी (A. K. Antony) तक पहुंचा जो खुद केरल से थे और वहां पालतू हाथियों की हिंसा में कई लोगों के मारे जाने की घटना हो चुकी थी, सो उन्होंने ही हाथियों को परेड से बाहर करने के फैसले पर मुहर लगा दी.

ये भी देखें- Gantantra Diwas 2022: पहली बार कहां मनाई गई थी 26 जनवरी? जानें रोचक फैक्ट्स

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