Hyderabad State in India : भारत पर जब अंग्रेजों का शासन था तब ऐसी कई रियासतें थीं जिनसे ब्रिटिश हुकूमत के संबंध बेहद प्रगाढ़ थे. ऐसी ही एक रियासत थी हैदराबाद रियासत. हैदराबाद रियासत ने न सिर्फ 1857 की क्रांति में ब्रिटिश हुकूमत का साथ दिया था बल्कि अपनी सल्तनत में उठे बगावती तेवर भी कुचल दिए थे. आइए आज जानते हैं हैदराबाद की हुकूमत की धमक के बारे में जिसकी गूंज लंदन तक सुनी जाती थी.
1876 वो साल था जब भारत में 1857 की क्रांति को गुजरे 19 साल हो चुके थे... भारत की नामचीन रियासत हैदराबाद के प्रधानमंत्री सालार जंग (Salar Jung I) इस दर्मियान यूरोप गए हुए थे... पेरिस पहुंचते ही वह जिस ग्रैंड होटल (Grand Hotel Paris) में ठहरे थे उसकी सीढ़ियों पर ही उनका पैर फिसल गया.
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नतीजा ये हुआ कि उनकी बाईं जांघ की हड्डी टूट गई. डॉक्टरों ने उन्हें आराम के लिए कहा... उन्हें पेरिस में बस एक ही दिन रुकना था और फिर इंग्लैंड रवाना हो जाना था. लेकिन चोट ने ऐसा सितम दिया कि इंग्लैंड की यात्रा में 2 हफ्ते की देरी हो गई.
जैसे ही सालार जंग के पेरिस में ठहरने की खबर फैली, हैदराबाद की धमक होटल में दिखाई देने लगी... कई लोकल विजिटर्स अजीबो गरीब रिक्वेस्ट करते करते ग्रैंड होटल में आने लगे... वे वहां आते और अजीब अजीब से निवेदन करते... वे सभी हैदराबाद निज़ाम की अकूत दौलत के बारे में जानते थे...
पेरिस के टेलर, हैट बनाने वाले, शू मेकर्स, जौहरी और कई दूसरे लोग हैदराबाद में काम की कोशिश में सालार जंग को देखने की कतार में लग गए... कुछ तो आर्थिक मदद के लिए भी आगे आए, कुछ हैदराबाद के प्रधानमंत्री की शान में कविताएं कहने के लिए आए...
हर रोज 20 से 30 विजिटर्स वहां आने लगे थे... इसे देखकर सालार जंग ने अपने प्राइवेट सेक्रेटरी सैयद हुसैन बिलग्रामी से मजाक में कहा था कि वह जिस दौर से गुजर रहे थे, वह "पेरिसियन पर्सिक्यूशन" है, यानी पेरिस से मिला उत्पीड़न है.. मई के अंत तक, सर सालार जंग इंग्लैंड की अपनी यात्रा फिर से शुरू करने लायक हो चुके थे, हालांकि चोट अब भी पूरी तरह ठीक नहीं हुई थी.
सालार जंग की ये कहानी इसलिए क्योंकि हैदराबाद के पांचवे निजाम अफजाल उद दौला का जन्म 1827 में आज ही के दिन हुआ था... और सालार जंग उन्हीं के काल में प्रधानमंत्री बने थे.
सर मीर तुराब अली खान कहिए या Salar Jung I (21 January 1829 – 8 February 1883) 1853 के बीच हैदराबाद के प्रधानमंत्री बने और 1883 में अपनी मृत्यु तक इस पद पर रहे. उन्होंने 1869 और 1883 के बीच छठे निज़ाम, आसफ जाह VI के लिए रीजेंट (प्रतिनिधि जो राजा के न होने से या उसकी अक्षमता के कारण राज्य करे) के रूप में भी कार्य किया.
पेरिस में जब वह थोड़ा ठीक हुए तो बोलोग्ने में इंतजार कर रहा एक ब्रिटिश स्टीमर सालार जंग और उनके साथ आए लोगों को इंग्लैंड लेकर गया. जब उन्होंने इंग्लिश चैनल को पार किया तब ड्यूक ऑफ सदरलैंड ने 1 जून 1876 को फोकस्टोन में औपचारिक रूप से उनका स्वागत किया गया.
फोकस्टोन के मेयर ने उनके स्वागत में भाषण दिया. कई प्रमुख समाचार पत्रों ने उनकी यात्रा का प्रमुख कवरेज भी मिला. सालार जंग ने अपने हैदराबादी लोगों के साथ मध्य लंदन के सबसे शानदार हिस्से पिकाडिली स्क्वायर में एक महलनुमा हवेली में निवास किया.
20 जून 1876 को ड्यूक ऑफ वेल्स ने मार्लबोरो हाउस में सालार जंग के सम्मान में एक भव्य भोज का आयोजन किया गया और इसमें ड्यूक ऑफ कनॉट, ड्यूक ऑफ कैम्ब्रिज, ड्यूक ऑफ मैनचेस्टर जैसे शाही परिवार के कई सदस्य शामिल थे.
ड्यूक ऑफ सदरलैंड - रानी विक्टोरिया के बेटे भी साथ थे. इसके अलावा, मार्क्वेस ऑफ सैलिसबरी, अर्ल ग्रानविले, अर्ल ऑफ नॉर्थब्रुक, अर्ल नेपियर और बेंजामिन डिजरायली और कई दूसरे गणमान्य व्यक्ति थे, जिन्होंने इस मौके को और भी महत्वपूर्ण बना दिया था.
ड्यूक ऑफ वेल्स के भोज के एक दिन बाद, सालार जंग को बड़ा सम्मान ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से मिला. ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने सर सालार जंग को डीसीएल (डॉक्टर ऑफ सिविल Laws) से सम्मानित किया. उस वत्च तक भारत में किसी राज्य के मंत्री को ऑक्सफोर्ड से ऐसा सम्मान नहीं मिला था.
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3 जुलाई 1876 को विंडसर कैसल में महारानी विक्टोरिया ने सर सालार जंग का स्वागत किया, जहां भोज के बाद, वह रात को रुके भी... शायद यह एकमात्र अवसर था जब सालार जंग जैसा गैर-शाही शख्स, इस सदियों पुराने ब्रिटिश रॉयल्स के निजी निवास, विंडसर में रहा.
दो दिन बाद, रानी ने सालार जंग को बकिंघम पैलेस में भोजन करने के लिए आमंत्रित किया, एक सम्मान जो आमतौर पर राज्य के प्रमुख को दिया जाता था, वह उन्हें दिया गया... सालार जंग भी ड्यूक ऑफ सदरलैंड के साथ स्कॉटलैंड के दौरे पर गए. लंदन लौटने से पहले उन्होंने स्कॉटलैंड के एडिनबर्ग और इनवर्नेस जैसे कई शहरों का दौरा किया.
जब प्रधानमंत्री लॉर्ड सैलिसबरी ने उनके सम्मान में डिनर दिया, तो ड्यूक ऑफ वेल्स सहित इंग्लैंड में कई गणमान्य शख्स उपस्थित थे, और अगले दिन लंदन के अखबारों ने इस घटना को सबसे बड़ी खबर के रूप में छापा.
ये सब जानकर आपके मन में सवाल तो आया ही होगा कि आखिर भारत के किसी प्रिंसली स्टेट के प्रधानमंत्री को लंदन में इतना सम्मान क्यों दिया गया? इस सवाल का जवाब 19 साल पहले की उसी घटना में छिपा हुआ है जिसका जिक्र हमने पीछे किया...
1857 की क्रांति में भारत के उत्तर में जो ज्वार पैदा हुआ था, उसे बहादुर शाह जफर की गिरफ्तारी से मुगलों से खत्म कर दिया था... हालांकि पूरी लड़ाई लगभग एक साल बाद खत्म हुई थी... उत्तर में मुगल शासन और क्रांति का अंत अंग्रेजों ने किया लेकिन दक्षिण में क्रांति को पैदा होते ही जिसने रोका था वह सालार जंग ही थे...
लंदन की एक मैग्जीन ने उनकी यात्रा पर टिप्पणी की थी- "हमारा अतिथि वह शख्स है जिसने जब दिल्ली ढह गई थी और हमारी ताकत पल के लिए अधर में थी, तब इंग्लैंड के लिए दक्षिणी भारत को बचा लिया था.
सालार जंग ने हैदराबाद में अदालतों का गठन किया, पुलिस फोर्स का संगठन, सिंचाई कार्यों का निर्माण और मरम्मत की... साथ ही स्कूलों की स्थापना की. 1854 में, हैदराबाद में पहला आधुनिक शैक्षणिक संस्थान दार-उल-उलम स्थापित किया. सालार जंग ने मुद्रा को स्टैबिलाइज भी किया.
हैदराबाद में एक केंद्रीय टकसाल की स्थापना की गई और जिला टकसालों को खत्म कर दिया गया. शहर में एक सरकारी खजाना स्थापित किया गया था, और सीमा शुल्क विभाग को सीधे सरकार के अधीन लाया गया था.
1857 की क्रांति के बाद अंग्रेजों ने ऐसे राजाओं की गिनती की थी जिन्होंने क्रांति में उनका साथ दिया और विद्रोह को दबाने में अहम भूमिका निभाई... अंग्रेजी हुकूमत ने इन्हें कई तरह से फायदे भी पहुंचाए. सिंधिया, होल्कर, नेपाल के राजा और निजाम भी इसमें शामिल थे.
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सालार जंग के रहते निज़ाम अफज़ुल-उद-दौला उन्हें हमेशा शक की नजर से ही देखते रहे... लेकिन अंग्रेजों से मजबूत रिश्तों के चलते उनकी कुर्सी सुरक्षित रही... जब मीर महबूब अली खान, 1869 में अपने पिता के उत्तराधिकारी बने, तो सालार जंग के निजाम से रिश्ते बेहतर हो गए... 8 फरवरी 1883 को हैदराबाद में हैजा से उनकी मृत्यु हो गई...
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