Delhi-NCR Air Pollution : एक ज़माना था जब दिल्ली में नवंबर महीने से ठंड की शुरुआत हो जाती थी. मौसम की पॉपुलैरिटी इतनी थी की गीतकार समीर भी अपनी क्रिएटिविटी नहीं रोक पाए और गाना लिख दिया. कोई तो आये, जो गर्मी लाये, प्यार तेरा... दिल्ली की सर्दी... लेकिन वह ज़माना कुछ और था और यह ज़माना कुछ और है. पहले नवंबर महीने में ठंड की चर्चा होती थी और अब धुंध की चर्चा होती है. अब तक जो आप देख रहे थे वह पिछले ज़माने की तस्वीरें थी, आपके स्क्रीन पर अब जो तस्वीरें दिख रही हैं वह इस ज़माने की है.
धुंध के पीछे अलसाए खड़े मकान, दूर से आती ट्रेन की आवाज़, बादलों के बीच से रोशनी बिखेरने की कोशिश करता सूरज, उसकी किरणों से लालिमा लिए आसमान.. ट्रेन की मधुर आवाज़, सुबह के ट्रैफिक का हल्का शोर... सड़क पर दौड़ती कार और बस... सब मिलकर एक सुखद सर्दी वाली सुबह का अहसास करा रही है. लेकिन कोहरे की जगह इस पापी धुंध ने ले ली है. जो इस सुखद अहसास को भयानक स्वप्न में बदल दे रहा है.
यह तस्वीर गाज़ियाबाद की है, जहां वायु गुणवत्ता गंभीर श्रेणी में बनी हुई है. ख़राब हवा ने पूरे गाज़ियाबाद में धुंध की शक्ल ले ली है. यह धुंध जो पहले सिर्फ श्वास नली के ज़रिए हमारे फेफड़ों को ख़राब कर रही थी अब शहर पर शाप जैसी नज़र आ रही है. दिल्ली अब शहर नहीं रहा, गैस चैंबर बन गया है. 0-50 के बीच अच्छा यानि शुद्ध वायु माना जाने वाला Air Quality Index (AQI) अब 800 के पार पहुंच चुका है. यानी 16 गुना की वृद्धि. यही वृद्धि अगर देश के विकास में देखने को मिलती या शेयर बाज़ार में तो कितनों का भला हो जाता. यानी हम तेज़ी से तरक्की तो कर रहे हैं लेकिन बर्बादी के रास्ते पर...
पंजाब में पराली जलाने पर रोक लगाने, स्मॉग टावर लगाने और दिल्ली में जगह-जगह पानी के छिड़काव का मॉडल जब फेल हो गया तो मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, शुक्रवार सुबह कैमरे पर आए और प्रेस वार्ता कर बोल दिया- 'पंजाब में पराली जलने के लिए हम जिम्मेदार हैं. हम इस मामले में राजनीति नहीं करना चाहते.'
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इतना ही नहीं प्रदूषण से राहत देने के नाम पर केजरीवाल सरकार ने कुछ कठोर कदम भी उठाए हैं. दिल्ली की हवा के सामान्य से 16 गुना ज़्यादा गंदी होने के बाद दिल्ली सरकार ने फ़ैसला लिया है कि शनिवार यानी कि 5 नवंबर से सभी प्राइमरी स्कूल बंद होंगे.
वहीं कक्षा 5वीं के ऊपर की क्लास के लिए सभी आउटडोर एक्टिविटीज़ पर भी प्रतिबंध होगा. इसके अलावा दिल्ली में वाहनों के लिए ऑड-इवेन लागू करने पर भी विचार किया जा रहा है. बढ़ते प्रदूषण का असर इतना है कि दिल्ली से सटे गौतमबुद्ध नगर यानी कि नोएडा में 08 नवंबर तक के लिए कक्षा 1 से 8 तक के स्कूल बंद कर दिए गए हैं. इसके अलावा सीनियर क्लासेज़ के लिए स्कूलों को ऑनलाइन क्लास आयोजित करने का सुझाव दिया गया है और सभी आउटडोर गतिविधियों को प्रतिबंधित कर दिया गया है.
वहीं करोड़ों की लागत से दिल्ली में जिस स्मॉग टावर(Smog Tower) को यह कह कर प्रचारित करते हुए लगाया गया कि इसके लगने के बाद 1 वर्ग किलोमीटर एरिया की हवा साफ़ हो जाएगी, वह भी खोखली नज़र आ रही है. कम से कम कांग्रेस पार्टी के लोग तो यही दावा कर रहे हैं.
वहीं मोरबी केबल ब्रिज हादसे में आधिकारिक रूप से 135 लोगों की मौत वाली घटना के चार दिन बीत जाने के बाद भी क्या वजह है कि ओरेवा कंपनी के मालिक जयसुख पटेल को पुलिस ने ना तो गिरफ्तार किया है और ना ही पूछताछ के लिए हिरासत में लिया है? जबकि कार्रवाई के नाम पर आईजी अशोक यादव के एक बयान के मुताबिक ओरेवा कंपनी के मैनेजर दीपक नवीनचंद्र पारेख और दिनेश मनसुख दवे समेत नौ लोगों को गिरफ्तार किया गया है.
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एक और भी बात है. अभी तक जो आंकड़े आए हैं वह या तो मृतकों के हैं या फिर घायलों के. जबकि ऐसे कई लोग हैं जो लापता हैं. उनके परिजन उन्हें ढूंढ़ रहे हैं लेकिन कोई जानकारी नहीं मिल पाई है.
आज इन्हीं तमाम मुद्दों पर होगी बात, आपके अपने कार्यक्रम में जिसका नाम है- मसला क्या है?
दीवाली के बाद से ही दिल्ली और आसपास के NCR क्षेत्र में लगातार प्रदूषण बढ़ रहा है. हालात इतने ख़राब हैं कि लोगों का सांस लेना भी दूभर हो गया है. गले में खराश, आंखों में जलन, नाक बहना, आंखों का लाल होना और बुखार, 'राष्ट्रीय बीमारी' बन गई है. आप अपने जानने वाले किसे को भी फोन कर पूछ लीजिए कि दिल्ली में क्या चल रहा है, तो वह भी यहीं कहेंगे, Smog और बीमारियां. मैंने अभी जो भी बीमारियां बताईं है, बड़ी आबादी उसे झेल रही है.
दिल्ली में AQI का स्तर 750 के पार है, और लगभग 800 तक पहुंच गया है. शुक्रवार सुबह 10 बजे PM-10 का स्तर जहांगीरपुरी में 763, बवाना में 720, नरेला में 665, वज़ीरपुर में 650 और रोहिणी में 625 दर्ज किया गया है. सामान्य तौर पर अगर हवा में PM-10 की मात्रा 100 है तो उसे सुरक्षित माना जाता है. लेकिन अभी 600-700 से है. अंदाज़ा ख़ुद लगा लीजिए, दिल्लीवासी कितने सुरक्षित हैं?
दिल्ली में जहरीली धुंध का कारण PM-10 ही है. PM-10 के बढ़ने का कारण धूल, कंस्ट्रक्शन और कूड़ा व पुआल जलाना होता है. यही वजह है कि केजरीवाल सरकार पराली जलाने को लेकर पंजाब सरकार को कोसती रहती थी और दिल्ली के प्रदूषण के लिए जिम्मेदार बताती थी. लेकिन अब हालात बदल गए हैं. पंजाब में भी आम आदमी पार्टी की सरकार है. ऐसे में प्रदूषण को लेकर नया कारण ढूंढ़ने के बजाए दिल्ली सरकार शुक्रवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस के बहाने लोगों के सामने आई.
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सीएम केजरीवाल ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि दिल्ली में हवा काफ़ी ख़राब हो गई है, लोगों को सांस लेने में दिक्कत हो रही है. इसके कई पहलू हैं और यह पूरे उत्तर भारत की समस्या है. पंजाब में पराली जलने के लिए हम जिम्मेदार हैं. हम इस मामले में राजनीति नहीं करना चाहते. बाकी राज्य के लिए केंद्र सरकार भी आगे आए.
यहां पर आपको टीवी स्क्रीन पर केजरीवाल के दो बयान दिखाए जाएंगे. एक आज की है और दूसरी उन दिनों की जब पंजाब में कांग्रेस की सरकार थी. तब और अब में जो नहीं बदला, वह है कॉन्फिडेंस. एक बार दोनों बयान सुन लेते हैं.
हालांकि राजनीति से इतर सुधार के लिए कुछ फ़ैसले भी लिए गए हैं. केजरीवाल सरकार के फ़ैसले के तहत 5 नवंबर से सभी प्राइमरी स्कूल बंद रहेंगे. कक्षा 5वीं के ऊपर की क्लास के लिए सभी आउटडोर एक्टिविटीज़ पर भी प्रतिबंध होगा. दिल्ली में वाहनों के लिए ऑड-इवेन लागू करने पर भी विचार किया जा रहा है.
इधर ग्रैप-4 के तहत दिल्ली में कॉमर्शियल ट्रकों के आने पर रोक लगा दी गई है. डीज़ल से चलने वाले मध्यम और भारी वाहनों पर रोक रहेगी. ईंधन पर चलने वाली सभी इंडस्ट्रियां फ़िलहाल बंद रहेगी.
इसके अलावा निर्माण करने या ढहाने पर भी रोक लगाई गई है. सरकारी-निजी दफ़्तरों में 50 फीसदी स्टाफ को ही बुलाए जाने की सलाह दी गई है.
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पिछले साल बड़े धूमधाम के साथ दिल्ली में देश का पहला स्मॉग टावर लगाया गया था. यह कहते हुए कि इससे दिल्लीवासियों को प्रदूषण से छूटकारा मिल जाएगा. पिछले महीने दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय (Gopal Rai) ने कनॉट प्लेट में लगे स्मॉग टॉवर को लेकर कहा कि यह विशाल वायु शोधक 50 मीटर के दायरे में वायु प्रदूषण को 70 से 80 प्रतिशत तक कम करने में सक्षम है जबकि 300 मीटर से आगे यह प्रदूषण के स्तर को 15 से 20 प्रतिशत तक कम करने में सक्षम है. लेकिन दिल्ली सरकार के दावे या यूं कहें स्मॉग टावर का असर कितना रहा, यह आप दर्शक ख़ुद ही तय कर लें.
वहीं दिल्ली कांग्रेस के दावे को भी इग्नोर नहीं किया जा सकता. उनका कहना है कि केजरीवाल सरकार ने सिर्फ अपने गुनाहों को छिपाने के लिए स्मॉग टावर लगाया था. जो अब पूरी तरह से फ़ेल हो गया है.
वैसे जानकारी मिली है कि पिछले साल 3 करोड़ की लागत से नोएडा अथॉरिटी और BHEL ने जिस स्मॉग टॉवर को लगाया था, वह बंद है.
ख़ैर अब गुजरात का रुख़ करते हैं. मोरबी हादसे को चार दिन बीत चुके हैं. लेकिन क्या वजह है कि पुल की देखरेख का काम संभालने वाली ओरेवा कंपनी के मालिक जयसुख पटेल को पुलिस ने अब तक पकड़ा ही नहीं. पुलिस ने त्वरित कार्रवाई के नाम पर जिन लोगों को गिरफ्तार किया, उसमें दो प्रबंधक दीपक नवीनचंद्र पारेख और दिनेश मनसुख दवे, टिकट कलेक्टर मनसुख वालजी टोपिया और मदार लखभाई सोलंकी, ब्रिज कॉन्ट्रैक्टर लालजी परमार और देवांग परमार समेत नौ लोग शामिल हैं.
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आगे बढ़ें उससे पहले आपको बता दूं कि जयसुख पटेल कौन हैं? इनके पिता ओधावजी पटेल भारत में दीवार घड़ियों के जनक माने जाते हैं. साल 1971 में उन्होंने तीन हिस्सेदारों के साथ एक लाख रुपये से ओरेवा ग्रुप की शुरुआत की थी. तब कंपनी का नाम 'अजंता ट्रांज़िस्टर क्लॉक मैन्युफै़क्चरर' था और कंपनी में ओधावजी पटेल की हिस्सेदारी महज़ 15 हज़ार रुपये की थी. आगे चलकर अजंता की दीवार घड़ियां पूरे भारत में लोकप्रिय हो गई. लेकिन साल 1981 में कंपनी का बंटवारा हो गया और ओधावजी की कंपनी का नाम 'अजंता कंपनी' रखा गया.
अजंता ग्रुप की प्रसिद्धि का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि लगातार 12 सालों तक उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स श्रेणी में इसे सर्वोच्च निर्यातक पुरस्कार मिलता रहा. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इस कंपनी का कारोबार 45 देशों में फैला है. अक्टूबर 2012 में ओधावजी पटेल का निधन हो गया. उसके बाद अजंता कंपनी, ओधावजी के बेटों के बीच बंट गई. जयसुख पटेल को जो कंपनी मिला उसका नाम ओरेवा है.
यह वही जयसुख पटेल हैं जो ब्रिज को आम जनता के लिए खोलने से पहले बड़े-बड़े दावे कर रहे थे. एक बार उस बयान को सुन लेते हैं. वह कहते हैं- 'हम सब जानते हैं कि मोरबी का ब्रिज राजाशाही के वक़्त से है, 150 साल पुराना है. मोरबी नगर पालिका के साथ एक अंडरस्टैंडिंग है और मेंटेनेंस, सिक्योरिटी, और ऑपरेशन के लिए 15 साल के लिए हमारी कंपनी को ज़िम्मेदारी दी गई है. ये झूलता पुल ऐतिहासिक है. पिछले 6 महीने से हमने फुल एंड फाइनल मेंटेनेंस के लिए इस पुल को बंद किया. गुजराती न्यू ईयर के दिन हम इसे पब्लिक के लिए शुरू करेंगे. जब ये ब्रिज बना था, उस ज़माने में ज़्यादा टेक्नोलॉजी नहीं थी. उसके चलते इस झूलते पुल में लकड़ी के स्लैब और बीम लगाए गए थे. हमने अपनी स्पेशल रिक्वायरमेंट स्पेशल कंपनियों को दी. उन्होंने हमें उसी तर्ज का मटेरियल दिया. प्रकाश भाई की कंपनी को भूकंप के डैमेज को रिपेयर करने के लिए 2007 में भी काम दिया गया था. हमने भी उसी कंपनी को काम दिया और 2 करोड़ में यह काम हुआ है. हमने पुल की 100% मरम्मत की है. मोरबी नगर पालिका और कलेक्टर के साथ फीस तय की गई है और हर साल दाम में एक दो रुपए की बढ़ोतरी होगी. पुल की मरम्मत के बाद हमारे हिसाब से झूलते पुल को 8 से 10 साल तक कुछ नहीं होगा.'
यही वजह है कि मोरबी हादसे को लेकर विपक्ष लगातार सवाल कर रहा है कि ओरेवा कंपनी के शीर्ष पदाधिकारों के खिलाफ ऐक्शन क्यों नहीं लिया जा रहा है. क्यों कमज़ोर लोगों को बलि का बकरा बनाया जा रहा है. इतना ही नहीं मंगलवार को जब प्रधानमंत्री मोदी ने इलाके का दौरा किया था तब भी यह देखने को मिला था कि ओरेवा कंपनी का बोर्ड कपड़ों से ढक दिया गया. यह हालत तब है जब पीएम मोदी साफ कह चुके हैं कि ईमानदारी का ठेका लेने वाले लोग, भ्रष्टाचारियों के साथ फोटो खिंचवाने में भी शर्म नहीं करते. आप दर्शक सोचते रहिए क्या सही है और क्या ग़लत? लेकिन उससे पहले पीएम मोदी का यह बयान सुन लीजिए.
मोरबी हादसे में अब तक दुर्घटना के कारण, ब्रिज का कमज़ोर होना, हैंगिंग ब्रिज के केबल का नहीं बदलना, केबल की जर्जर हालत, पीएम मोदी का दौरा, अस्पताल का रातोंरात कायकल्प, लोगों को होने वाली परेशानी की बात हुई. अगर बात नहीं हुई तो उन लोगों की जो अब तक लापता हैं. मतलब ना तो इनकी लाशें मिली हैं, ना ही ये अस्पताल में भर्ती हैं और ना ही कोई अधिकारी या पुलिस इनके बारे में कुछ बता रहा है. हालांकि इस बारे में जब NDTV ने एक अधिकारी से पूछा कि कितने लोग लापता हैं तो उनका जवाब था. 'टाइम विल टेल' यानी कि समय बताएगा. एडिशनल डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट एनके मुचर ने कहा, "पुल गिरने के बाद से लापता लोगों का अभी भी कोई हिसाब नहीं है. हम अंतिम क्षण तक काम करेंगे."
ट्विटर पेज पर कई तरह के दावे भी किए जा रहे हैं. कइयों ने अस्पताल प्रशासन की लापरवाही का भी ज़िक्र किया है. जिसमें बताया गया है कि पीएम मोदी के दौरे के मद्देनजर अस्पतास प्रशासन ने जल्दबाजी में 18 और 20 साल के दो भाईयों को बेहोशी की हालत में मुर्दाघर में फेंक दिया. ताकि अस्पताल के रंग-रोग़न का काम ठीक से किया जा सके. मैं इस दावे को सही नहीं बता रहा. लेकिन इस हादसे को लेकर कई सवाल हैं जिसको लेकर सरकार को सबके सामने सच्चाई रखने की ज़रूरत है.
कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने पहले ही मामले की जांच HC के रिटायर्ड जजों से कराने की मांग की है. लेकिन सवाल उठता है कि क्या गुजरात की बीजेपी सरकार मोरबी हादसे की जांच कराकर लोगों को सही-सही जवाब देगी या फिर मामले को दबाकर गुजरात चुनाव में लग जाएगी?