भारत में दुग्ध क्रांति या श्वेत क्रांति (Milk Revolution or White Revolution) लाने में AMUL का अमूल्य योगदान है. आज हम अमूल की कहानी (Story of AMUL) को करीब से जानेंगे और साथ ही जानेंगे महान शख्सियत वर्गीज कुरियन (Verghese Kurien) के बारे में, जिन्होंने अमूल को बुलंदी पर पहुंचा दिया..
पेस्तोंजी इदुल्जी दलाल (Pestonjee Eduljee Dalal)... 13 साल की उम्र में इस लड़के ने बॉम्बे में 1888 में कॉफी की एक दुकान खोली... अपने नाम के फेमस रूप पॉली और कंपनी के साथ Son जोड़ने की जरूरत ने इसे नाम दिया पॉलसन (Polson Limited) का... दुकान खुली और बॉम्बे के अंग्रेज अफसरों की चहेती बन गई. कारोबार बढ़ा तो और पैसे कमाने की चाहत भी बढ़ी.
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1910 के बाद कंपनी ने गुजरात के काइरा में एक डेयरी खोली. पॉलसन का जो कॉन्टैक्ट बॉम्बे में बन चुका था उसके दम पर काइरा की डेयरी को सप्लाई के ऑर्डर भी मिलने लगे थे... 1930 के बाद वह दौर आया जब पॉलसन डेयरी ने भारत के मक्खन कारोबार से मिलने वाली कमाई अपनी झोली में डाली... क्या होता, कोई कॉम्पिटिशन था ही नहीं.
कंपनी ने मुनाफा तो खूब कमाया लेकिन दूध देने वाले किसानों का खूब दोहन किया... और यही वजह कंपनी का काल बन गई. भारत जब आजादी की अंगड़ाई ले रहा था, तब इसी गुजरात में AMUL ने आकार लिया... सालों बाद अमूल को बुलंदी पर पहुंचाया वर्गीज कुरियन ने... कुरियन के फैसलों ने देश में दूध की नदियां बहा दीं.
आज की तारीख का संबंध है वर्गीज कुरियन से... 9 सितंबर 2012 को ही भारत में श्वेत क्रांति लाने वाले कुरियन ने अंतिम सांस ली थी.
AMUL की स्थापना पॉलसन डेयरी के खिलाफ कोऑपरेटिव मूवमेंट से हुई थी... पॉलसन डेयरी काइरा जिले (Polson Dairy in Kaira District) में किसानों से बेहद कम कीमत पर दूध खरीदती थी और फिर प्रॉडक्ट बनाकर बॉम्बे गवर्नमेंट को ऊंचे दाम पर बेचती थी. किसानों को छोड़कर हर किसी को इससे फायदा ही हो रहा था. किसान अपनी अपील लेकर सरदार पटेल (Sardar Vallabh Bhai Patel) के पास पहुंचे. 1946 आते-आते गुजरात के काइरा में एंट्री होती है महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित किसान और सामाजिक कार्यकर्ता त्रिभुवनदास पटेल (Tribhuvandas Kishibhai Patel) की... साथ आते हैं सरदार पटेल भी.
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पटेल 1942 से ही किसानों की सहकारी समितियों की वकालत कर रहे थे. नतीजा ये हुआ कि आणंद में काइरा जिला सहकारी दुग्ध उत्पादक संघ लिमिटेड (Kaira District Co-operative Milk Producers Union Ltd.) का गठन हुआ. यूनियन ने बॉम्बे मिल्क स्कीम के लिए मुट्ठी भर किसानों से दूध लेकर इसे पाश्चुराइज़ करना शुरू कर दिया. 1948 के आखिर तक किसानों की संख्या 432 हो गई. वक्त के साथ उत्पादन से जुड़ी नई जरूरतें भी पैदा हुईं. यहां एक नया प्लांट बनाया गया.
डॉ. वर्गीज कुरियन (Dr. Verghese Kurien) को भारत का मिल्कमैन भी कहा जाता है. वही सही मायने में अमूल के वास्तुकार थे. अमूल में उनकी यात्रा 1949 में तब शुरू हुई जब वे एक सरकारी कर्मचारी के रूप में एक डेयरी का मैनेजमेंट संभालने के लिए आणंद पहुंचे.
हालांकि उस वक्त दूध के पाउडर की मांग ज्यादा नहीं थी लेकिन तब भी सरकार भैंस के दूध से पाउडर बनाना चाहती थी. जबकि पूरी दुनिया गाय के दूध से पाउडर बना रही थी. उस वक्त ऐसा माना जाता था कि सप्रेटा दूध व पाउडर सिर्फ गाय के दूध से बनाया जा सकता है. भैंस के दूध से पाउडर बनाना बहुत ही बड़ी चुनौती थी. लेकिन टीम के साथ कुरियन को भैंस के दूध के प्रसंस्करण तथा गाढ़ा दूध बनाने में कामयाबी हासिल हुई. यह बड़ी कामयाबी थी.
साल 1946 में त्रिभुवनदास पटेल ने काइरा डिस्ट्रिक्ट कोऑपरेटिव मिल्क प्रोड्यूसर्स यूनियन लिमिटेड के अंतर्गत 5 गांवों की सहकारिता बनाई. बाद में त्रिभुवनदास के कहने पर डॉ. कुरियन ने नौकरी छोड़ दी और साथ मिलकर उन दोनों ने 11 महीने के अंदर एक मॉडर्न डेयरी प्लांट (Modern Dairy Plant) की स्थापना कर दी. इसका मालिकाना हक किसानों के पास था.
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काइरा डेयरी में अक्टूबर 1955 में भैंस के दूध से पाउडर बनाने का प्लांट बनाया गया. तब प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू (Prime Minister Jawaharlal Nehru) ने साल 1955 में यह प्लांट राष्ट्र को समर्पित किया था. साल 1957 में किसानों का यह प्लांट अमूल के नाम से रजिस्टर्ड हुआ. यह AMUL की बहुत बड़ी कामयाबी थी. कामयाबी इसलिए क्योंकि इससे पहले दूध प्रोड्यूसर से जितना दूध लिया जाता था और पाश्चुराइजेशन के बाद जितना बिक पाता था, उसके अलावा बचा हुआ दूध बर्बाद हो जाता था, क्योंकि पाउडर बनाने की तकनीक (भैंस के दूध के लिए) थी ही नहीं. AMUL के लिए रेवेन्यू जेनरेशन में इस एक तकनीक ने गजब का रोल प्ले किया. 1960 आते-आते AMUL की कामयाबी की कहानियां छपने लगी थीं. पॉलसन पीछे छूट चुका था.
यहां ये भी बता दें कि शब्द 'AMUL', 'अमूल्य' से लिया गया है, जिसका संस्कृत में अर्थ है 'कीमती' या 'अनमोल. यहीं से भारत में सहकारिता आंदोलन का सूत्रपात हुआ.
1964 में AMUL ने नए जमाने का कैटल फीड प्लांट बानाया. इसे पशुओं के चारे के लिए तैयार किया गया था. इसके उद्घाटन के लिए तब के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री (Prime Minister Lal Bahadur Shastri) को आमंत्रित किया गया था. पीएम अमूल की कार्यशैली देखकर यूं प्रभावित हुए कि जो कार्यक्रम एक दिन का था उसे और भी लंबा कर दिया.
उन्होंने AMUL के पूरे सिस्टम को करीबी से समझा और लगभग सभी को ऑपरेटिव सोसायटी में भी घूमे और जाना कि अमूल किस तरह उनसे दूध लेता है. वह यह भी जानकर खुश हुए कि अमूल किस तरह किसानों को फायदा पहुंचा रहा है.
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इसके बाद साल 1965 शास्त्री ने डॉ. वर्गीज कुरियन (Dr. Verghese Kurien) को याद किया. मकसद था AMUL की कहानी को आगे बढ़ाने का. शास्त्री ने राष्ट्रीय दुग्ध विकास बोर्ड (NDDB) का गठन किया. डॉक्टर कुरियन इस बोर्ड के चेयरमैन बनाए गए. लक्ष्य एक ही था अमूल के मॉडल को देश के कोने कोने में पहुंचाना.
समस्याएं तब बहुत थीं. गरीब देश भारत के पास योजनाओं को साकार करने के पैसे नहीं थे. NDDB ने वर्ल्ड बैंक से लोन मांगा लेकिन एक शर्त भी रखी कि लोन के नाम पर किसी तरह की शर्त न लाद दी जाए. 1969 में वर्ल्ड बैंक के प्रेसिडेंट भारत आए. कुरियन ने उनसे कहा- “पैसे दीजिए और भूल जाइए.” हैरानी इस बात की थी कि कुरियन की बातों का असर ऐसा हुआ कि वर्ल्ड बैंक ने न सिर्फ लोन दिया बल्कि शर्त के कॉलम में लिख भी दिया कि- एक भी शर्त नहीं...
और फिर शुरू हुआ ग्रेट मिशन... शास्त्री का सपना और कुरियन की मेहनत ने मिलकर जो किया उसने इतिहास लिख दिया. 1970 से शुरू हुआ ऑपरेशन फ्लड तीन फेस में 1996 तक चला. आणंद से चला AMUL मॉडल 94 लाख किसानों के बीच 73,300 डेयरी कॉपरेटिव (1996 तक) के रूप में पहुंच गया.
एनडीडीबी ने वर्ष 1970 में ऑपरेशन फ्लड (Operation Flood) की शुरुआत की जिससे भारत दुनिया का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक बन गया. कुरियन 1965 से 1998 तक 33 साल एनडीडीबी के अध्यक्ष रहे. साठ के दशक में देश में दूध की खपत जहां लगभग दो करोड़ टन थी वहीं 2011 में जाकर यह 12.2 करोड़ टन तक पहुंच गई.
वर्गीज कुरियन भारत में ‘श्वेत क्रांति’ के जनक थे. उन्हें ‘फादर ऑफ़ वाइट रेवोलुशन’ (Father of White Revolution) भी कहा जाता है. उन्होंने भारत को दूध की कमी से जूझने वाले देश से दुनिया का सबसे ज्यादा दूध प्रोड्यूसस करने में देश बनाने वाले सहकारी दुग्ध उद्योग के मॉडल की नींव रखी थी. उनके ‘ऑपरेशन फ्लड’ ने भारत को मिल्क प्रोड्यूसर की सूची में सबसे आगे खड़ा कर दिया. अपने जीवनकाल में 30 से ज्यादा संस्थानों के स्थापना करने वाले डॉ कुरियन को रेमन मैगसेसे, पद्मश्री, पद्म भूषण और पद्म विभूषण जैसे पुरस्कारों से सम्मानित किया गया.
ये तो हुई बात कुरियन की कामयाबी की... अब बात उस किस्से की जब कुरियन एक मिसाल भी बन गए... और वो भी अपनी ईमानदारी से. अमूल की सब्सिडिरी राष्ट्रीय सहकारी डेयरी फेडरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (NCDFI) में कुरियन की इकलौती बेटी की नौकरी लग गई थी. जब कुरियन को इसका पता चला तो उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे डाला... चेयरमैन के इस्तीफा देते ही संस्थान में खलबली मच गई. कुरियन से सवाल हुआ तो उन्होंने कहा कि जहां मेरी बेटी नौकरी करे, उस संस्थान में मैं नौकरी नहीं कर सकता हूं. आखिरकार कुरियन की बेटी ने अपना इस्तीफा दिया और चेन्नई में नौकरी के लिए चली गईं.
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भारत की श्वेत क्रांति के इस महानायक ने 9 सितंबर 2012 को नादियाड़ के अस्पताल में अपनी अंतिम सांस ली. तब वह 90 साल के थे.
चलते चलते आज की दूसरी अहम घटनाओं पर भी एक नजर डाल लेते हैं
1920 - अलीगढ़ के एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज (Anglo Oriental College Aligarh) का नाम अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (Aligarh Muslim University) किया गया
1949 - भारत की संविधान सभा ने हिन्दी को राजभाषा के रूप में स्वीकार किया.
1909- हिन्दी फ़िल्म अभिनेत्री लीला चिटनिस (Leela Chitnis) जन्म हुआ.
1967- बॉलीवुड के मशहूर अभिनेता अक्षय कुमार (Akshay Kumar) का जन्म हुआ.