Indian Rupee hits record low: आज बात गिरते हुए रुपये की. जो डॉलर के मुकाबले गिरकर लगभग 80 रुपये पर पहुंच गया है. मंगलवार को रुपये एक डॉलर के मुकाबले (rupee vs dollar) 32 पैसे की गिरावट के साथ 77.77 रुपये तक जा लुढ़का. जो अब तक की सबसे बड़ी गिरावट है या यूं कहें ऐतिहासिक गिरावट है. साल 2008 से तुलना करें तो तब के मुकाबले रुपये की कीमत आधी रह गई है. कैसे, समझते हैं?
साल 2008 में एक डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत करीब 43 रुपये थी. यानी कि 2008 में अगर अमेरिका में आपको कोई चीज खरीदने के लिए 43 रुपये देने पड़ते तो अब उसे खरीदने के लिए आपको लगभग 78 रुपये खर्च करने होंगे. और आसान कर देते हैं. फर्ज कीजिए आप एक किलो सेब खरीदते हैं. 2008 में इसे खरीदने के लिए आपको 43 रुपये खर्च करने होते लेकिन अब उसे खरीदने के लिए आपको 78 रुपये खर्च करने होंगे. यानी तब के मुकाबले डॉलर का रेट दोगुना बढ़ चुका है और रुपये की कीमत आधी हो गई है.
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अब सवाल उठता है कि रुपये की कीमत अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में गिरने से आपको क्या नुकसान होगा? भारत बाकी देशों से कई सामान आयात करता है. जैसा कि आप जानते हैं अंतर्राष्ट्रीय व्यापार डॉलर में होता है. ऐसे में भारत को कोई भी सामान खरीदने के लिए पहले के मुकाबले दोगुने पैसे खर्च करने पड़ेंगे. रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से पहले ही कच्चे तेलों के दाम आसमान पर है. ऐसे में हमें महंगाई की वजह से तो ज्यादा पैसा देना ही होगा.
वहीं रुपये के दाम गिरने की वजह से महंगाई का दोगुना पैसा भारत को देना होगा. भारत में डीजल-पेट्रोल के दाम पहले से सौ के पार हैं. जिसका असर यह हुआ है कि खाने-पीने से लेकर घर बनाने तक सब कुछ बहुत महंगा हो चुका है. ऐसे में रुपये के गिरते भाव ने और भी मुसीबत खड़ी कर दी है. SBI के अर्थशास्त्रियों की मानें तो महंगाई आने वाले समय में और भी बढ़ने वाली है.
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इन दिनों सोशल मीडिया पर पीएम मोदी का एक पुराना बयान खूब वायरल हो रहा है. इस वीडियो में रुपये के गिरते दामों के लिए मोदी, मनमोहन सिंह सरकार की नीतियों को कोसते नजर आ रहे हैं. तब वह गुजरात के मुख्यमंत्री हुआ करते थे और लेकिन अब मोदी, खुद प्रधानमंत्री हैं...
सरकार में रहते हुए अपनी सरकार को बचाने के लिए मनमोहन सिंह के दौर में भी बयान आते थे और अब भी आ रहे हैं. विपक्षों की बयानबाजी के बीच यह समझना बेहद जरूरी है कि आखिर मौजूदा दौर में रुपये की कीमत क्यों गिर रही है और इसके लिए कौन से फैक्टर जिम्मेदार है.
SBI के अर्थशास्त्रियों ने आने वाले समय में महंगाई और ज्यादा बढ़ने की बात कही है. क्या वह रुपये की अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में गिरते कीमत की वजह से है?
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कुल मिलाकर देखें तो अर्थशास्त्रियों को उम्मीद है आने वाले समय में हालात ठीक हो सकते हैं. लेकिन फिलहाल भारतीयों को महंगाई की मार झेलनी होगी. क्योंकि कच्चे तेल, सोना और अन्य धातुओं की कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजार में तय होती हैं. ऐसे में रुपये की बिगड़ रही हालत, हमें ज्यादा विदेशी मुद्रा खर्च करने के लिए मजबूर करेगा. ज्यादा पैसा जाना यानी राजकोषीय घाटा और इसे बनाए रखने के लिए आम लोगों को ज्यादा जेब ढीली करनी होगी.
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