ताजमहल (Tajmahal), शिव मंदिर (Shiv Temple) है, तेजोमहल (tejo mahalaya) है, अभी ये चर्चा चल ही रही थी कि जयपुर रॉयल फैमिली (Jaipur Royal Family) ने एक नया दावा किया है. उनके मुताबिक ताजमहल उनकी प्रॉपर्टी है और एक ज़माने में यहां पर उनका महल हुआ करता था. दावा करने वाली दीया कुमारी (Diya Kumari) रॉयल फैमिली की सदस्य और भाजपा सांसद (BJP MP) हैं. उन्होंने बिना नाम लिए याचिकाकर्ता बीजेपी नेता डॉ. रजनीश सिंह का शुक्रिया अदा किया है. दीया कुमारी ने कहा कि ये अच्छी बात है कि किसी ने ताजमहल के दरवाजे खोलने को लेकर अपील की है, इससे सच सामने आएगा. हम भी अभी मामले को एग्जामिन कर रहे हैं.
हालांकि इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने इस मामले में याचिकाकर्ता को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि जाओ पहले ताजमहल के बारे में पढ़ो, PIL यानी कि जनहित याचिका का दुरुपयोग ना करो... कोर्ट ने भले ही मामले को सुनने से इंकार कर दिया है. लेकिन विवाद दीया कुमारी के बयान को लेकर खड़े हो रहे हैं. सबसे पहले उनके बयान सुनते हैं....
वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल के सवाल
वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल ने दीया कुमारी के इस बयान पर अपने ट्विटर हैंडल से सिलसिलेवार सवाल खड़े किए हैं. उन्होंने अपने पहले ट्वीट में लिखा कि
500 साल मुस्लिम, 200 साल ब्रिटिश, 55 साल कांग्रेसऔर 15 साल के बीजेपी राज में, जयपुर राजघराना यानी अकबर के सेनापति मान सिंह और औरंगजेब के सेनापति जय सिंह के वंशज कभी सत्ता से बाहर नहीं रहे. हमेशा सत्ता को सलाम ठोंका. महाराणा प्रताप और जयपुर घराने की तुलना नहीं हो सकती.
वहीं अगले ट्वीट में उन्होंने सवाल खड़े करते हुए कहा, पिछले 750 साल में जयपुर राजघराने ने कौन सी लड़ाई लड़ाई लड़ी? ये अपनी तलवारों का करते क्या हैं? न मुग़लों के खिलाफ चलीं, न अंग्रेजों के खिलाफ.
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वहीं ताजमहल पर दावे वाले बयान को लेकर वरिष्ठ पत्रकार ने लिखा, 'जयपुर के राजा मान सिंह अकबर की तरफ़ से महाराणा प्रताप से और जयपुर के ही दूसरे राजा जय सिंह औरंगजेब की तरफ़ से शिवाजी से लड़े, लेकिन शाहजहां ने इनसे आगरा वाला प्लॉट छीन लिया तो राणा साहब सरेंडर कर गए. ये कहानी कुछ जमी नहीं दीया जी.
दिलीप मंडल ने सवाल पूछते हुए लिखा कि मेरे पास इसके प्रमाण हैं कि आगरा पर जाट और जयपुर/आमेर पर मीणा शासन था. आप लोगों ने उनकी ज़मीन ली थी. गुर्जरों की काफ़ी ज़मीन भी आपके पूर्वजों ने क़ब्ज़ाई थी और अब उसमें कुछ पर होटल वग़ैरह चलाए जा रहे हैं. अवैध क़ब्ज़ा आप लोगों ने किया था. हिसाब दीजिए. डिटेल में बताऊं क्या कि भारमल, मानसिंह और जय सिंह ने क्या किया था? देखिए, मुंह न खुलवाइए. वरना बता दूंगा कि महाराणा प्रताप और छत्रपति शिवाजी महाराज के खिलाफ मुग़लों के सेनापति कौन थे? अगर शाहजहां ने आगरा कि कोई जमीन जबरन ले ली थी तो उसके बाद जय सिंह औरंगजेब के सेनापति कैसे बने?
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दीया कुमारी बोली, मौजूद है कागजात
हालांकि दीया कुमारी की तरफ से इन सवालों को लेकर कोई जवाब नहीं आया है. लेकिन उनका दावा है कि उनके पास ऐसे डॉक्यूमेंट मौजूद हैं, जो बताते हैं कि ताजमहल पहले जयपुर के पुराने राजपरिवार का पैलेस हुआ करता था, जिस पर शाहजहां ने कब्जा कर लिया था. क्योंकि तब उसका शासन था और जयपुर परिवार, उसका विरोध नहीं कर सका.
हालांकि क्या वहां मंदिर था? इस सवाल को लेकर दीया कुमारी ने कहा मैंने अभी सारे डॉक्यूमेंट नहीं देखे हैं, लेकिन वह प्रॉपर्टी हमारे परिवार की थी. अगर कोर्ट आदेश देगा तो हम उसे डॉक्यूमेंट्स देंगे. हमारे पास मौजूद डॉक्यूमेंट में यह बात साफ है कि शाहजहां को उस वक्त वह पैलेस अच्छा लगा तो उसे एक्वायर कर लिया.
दीया कुमार के दावे पर उठ रहे सवालों के बीच यह जानना जरूरी है कि ताजमहल का निर्माण किस जमीन पर हुआ है?
दीया कुमारी के दावे का सच
शाहजहां ने तय किया था कि वह अपनी पत्नी मुमताज़ का मकबरा स्वर्ग जितना सुंदर बनाएंगे. मुमताज़ के जाने के बाद तय किया गया कि उन्हें अकबराबाद में दफ़नाया जाएगा. तब आगरा को अकबराबाद कहा जाता था. भव्य और विशाल मकबरे का स्ट्रक्चर बहुत भारी होता, इसलिए आर्किटेक्ट्स ने तय किया कि मकबरा यमुना नदी के पास बने. ये ज़मीन राजा मान सिंह के नाम थी, जो अकबर के सेनाध्यक्ष थे. राजा मान सिंह और मुग़लों के परिवारों में शादियां भी हुई थीं, इस वजह से उनके बीच अच्छे तालुक्कात थे.
इतिहासकार डब्ल्यूई बेगली और ज़ियाउद्दीन.ए देसाई ने उस काल के कई मुगलकालीन आदेश संकलित किए थे. दस्तावेजों में इस बात की तस्दीक होती है कि जिस जमीन पर ताज खड़ा है, वह दीया कुमारी के पूर्वज आमेर के राजा जय सिंह प्रथम की थी. लेकिन दस्तावेजों में यह भी लिखा है कि जय सिंह को अपनी हवेली छोड़ने के बदले अच्छा-खासा मुआवजा मिला था. इतना ही नहीं ताजमहल बनवाले के लिए इस्तेमाल किए गए संगमरमर भी इन्होंने ही उपलब्ध करवाए थे.
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एक अन्य इतिहासकार मुहम्मद अमीन काजविनी के मुताबिक जय सिंह ने यह जमीन दान में दी थी. ऐसा कर वह मुग़ल सल्तनत के प्रति अपनी गंभीरता और निष्ठा जताना चाहते थे. लेकिन शहंशाह ने इसके बदले में राजा को एक विशाल घर दे दिया जो कि शाही संपत्ति का हिस्सा था.
जमीन के बदले मिला तगड़ा मुआवजा
द प्रिंट ने लिखा है कि 28 दिसंबर 1633 को जारी एक फरमान राजा जय सिंह की उस हवेली के बदले दिए गए मुआवजे का सटीक ब्योरा देता है जो उन्होंने मकबरा बनाने के लिए पूरे होशो-हवाश में और स्वेच्छा से उपहार स्वरूप प्रदान की थी.
लेख के मुताबिक अकबराबाद हवेली के बदले राजा सिंह को राजा भगवानदास, माधो सिंह, रूपसी बैरागी और सूरज सिंह के बेटे चांद सिंह की हवेलियां मिलीं. राजा जय सिंह ने मुमताज़ महल की मृत्यु के कुछ ही समय बाद संभवत: दिसंबर 1631 तक अपनी संपत्ति दान कर दी होगी लेकिन इसके बदले में शाहजहां की तरफ से शाही संपत्ति के अनुदान को पूरा करने में लगभग दो साल लग गए.
रूपसी बैरागी ने इन हवेलियों में से एक हवेली अपनी भतीजी और राजा भारमल की बेटी, मरियम-उज-जमानी यानी कि जोधाबाई को साल 1562 में मुगल सम्राट अकबर से शादी के अवसर पर उपहार स्वरूप दिया था.
डब्ल्यूई बेगली और ज़ियाउद्दीन.ए देसाई की किताब ‘Taj Mahal: The Illumined Tomb’ में उस दौर के सारे दस्तावेज़ों का संकलन किया है. उसमें ये लिखा है कि राजा जय सिंह इस जमीन को फ्री में देने को तैयार था, फिर भी शाहजहां ने बदले में उन्हें तीन चार आलीशान महल दिए.
जयपुर के सिटी पैलेस में इस फ़रमान की सर्टिफ़ाइड कॉपी भी रखी हुई है. जिसके मुताबिक 1631 में जब तय हुआ था कि उसी जगह मुमताज़ का मकबरा बनेगा, उसी समय राजा जय सिंह ने वो जगह उन्हें दे दी थी. लेकिन इसके बदले में शाहजहां ने 28 दिसंबर, 1633 को उन्हें चार हवेलियां दीं.
यहां दो बातें स्पष्ट हो जाती है. पहली यह कि ताजमहल मंदिर तोड़कर नहीं बनाया गया था. वहीं दस्तावेज के मुताबिक दीया कुमारी के दावे तो सही हैं कि जमीन उनके पूर्वजों की थी. लेकिन यह उनसे ज़ोर जबरदस्ती से नहीं लिया गया. इसके बदले में बिना मांगे उन्हें कई हवेलियां दी गई. इतिहासकारों ने अपने किताब में बाकायदा इस बात के सबूत दिए हैं, जो तबके दौर में फरमान के तौर पर जारी किए जाते थे.