When Narendra Modi become CM of Gujarat : गुजरात विधानसभा चुनाव (Gujarat Elections 2022) की गहमागहमी के बीच आइए जानते हैं उस दौर को जब नरेंद्र मोदी पहली बार राज्य के मुख्यमंत्री बने थे. आज गुजरात बीजेपी की प्रयोगशाला है और सबसे मजबूत किला भी... गुजरात को भगवा का गढ़ बनाने की शुरुआत तो 80 के दशक में ही हो चुकी थी लेकिन इसे लेकर निर्णायक कदम उठाया गया 2001 में...
तब अचानक नरेंद्र मोदी को राज्य का मुख्यमंत्री बनाने का फैसला केंद्रीय नेतृत्व ने लिया था... बड़ी बात ये कि नरेंद्र मोदी तब विधायक भी नहीं थे.
मोदी को जब पहली बार संवैधानिक पद की जिम्मेदारी मिली तब उनके सामने सिर्फ सरकार चलाने की नहीं बल्कि गुजरात में बीजेपी की सरकार बचाने की और संगठन को एकजुट रखने की भी जिम्मेदारी थी...
242 महीने पहले 7 तारीख ही वह दिन थी जब नरेंद्र मोदी ने राजनीतिक प्रतिनिधि के तौर पर अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत की थी... तब वह विधायक भी नहीं थे. 1985 में वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से बीजेपी में आए थे. यह मोदी का जुझारूपन ही था, जो पार्टी के लिए काम करते करते वह 2001 में महासचिव के पद पर पहुंचे थे...
मोदी के करियर में जब 7 अक्टूबर निर्णायक तारीख लिख रहा था तब बीजेपी राजनीतिक भंवरजाल में उलझी हुई थी... पार्टी आंतरिक कलह से जूझ रही थी और साबरमती विधानसभा व साबरकांठा लोकसभा उपचुनाव हार चुकी थी.
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पहली बार गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने के बाद, मोदी ने 'भारत माता नी जय' के नारे के साथ भाषण खत्म किया. इसके बाद वह पोडियम से नीचे उतरे... ड्रम, बिगुल बज रहा था और 'अपानु गुजरात, अगावु गुजरात' के नारों के बीच खुली जीप में बैठकर वह भीड़ के बीच पहुंच गए थे...
शपथ के चार महीने बाद उन्होंने अपना पहला चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. वजूभाई वाला ने राजकोट वेस्ट सीट खाली की थी और नरेंद्र मोदी ने यहीं से चुनाव लड़कर जीत हासिल की. 2014 में प्रधानमंत्री बनने तक मोदी मुख्यमंत्री बने रहे. वह देश में सबसे लंबे समय तक पद पर रहने वाले पहले गैर कांग्रेसी पीएम हैं.
2001 में ही, गुजरात के भुज में 26 जनवरी को भूकंप (2001 Gujarat earthquake) आया था और बीजेपी इसी भूकंप के बाद प्रशासन की कथित ढिलाई को झेल रही थी..राज्य में केशुभाई पटेल के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार मुश्किल समय का सामना कर रही थी. सरकार पर भ्रष्टाचार, सत्ता के दुरुपयोग और खराब प्रशासन के आरोप थे.
पद संभालने के तुरंत बाद, टेक सेवी मोदी ने नौकरशाही से अपने तरीके से इंगेज होना शुरू किया. पहले दिन कम से कम 10 कलेक्टरों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की. नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह का वेब टेलीकास्ट भी हुआ था...
जनवरी, 2001 में गुजरात में आए विनाशकारी भूकंप के बाद राज्य के आर्थिक हालात खराब हो चुके थे और तब वहां सरकार बीजेपी की ही थी. केशुभाई पटेल सीएम थे. राहत कार्यों में प्रशासन की ढिलाई ने जनता को सरकार के खिलाफ ला दिया था.
आखिरकार आलाकमान ने केशुभाई से इस्तीफा लिया और कमान नरेंद्र मोदी को सौंप दी. नरेंद्र मोदी के लिए सीएम बनना भी कांटो भरा ताज था. पार्टी के दिग्गज नेता केशुभाई पटेल (Keshubhai Patel) और सुरेशभाई उनके खिलाफ थे. शपथविधि कार्यक्रम में मोदी ने यह कहते हुए हालात को संभालने की कोशिश की, कि..‘मैं वह खुशनसीब अर्जुन हूं कि मुझे दो-दो कृष्ण (केशुभाई और सुरेशभाई) का साथ मिला है’... फिर भी बात इतने से नहीं बनने वाली थी... ये दोनों नेता और इनके समर्थक खुलकर मोदी के खिलाफ मैदान में थे.
4 अक्टूबर 2001 वह दिन था जब नरेंद्र मोदी को गुजरात के राज्यपाल ने विधायक दल के नेता के रूप में सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया था. 3 दिन बाद 7 अक्टूबर 2001 को नरेंद्र मोदी ने 51 साल की उम्र में पहली बार गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी. मोदी की कार्यशैली का ही परिणाम था कि 2002 के विधानसभा चुनावों में 127 सीटों पर जीत मिली और इस बार शपथ ग्रहण समारोह स्टेडियम में आयोजित किया. इसके बाद नरेंद्र मोदी ने पटलकर नहीं देखा.
मोदी 12 साल 227 दिन तक प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे थे. बात करें उनके प्रधानमंत्री पीरियड की, तो मोदी देश में सबसे लंबे वक्त पीएम रहने वाले चौथे नेता हैं. जवाहर लाल नेहरू 16 साल 208 दिन, इंदिरा गांधी 15 साल 350, मनमोहन सिंह 10 साल 4 दिन तक पीएम रहे थे.
अगर बात गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्रियों की करें तो मोदी इस रेस में सबसे आगे हैं. मोदी से पहले जिस गैर कांग्रेसी नेता का सबसे लंबा पीएम काल रहा वह अटल बिहारी वाजपेयी थे. वह 6 साल 80 दिनों तक पीएम रहे थे. अटल के बाद जिस गैर कांग्रेसी नेता ने सबसे ज्यादा वक्त तक शासन किया वह मोरारजी देसाई थे. वह 186 दिन तक पीएम रहे.
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जब नरेंद्र मोदी पहली बार गुजरात के सीएम बने थे तब प्रदेश में संगठन की कमान राजेंद्र सिंह राणा के पास थी. मोदी ने सरकार और संगठन के बीच समन्वय बनाकर बीजेपी को मजबूत किया था. राजेन्द्र सिंह राणा का अध्यक्षीय कार्यकाल भी लंबा रहा. 2005 तक वे इस पद पर रहे. 2001 में मोदी को सीएम चुनना बीजेपी के लिए मील का पत्थर साबित हुआ. मोदी आडवाणी (Lal Krishna Advani) की पसंद थे. मोदी को तब दूसरे कई नेताओं को साइडलाइन करके चुना गया था. वाजूभाई वाला, कांशीराम राणा, राजेंद्र सिंह राणा को पीछे छोड़कर मोदी इस पद पर पहुंचे थे...