Maruti and Sanjay Gandhi: संजय की मारुति क्यों बनी मां इंदिरा के लिए मुसीबत? जानिए कार का सफर| Jharokha

Updated : Dec 22, 2022 20:03
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Mukesh Kumar Tiwari

Maruti and Sanjay Gandhi : मारुति 800 (Maruti 800)... वह कार जिससे भारतीयों ने जाना कि 4 पहियो पर दौड़ने वाली सस्ती कार होती कैसी है... इसे जब लॉन्च किया गया, तब इसकी कीमत थी 47,500 रुपये... तब भारत में न हाइवे ही दुरुस्त थे और एक्सप्रेसवे तो सपने में भी हमने नहीं देखे थे... लेकिन ये कार ऐसी दौड़ती थी कि गड्ढे और पत्थर सरपट पार कर जाती थी... भारतीयों की एक पूरी पीढ़ी ने भरोसेमंद और मॉडर्न कार की परिभाषा ही इससे सीखी.. लेकिन मारुति की कहानी भी किसी हाईवे जैसी सीधी नहीं है... 

मारुति का सपना 70 के दशक में संजोया गया... तब संजय गांधी (Sanjay Gandhi) के मन में इसे लेकर पहली बार अरमान जगे थे... लेकिन जब पहली कार डिलिवर हुई तो तारीख थी 14 दिसंबर 1983... यानी दिवंगत हो चुके संजय गांधी की जयंती के मौके पर ही... आज ही के दिन 1946 में संजय गांधी का जन्म हुआ था और आज ही के दिन 1983 में पहली मारुति 800 डिलिवर हुई...

आज हम जानेंगे कि वह मारुति जिसे संजय के सपने और इंदिरा सरकार के ईंधन ने शुरू करने का सपना देखा था उसमें सुजुकी (How Suzuki enters in Sanjay Gandhi Maruti's Dream?) की एंट्री कैसे हो गई?

संजय गांधी में थी कारों की दीवानगी || Sanjay Gandhi was crazy about cars

वेल्हम बॉयज़ स्कूल और फिर देहरादून के दून स्कूल में अपनी शुरुआती पढ़ाई पूरी करने के बाद संजय गांधी को कारों की दिवानगी ने ऑटोमोटिव इंजीनियरिंग की ओर आकर्षित किया. एडवेंचर के दीवाने संजय की दिलचस्पी स्पोर्ट्स कारों के अलावा एयरक्राफ्ट एरोबैटिक्स में भी थी. उन्होंने रोल्स-रॉयस (Rolls Royce) के साथ क्रेवे, इंग्लैंड में तीन साल तक काम किया. वह 1968 में एक आइडिया लेकर भारत लौटे... ये आइडिया था एक स्वदेशी कार बनाने का, जो भारत के मिडिल क्लास की जेब पर बोझ न डाले. तब यह विचार दूरदर्शी लग रहा था, लेकिन बाद में जो हुआ वह गांधी परिवार के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं था...

14 दिसंबर 1946 को हुआ था संजय गांधी का जन्म || Sanjay Gandhi was born on 14 December 1946

14 दिसंबर 1946 के दिन इंदिरा और फिरोज गांधी के बेटे के रूप में संजय का जन्म हुआ था. जवाहरलाल नेहरू के पोते संजय को स्कूल में एक औसत छात्र के रूप में जाना जाता था. कुछ रिपोर्ट्स में उन्हें 'अकेला', 'बिना दोस्तों वाला' भी कहा था ' और कुछ में उन्हें 'एकांत पसंद' बताया गया. वह 1968 में भारत लौटे थे और तब सरकार, योजना आयोग को बताने में कायमाब रहे कि निजी क्षेत्र में एक छोटी कार का प्रोडक्शन अच्छा विचार था. संजय ने दिल्ली में ट्रक ड्राइवरों के पसंदीदा अड्डे गुलाबी बाग में एक प्रोटोटाइप डेवलप करने की प्रक्रिया शुरू की.

संजय गांधी ने दिल्ली के गुलाबी बाग के पास बनाया कार का प्रोटोटाइप || Sanjay Gandhi made prototype of the car near Gulabi Bagh in Delhi

गुलाबी बाग के पास वर्कशॉप में खुद चेसिस बनाया. जामा मस्जिद क्षेत्र से कुछ हिस्सों को मंगवाया गया और कार को आगे बढ़ाने के लिए Triumph मोटरसाइकिल इंजन का इस्तेमाल किया. मोटर में कुछ सुधार किए गए, और कार को टेस्ट के लिए अहमदनगर भी ले जाया गया. 3 शुरुआती कारें बनाने के बाद गैरेज भर गया था. इसके बाद  संजय ने लक्ष्मण सिल्वेनिया कारखाने में बेस को शिफ्ट कर दिया. यहीं पर उन्होंने 18 महीने एक अलग शेड में बिताए.

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कांग्रेस सरकार ने परीक्षण मॉडल का इस्तेमाल भी प्रगति के प्रदर्शन के रूप में करने के लिए किया. हालांकि इसे जनता की सिर्फ आलोचना ही मिली. इस बीच, संजय ने भारत में कार का संयुक्त रूप से निर्माण करने के लिए वोक्सवैगन एजी से भी संपर्क किया. हालांकि इस कदम से क्या हुआ, पता नहीं...

Vehicles Research Development Establishment (VRDE) में फेल हो गया प्रोटोटाइप

वाहन अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान, अहमदनगर में मारुति पर फीजेबिलिटी टेस्ट करने का फैसला लिया गया लेकिन प्रोटोटाइप टेस्ट पास नहीं कर सका. इसका मतलब यह कि वह सड़क योग्य नहीं था. 

फिर भी मारुति मोटर्स लिमिटेड नाम से एक कंपनी 04 जून, 1971 को बनाई गई. संजय गांधी इसके पहले मैनेजिंग डायरेक्टर थे. रिपोर्ट बताती हैं कि न तो कंपनी को और न ही इसके चीफ को कार बनाने, प्रोटोटाइप तैयार करने या किसी कार निर्माता के साथ साझेदारी का कोई अनुभव था. कंपनी ने किसी तरह का डिजाइन प्रपोजल भी तैयार नहीं किया था. 

संजय ने मारुति के सपने को पूरा करने में मां की मदद ली || Sanjay took mother's help to fulfill Maruti's dream

लेकिन संजय अपने मकसद पर अडिग थे. संजय ने अपने सपने को पूरा करने के लिए अपनी मां की मदद ली. नतीजा ये हुआ कि प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के मंत्रिमंडल ने एक 'आम आदमी की कार' के प्रोडक्शन का प्रस्ताव रखा. एक ऐसा वाहन जो सस्ता, सस्ता, कुशल और सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण स्वदेशी होना चाहिए....

इसके बाद छोटी कार के लाइसेंस के लिए कुल 18 कंपनियों ने आवेदन दिए. इन कंपनियों में टाटा के टेल्को भी शामिल थी जो बाद में टाटा मोटर्स बन गई. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी की कंपनी मारुति ने भी लाइसेंस के लिए आवेदन दिया.

संजय की कंपनी को 1974 में 50 हजार कार प्रोडक्शन का लाइसेंस मिला  

संजय का प्रोटाटाइप फेल होने के बावजूद जुलाई 1974 में मारुति को 50,000 कारों के प्रोडक्शन के लिए औद्योगिक लाइसेंस दे दिया गया. 

सरकार ने आम लोगों की कार बनाने के लिए संजय की कंपनी मारुति को गुड़गांव में 12,000 रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से 297 एकड़ जमीनें दी. यहां ऐसी छोटी कारें बनाने की योजना थी, जो आम लोगों के बजट की हो. 

सरकार ने सितंबर 1970 में एक आशय पत्र जारी किया, जिसने संजय को एक वर्ष में 50,000 कारों तक का उत्पादन करने की अनुमति दी. बंसीलाल, हरियाणा के मुख्यमंत्री थे और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की नजरों में बने रहने के लिए उन्होंने संजय को कारखाने के लिए एक साइट चुनने में मदद के लिए अपने अधिकारियों को भेजा. उन्होंने उन्हें सोनीपत में जमीन देने की पेशकश की, लेकिन संजय इसे दिल्ली के नजदीक चाहते थे.

हरियाणा के मुख्यमंत्री बंसीलाल ने संजय गांधी की मदद की || Haryana Chief Minister Bansilal helped Sanjay Gandhi

विरोधियों का कहना था कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता बंसीलाल, जो उस समय हरियाणा के मुख्यमंत्री थे और संजय गांधी के दोस्त भी थे... बंसीलाल की मदद से संजय ने गुड़गांव में कुछ जमीन हासिल की..हरियाणा सरकार द्वारा किसानों से औने-पौने दामों पर भूमि का अधिग्रहण किया गया और मारुति लिमिटेड नामक एक कंपनी को सौंप दिया गया जिसे संजय ने अगस्त 1971 में शुरू किया था. गोला बारूद के ढेर को हटा दिया गया था. बैंकों ने रियायती कर्ज दिया.

हालांकि, संजय की कंपनी को कार का ठेका देने के इंदिरा सरकार के फैसले की व्यापक आलोचना हुई लेकिन 1971 में बांग्लादेश मुक्ति संग्राम और पाकिस्तान पर भारत की जीत ने इस मुद्दे को पीछे धकेल दिया.

संजय गांधी का ड्रीम प्रोजेक्ट फेल हो गया || Sanjay Gandhi's dream project failed

शुरुआत में सोचा गया था कि आम लोगों की कार की कीमत 8,000 रुपये के पास रखी जाएगी. कई साल गुजरने के बाद अंतत: मई 1975 में आम लोगों की कार की लॉन्चिंग की चर्चा होने लगी. लॉन्चिंग की चर्चा के साथ इसकी एक्स-शोरूम कीमत निर्धारित की गई, जो पहले से तय कीमत की तुलना में दो गुने से अधिक 16,500 रुपये थी. इस तरह हरियाणा में इस गाड़ी की ऑन रोड कीमत करीब 21,000 रुपये बैठती.

लॉन्चिंग की चर्चा करते हुए मई 1975 में संजय ने दावा किया था कि वह हर महीने 12-20 कारें बना सकते हैं. उन्होंने अगले चार साल में इसे बढ़ाकर 200 कारें प्रति दिन तक ले जाने का भी दावा किया था. हालांकि 31 मार्च 1976 तक संजय की कंपनी महज 21 मारुति कारें बना पाई थी.

इंदिरा गांधी ने जून 1975 में देश में इमरजेंसी लगा दी थी. इमरजेंसी लगते ही संजय राजनीति में कूद गए थे. हालांकि इसके बाद भी वह मारुति के एमडी बने रहे और इमरजेंसी में भी 4,000 रुपये की सैलरी हर महीने उठाते रहे.

1977 में इंदिरा चुनाव हारीं, मारुति पर भी ताला लगा || Indira lost the election in 1977, Maruti project scrapped

इमरजेंसी के बाद 1977 में हुए आम चुनाव में इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस चुनाव हार गई. मारुति का मामला अदालत पहुंचा. 1978 में कोर्ट ने मारुति को बंद करने का आदेश दे दिया. संजय की मारुति और आम लोगों की कार वाली कहानी के सपने पर विराम लग गया.

1980 में संजय के निधन के बाद फिर शुरू हुआ प्रोजेक्ट || The project started again after Sanjay's death in 1980

साल 1980 में कांग्रेस के सत्ता में वापस आने के बाद इस प्रोजेक्ट को फिर से खड़ा किया जा सकता था लेकिन दिल्ली के सफदरजंग हवाई अड्डे के पास एक दो सीटों वाले विमान को उड़ाते वक्त संजय गांधी की आकस्मिक मृत्यु हो गई.

उनके निधन के बाद, इंदिरा ने अरुण नेहरू को स्थिति का जायजा लेने और यह जांचने के लिए बुलाया कि क्या भारत की पहली घरेलू कार बनाने के उनके बेटे के सपने को पुनर्जीवित करना संभव है. नेहरू ने महसूस किया कि परियोजना में कुछ खास था लेकिन जरूरत थी तो एक पेशेवर कार निर्माता की. जानकारों की एक टीम ने एक दुनिया भर में कई कार मैन्युफैक्चरर्स का दौरा किया. जापान की सुजुकी इस डील को करने के लिए आगे आई. सरकार ने वोक्सवैगन से भी संपर्क किया था. जब सुजुकी को इसके बारे में पता चला, तो उसने जर्मन कंपनी को भारत की पहली पीपल्स कार (मारुति 800) बनाने की दौड़ से बाहर रखने में उसने कोई कसर नहीं छोड़ी. 

सुज़ुकी ने सरकार को अपने 'मॉडल 796' का डिज़ाइन दिखाया, जो जापान और पूर्वी एशियाई देशों में कामयाब रही थी. देश की नब्ज भांपने के लिए उसने कई जांच प्रक्रियाओं को पूरा किया और आखिर में एक ऐसी कार बनाई जो भारतीय परिस्थितियों का सामना कर सके... आगे जो हुआ वह इतिहास है...

देश की सड़कों पर छा जाने वाले इस मारुति 800 और संजय के बनाए मॉडल को देखें, तो इन दोनों में कोई समानता नहीं थी. सिवाय इसके कि नाम में मारुति जुड़ा हुआ था और बैज पुराना था.

दिलचस्प बात यह है कि पहली मारुति 800 की डिलीवरी 14 दिसंबर 1983 को ही हुई थी. तब इसी दिन दिवंगत संजय गांधी की 37वीं जयंती थी. ऐसा इंदिरा की इच्छा पर हुआ था.

मारुति को 1981 में स्थापित किया गया था और 2003 तक यह भारत सरकार के स्वामित्व में था. फिर इसे जापानी व्हीकल मैन्युफैक्चरर सुजुकी मोटर कॉर्पोरेशन को बेच दिया गया था. फरवरी 2022 तक भारतीय पैसेंजर कार बाजार में मारुति सुजुकी की बाजार हिस्सेदारी 44.2 प्रतिशत थी.

चलते चलते 14 दिसंबर को हुई दूसरी बड़ी घटनाओं पर भी एक नजर डाल लेते हैं

1799 - अमेरिका के पहले राष्ट्रपति जॉर्ज वॉशिंगटन (प्रथम) का निधन
1896 - तीसरा सबसे पुराना अंडरग्राउंड मेट्रो ग्लासगो सबवे खोला गया
1924- भारतीय अभिनेता राज कपूर का जन्‍म
1934 - निर्देशक श्याम बेनेगल का जन्‍म
1983 - जनरल हुसैन मोहम्मद इरशाद ने खुद को बांग्लादेश का राष्ट्रपति घोषित किया

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