Why Controversy over Vande Mataram? : भारत के राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम् पर क्यों होता है विवाद? वंदे मातरम् का इतिहास क्या है और वंदे मातरम् को किस तरह भारत का राष्ट्रीय गीत बनाया गया. भारत के इस राष्ट्रीय गीत से जुड़े तथ्य और इतिहास को जानते हैं editorji हिन्दी के विशेष एपिसोड में...
ज्यादा दिन नहीं बीते जब मेरठ, मुरादाबाद, वाराणसी और गोरखपुर के नगर निगमों की बैठक में पार्षदों ने वंदे मातरम् गाने से इनकार कर दिया था. कांग्रेस, एसपी और बीएसपी के सदस्यों ने इस गीत पर अपना विरोध दर्ज कराया था. 2006 में राष्ट्रीय गीत के शताब्दी समारोह से पहले दारुल उलूम (Darul Uloom Deoband) ने वंदे मातरम् को "इस्लामिक विरोधी" बताते हुए एक फतवा जारी किया था.
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2009 में जमीयत ने राष्ट्रगान के खिलाफ एक और फतवा जारी किया था. 2013 में तत्कालीन बीएसपी सांसद शफीकुर्रहमान तब लोकसभा से बाहर चले गए थे जब वंदे मातरम गाया जा रहा था. महान कवि बंकिम चंद्र चटर्जी (Bankim Chandra Chatterjee) ने 20 दिसंबर 1876 में राष्ट्र गीत ‘वंदे मातरम्’ (Vande Mataram) की रचना की. आइए जानते हैं कि आखिर क्यों महान कवि बंकिम चंद्र चटर्जी द्वारा रचित इस उपन्यास पर विवाद होता है?
वन्दे मातरम् को बंकिमचन्द्र चटर्जी द्वारा संस्कृत बांग्ला मिश्रित भाषा में लिखा गया था. 1882 में इसे उनके उपन्यास आनन्द मठ में इसे शामिल गया गया था. यह गीत भवानन्द नाम के संन्यासी द्वारा गाया गया है. इसकी धुन यदुनाथ भट्टाचार्य ने बनाई थी. इस गीत को गाने में 65 सेकेंड (1 मिनट और 5 सेकेंड) का समय लगता है.
संस्कृत शब्द वंदे की जड़ वंद है. इसका इस्तेमाल ऋग्वेद में किया गया है और इसका अर्थ है "प्रशंसा करना, जश्न मनाना, सम्मानपूर्वक नमस्कार करना" है और "मातरम्" शब्द की जड़ इंडो-यूरोपियन शब्द मातृ में है... संस्कृत में ये मातृ है, ग्रीक में मेतर, लैटिन में मतेर... हर जगह इसका इस्तेमाल मां के लिए ही होता है...
"वंदे मातरम्" मूल रूप से 'बंदे मातरम्' की तरह प्रोनाउंस की गई है. बंगाली भाषा में व शब्द नहीं है इसीलिए इसे बंदे मातरम् कहा गया. इसे 1875 में बंकिम चंद्र चटर्जी ने लिखा था. 1882 में उनके उपन्यास "आनंदमठ" (Anandamath) में कुछ और छंदों के साथ इसे जगह दी गई. इसका मतलब है "मैं आपकी प्रशंसा करता हूं, मां" या "मैं आपकी प्रशंसा करता हूं" तुम्हारे लिए, माँ ”...
तो आखिर क्यों इसे लेकर विरोध होता है? क्या यह हमारी मां या मातृभूमि की प्रशंसा करने वाले दो शब्दों की वजह से है या इस गीत में ऐसा कुछ है जो अल्पसंख्यक विरोधी है...? अल्पसंख्यक मानते हैं कि "वंदे मातरम्" का उच्चारण करके एक मुस्लिम "शिर्क" कर रहा है जो कि अल्लाह के अलावा किसी दूसरे की पूजा करने को कहते हैं. और इस्लाम में ये एक तरह का अपराध है. और वंदे मातरम् गीत पर सलाह मशवरे के दौरान ये बात सामने आई कि इसे हिंदू देवी दुर्गा की अराधना करते हुए लिखा गया है.
vande mātaram / मैं आपके सामने नतमस्तक होता हूँ। ओ माता!
sujalāṃ suphalāṃ malayajaśītalām / पानी से सींची, फलों से भरी, दक्षिण की वायु के साथ शान्त,
śasya śyāmalāṃ mātaram / कटाई की फसलों के साथ गहरी, मां
vande mātaram / मैं आपके सामने नतमस्तक होता हूँ। ओ माता!
śubhra jyotsnām pulakita yāminīm / उसकी रातें चाँदनी की गरिमा में प्रफुल्लित हो रही हैं,
phoolla kusumita droomadalaśobhinīm / उसकी जमीन खिलते फूलों वाले वृक्षों से बहुत सुन्दर ढकी हुई है,
suhāsinīṃ sumadhuram bhāṣiṇīm / हँसी की मिठास, वाणी की मिठास,
sukhadāṃ varadāṃ mātaram / माता! वरदान देने वाली, आनन्द देने वाली।
vande mātaram / मैं आपके सामने नतमस्तक होता हूँ। ओ माता!
यही वजह हो सकती है कि एक अल्पसंख्यक "नमस्कार" से परहेज करते हैं क्योंकि ऐसा माना जाता है कि वह अल्लाह के अलावा किसी और के आगे झुक रहा है और इस तरह शिर्क करता है जो इस्लाम धर्म में सबसे बड़ा अक्षम्य अपराध है.
हालांकि वंदे मातरम् को लेकर ज्यादातर प्रदर्शनों की शुरुआत 19वीं सदी के आसपास हुई थी और तब इसकी वजह इस्लामिक नियम नहीं थे. 1908 में ऑल इंडिया मुस्लिम लीग के सर सैयद अली ईमाम ने ऑल इंडिया मुस्लिम लीग के सेशन में अपना विरोध जाहिर किया था.
उन्होंने कहा था कि मैं नहीं कह सकता कि आप क्या सोचते हैं, लेकिन जब मैं नजर डालता हूं तो पाता हूं कि भारत के सबसे तरक्की वाले इलाके ने बंदे मातरम् के सांप्रदायिक नारे को राष्ट्रीय आह्वान के रूप में सामने रखा है, सांप्रदायिक रक्षा बंधन को राष्ट्रीय पर्व के तौर पर पेश किया गया और इसे देखकर मेरा दिल निराशा से भर गया है. इससे पुख्ता हो जाता है कि राष्ट्रवाद की आड़ में, भारत में हिंदू राष्ट्रवाद का प्रचार किया जा रहा है.
सर सैयद अली ईमाम का इशारा रक्षा बंधन के उस उत्सव की ओर था जिसे लॉर्ड कर्जन द्वारा बंगाल के विभाजन के खिलाफ हिंदू और मुस्लिमों की खाई पाटने के लिए रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा 1905 में आयोजित किया गया था. हैरानी की बात ये है कि जून 1905 में असम में बंगाल को विभाजित करने का निर्णय लिया गया. यहां अल्पसंख्यक अपनी पहचान बनाए रखने के लिए एक अलग राज्य चाहते थे.
अंग्रेजों ने अपने स्वार्थी एजेंडे को पूरा करने के लिए पश्चिम बंगाल, बिहार और ओडिशा के हिंदू बहुसंख्यक क्षेत्रों को असम और सिलहट के मुस्लिम बहुल क्षेत्रों से अलग करने की योजना बनाई थी. अंग्रेजों के मंसूबे को बहुसंख्यक आबादी की पसंद के साथ जोड़ दिया गया और इसी के बाद सैयद अली इमाम की टिप्पणी सामने आई.
ये वक्त था जब "वंदे मातरम्" का विरोध रह रहकर हो रहा था और बहिष्कार देशव्यापी रूप नहीं ले पाया था, तब 1937 में कांग्रेस ने "वंदे मातरम" को पहले दो छंदों तक सेंसर और सीमित किया और बाकी 3 छंदों को अल्पसंख्यक विरोधी माना था. वंदे मातरम् स्वतंत्रता के लिए अपने संघर्ष में लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत था और जाति पंथ धर्म के बावजूद, बिना किसी हिचकिचाहट के सभी लोग इसे गाते भी थे.
कई लोगों ने इसे 1937 तक कभी भी अल्पसंख्यक विरोधी नहीं पाया था... लेकिन जब कांग्रेस कार्य समिति की बैठक में कहा गया कि समिति गीत के कुछ हिस्सों पर अल्पसंख्यक मित्रों द्वारा उठाई गई आपत्ति की वैधता को पहचानती है और घोषणा करती है कि राष्ट्रीय गीत के रूप में "सिर्फ पहले दो छंदों को गाया जाना चाहिए" क्योंकि इनका कोई धार्मिक अर्थ नहीं है.
आजादी के लगभग 25 वर्षों के बाद यह मुद्दा फिर उठा. 1973 में बंबई के एक नगर निगम के स्कूल में वंदे मातरम गाने पर आपत्ति जताई गई.
इतिहासकार सब्यसाची भट्टाचार्य के अनुसार, जब बंकिम ने पहली बार 1870 की शुरुआत में इसे लिखा था, तो यह मातृभूमि के लिए एक सुंदर भजन था लेकिन आनंदमठ में छपने से पहले इस सुंदर भजन को चार और छंदों के साथ बड़ा कर दिया गया और यह धार्मिक भावनाओं का प्रतीक था.
हालांकि ये चार पद हिन्दू धार्मिक भावनाओं से ओत-प्रोत थे लेकिन इस्लाम विरोधी कतई नहीं थे. अगर हम 1770 के दशक में वापस जाएं, तो बंगाल में नवाब के खिलाफ फकीर और संन्यासी साथ लड़े थे... नवाब ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रभाव में भी ग्रामीणों से राजस्व वसूल करता था. बंगाल गंभीर कृषि संकट से गुजर रहा था और आबादी का एक बड़ा हिस्सा भूख से मर रहा था.
हिंदू संन्यासियों और मुस्लिम फकीरों ने विद्रोह का नेतृत्व किया. विद्रोह को ब्रिटिश सैनिकों ने खत्म कर दिया, नवाब को हटा दिया गया और ईस्ट इंडिया कंपनी ने प्रशासन और राजस्व संग्रह पर सीधा नियंत्रण ले लिया. इस विद्रोह में आनंदमठ ने भी फकीरों के साथ मिलकर जमीन तैयार की थी...
भारत में जब राष्ट्रगान की जरूरत महसूस हुई तो वंदे मातरम् के पुराना होने और स्वतंत्रता संग्राम में व्यापक रूप से इस्तेमाल होने की वजह से इसे भी एक विकल्प के तौर पर देखा गया लेकिन बाद के हिस्से ने कांग्रेस के मन में संदेह पैदा कर दिया था, इसलिए समीक्षा के लिए टैगोर, नेहरू, सुभाष बोस को मिलाकर एक समिति का गठन किया गया.
सुभाष चंद्र बोस को डर था कि अगर समिति गीत को छोड़ देती है, तो यह बंगाल में हिंदुओं की इच्छाओं के खिलाफ होगा. उन्होंने 1937 में टैगोर को लिखे पत्र में यह डर जताया भी था.. आनंदमठ का अंग्रेजी अनुवाद पढ़ने वाले जवाहरलाल नेहरू ने टैगोर को 1937 में एक पत्र लिखा था और माना था कि उपन्यास की पृष्ठभूमि 'अल्पसंख्यकों के लिए सही नहीं' है.
सुभाष चंद्र बोस को लिखे एक पत्र में टैगोर के विचार और भी साफ थे. उन्होंने लिखा, “वंदे मातरम का सार देवी दुर्गा का भजन है: यह इतना सादा है कि इस पर कोई बहस नहीं हो सकती. महात्मा गांधी ने भी गीत को व्यावहारिक नजरिए से देखा. गीत और स्वतंत्रता संग्राम से इसके संबंध के प्रति गहरी श्रद्धा व्यक्त करते हुए, उन्होंने कहा कि यह सांप्रदायिक दुश्मनी की वजह नहीं बनना चाहिए. वह इसके ऐतिहासिक महत्व की सराहना करने के लिए अल्पसंख्यकों के पास पहुंचे.
स्वाधीनता संग्राम में इस गीत की असरदार भागीदारी के बावजूद जब राष्ट्रगान के चयन की बात आई तो वंदे मातरम् के स्थान पर रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा लिखे व गाये गये गीत जन गण मन को वरीयता दी गई. वजह साफ थी कि इस गीत में देवी दुर्गा को राष्ट्र के रूप में देखा गया है. इसके अलावा उनका यह भी मानना था कि यह गीत जिस आनन्द मठ उपन्यास से लिया गया है वह अल्पसंख्यकों के खिलाफ लिखा गया.
इन आपत्तियों के मद्देनजरकांग्रेस ने इस विवाद पर गहरा चिन्तन किया. जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में गठित समिति जिसमें मौलाना अबुल कलाम आजाद भी शामिल थे, ने पाया कि इस गीत के शुरुआती दो पद तो मातृभूमि की प्रशंसा में कहे गये हैं, लेकिन बाद के पदों में हिन्दू देवी-देवताओं का जिक्र होने लगता है; इसलिये यह निर्णय लिया गया कि इस गीत के शुरुआती दो पदों को ही राष्ट्र-गीत के रूप में इस्तेमाल किया जाएगा.
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इस तरह गुरुदेव रवीन्द्र नाथ ठाकुर के जन-गण-मन अधिनायक जय हे को राष्ट्रगान ही रहने दिया गया और मोहम्मद इकबाल के कौमी तराने सारे जहाँ से अच्छा के साथ बंकिमचन्द्र चटर्जी द्वारा रचित शुरुआती दो पदों का गीत वंदे मातरम् को राष्ट्रगीत के रूप में स्वीकार किया गया.
स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद ने संविधान सभा में 26 जनवरी 1950 में 'वन्दे मातरम्' को राष्ट्रगीत के रूप में अपनाने सम्बन्धी वक्तव्य पढ़ा जिसे स्वीकार कर लिया गया.
चलते चलते 20 दिसंबर को हुई दूसरी अहम घटनाओं पर एक नजर डाल लेते हैं
1924 - जर्मनी में एडोल्फ हिटलर की जेल से रिहाई
1942 – द्वितीय विश्व युद्ध में जापानी एयरफोर्स ने कलकत्ता पर बम गिराए
1731 - प्रतापी योद्धा छत्रसाल का निधन हुआ
1757 - लार्ड क्लाईव को बंगाल का गवर्नर बनाया गया
1955 - भारतीय गोल्फ संघ का गठन