UP Police : रोटी दिखाते हुए फूट-फूट कर रोने वाले कॉन्स्टेबल की नौकरी बचेगी या जाएगी?

Updated : Aug 25, 2022 19:41
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Deepak Singh Svaroci

Even Animals won't eat this : एक तरफ पूरे देश में आज़ादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है. रंग-बिरंगे कपड़ों में ख़ूबसूरत दिख रहे युवा-युवतियां हाथों में तिरंगा लिए, मुस्कुरा रहे हैं. तो वहीं दूसरी तरफ उत्तरप्रदेश के फ़िरोज़ाबाद जिले में एक पुलिस कॉन्स्टेबल हाथों में थाली लिए, दिखा रहा है कि वह अपनी दशा पर रोए या जश्न मनाए. पुलिस कॉन्स्टेबल के हाथ में खाने की थाली है. जो उसे खाने के लिए मिली है. लेकिन वह थाली देखकर ख़ुश नहीं हो रहा, रो रहा है.

सोचिए, कई बच्चे पढ़ाई के नाम पर अपना लड़कपन यह सोच कर क़ुर्बान कर देते हैं कि वह जब बड़ा होगा तो अच्छी नौकरी करेगा. नौकरी अच्छी होगी तो वह अपने पूरे परिवार का पेट भर सकेगा. कपड़े और मकान की बात बाद में आती है. लेकिन जब उस बच्चे को पता चले कि उसकी जवानी ऐसी होगी और ख़ुद को भी बढ़िया खाना दिलाने के लिए इस तरह कैमरे पर आकर रोना पड़ेगा, तो वह क्या करेगा? 

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कॉन्स्टेबल ने मीडिया के सामने क्यों बनाया तमाशा?

क्या यह पुलिस कॉन्स्टेबल ऐसे ही मज़े-मज़े में हाथों में थाली लिए हुए सड़क पर लोगों के सामने अपने खाने का प्रदर्शन करने आ गया होगा. क्या यह पुलिस कॉन्स्टेबल बिगड़ैल है जो पहली बार ख़राब खाना देखकर बौखला गया और इस तरह सड़क पर अपने विभाग का तमाशा बनाने लगा?

क्या पुलिस कॉन्स्टेबल ने सड़क पर खाना का तमाशा बनाने से पहले यह नहीं सोचा होगा कि बड़े अधिकारियों को पता चलेगा, तो उसके साथ क्या-क्या हो सकता है. एक बार वह वीडियो देखिए. सिपाही खाना दिखाते हुए कहता है कि 12-12 घंटे काम करो और जानवरों जैसे खाने खाओ. क्या ये खाना कोई खा पाएगा?

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सिस्टम से लड़ना आसान या मुश्किल?

क्या किसी व्यक्ति के लिए सिस्टम से लड़ना आसान होता है? इस सवाल का जवाब आप ख़ुद से पूछिए. आप भी अपनी ज़िदगी में कहीं ना कहीं प्रताड़ित हो रहे होंगे, शोषण का शिकार हो रहे होंगे... क्या आप इस तरह सड़क पर उस सिस्टम को धिक्कारते हुए तमाशा बना सकते हैं.

सिस्टम में काम करते हुए उसी के ख़िलाफ़ खड़े होने का दु:स्साहस आप तभी कर सकते हैं जब बात आपकी रोटी पर आ जाए या ज़िदगी पर...  

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पुलिस कांस्टेबल के तमाशे की वजह कुछ और तो नहीं

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पुलिस कांस्टेबल का नाम मनोज कुमार है, जो अलीगढ़ का रहने वाला है और फिरोजाबाद में ड्यूटी करता है. मैं ये नहीं कहता कि मनोज कुमार जो कह रहा है वह सब सही है. हो सकता है इस तमाशे की असल वजह कुछ और ही हो. लेकिन विजुअल देखकर यह तो कहा ही जा सकता है कि खाने की क्वालिटी अच्छी नहीं है. ऐसा नहीं है कि यह सिर्फ पुलिस वालों के साथ ही हो रहा है. बीएसएफ, सीआरपीएफ, सेना और अन्य सुरक्षाकर्मियों की नौकरी में भी इस तरह की शिकायतें आती रही हैं.   

तेज बहादुर यादव  (Tej Bahadur Yadav) का क्या हुआ?

आपके सामने  सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) जवान तेज बहादुर यादव का उदाहरण है. 2017 में सोशल मीडिया पर बीएसएफ़ जवान का एक वीडियो ख़ूब वायरल हुआ था. वीडियो में तेज बहादुर फ़ौजियों को मिलने वाले खाने की शिकायत करते दिखाई दे रहे थे. वो बता रहे थे कि उन्हें कैसी गुणवत्ता का खाना मिलता है.

उन्होंने वीडियो में यह भी बताया कि अफसरों से शिकायत करने और गृहमंत्रालय को चिट्ठी लिखने के बाद भी कोई बदलाव नहीं हुआ. कायदे से होना तो यह चाहिए था कि शिकायत मिलने के बाद जवानों को मिलने वाले खाने में सुधार किया जाता. लेकिन हुआ यह कि तेज बहादुर को बीएसएफ़ से ही निकाल दिया गया.

तनाव में क्यों हैं पुलिस और सुरक्षाकर्मी

पिछले महीने भारत-पाक मुनाबाव बॉर्डर पर तैनात जवान की अचानक तबीयत खराब होने से इलाज के दौरान मौत हो गई. जानकारी मिली कि जवान ने रात में खाना खाया, जिसके बाद बैचेनी होने लगी. बाद में इलाज के दौरान जवान की मौत हो गई. वहीं एक अन्य घटना में जोधपुर में छुट्‌टी नहीं मिलने से नाराज CRPF जवान नरेश जाट ने 11 जुलाई को खुद को गोली मार ली. कुछ दिनों पहले सोशल मीडिया पर एक महिला आईएएस अफसर ने शायराना अंदाज में छुट्टी ना मिलने पर दुख जाहिर करते हुए कुछ बात लिखी थी जो खूब वायरल हुआ... वह लिखती हैं- ऐसे मोड़ पर ले आती है नौकरी अपने ही घर जाने के लिए दूसरों से इजाजत लेनी पड़ती है... अंदाज़ भले ही शायरना हो लेकिन बात बेहद गंभीर है. 

आप गूगल पर सर्च कर लीजिए आपको शोषण की सैकड़ों कहानियां मिल जाएंगीं, लेकिन क्या इसके बाद कुछ बदला? 

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दिल्ली पुलिस में क्या है नियम?

दिल्ली पुलिस के कुछ लोगों से मैंने बात की और जानना चाहा कि आधिकारिक तौर पर उन्हें किस तरह का खाना और छुट्टियां देने का प्रावधान है. उन्होंने बताया कि दिल्ली पुलिस में दो बार खाना देने का प्रावधान है. खाने में दाल, रोटी, सब्ज़ी, सलाद मिलनी चाहिए और रोज़ाना सब्जी-दाल चेंज होनी चाहिए. वहीं छुट्टी को लेकर उन्होंने बताया कि साल में 30 ईएल, 12 सीएल, गजेटेड हॉलीडे और 8 परमिशन की छुट्टी अलाउड है. साथ ही रोजाना 8 घंटे की नौकरी करनी होती है. सप्ताह में एक दिन वीकऑफ के तौर पर मिलता है.

क्या वाकई में पुलिसवालों को इतनी सुविधाएं मिलती हैं. मैंने रिपोर्टिंग के दौरान कई पुलिसवालों से बात की है. वे बताते हैं कि रोज़ाना 12 घंटे की नौकरी तो बेहद आम है. गजेटेड हॉलीडे पर छुट्टी तो नहीं मिलती, हां ओवरटाइम ज़रूर करना होता है.

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यूपी पुलिस में किस तरह का प्रावधान है और मौजूदा दौर में जिस तरह की दिनचर्या है क्या एक पुलिसकर्मी के कामकाज के लिहाज़ से वह ठीक है. इन्हीं तमाम मुद्दों पर बातचीत के लिए हमारे साथ जुड़ गए हैं, उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी अरविंद जैन... 

UP Policefood crisis

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