Mohan Bhagwat Speech : 1947 में भारत पाकिस्तान के बंटवारे के लिए जनसंख्या का कथित धार्मिक असंतुलन ज़िम्मेदार है. भारत में 'धार्मिक आबादी के संतुलन' पर ज़ोर देते हुए RSS प्रमुख मोहन भागवत ने यह बात कही है. भागवत ने कहा कि धर्म आधारित जनसंख्या के 'असंतुलन' को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता. क्योंकि जनसंख्या में 'असंतुलन' से भौगोलिक सीमा में बदलाव होता है. ईस्ट तिमोर, दक्षिण सूडान और कोसोवो का उदाहरण देते हुए भागवत ने कहा कि अगर जनसंख्या में असंतुलन नहीं होता तो यह देश नहीं बने होते. विजयादशमी के मौके पर नागपुर के रेशमीबाग में संघ कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए RSS प्रमुख मोहन भागवत ने सामाजिक समरसता से लेकर महिलाओं के सशक्तीकरण, जनसंख्या नीति, रोज़गार बढ़ाने और दलितों के साथ भेदभाव बंद करने जैसे तमाम मुद्दे उठाए.
इसके अलावा रोजगार को लेकर भागवत ने जो कहा अब उसको लेकर भी वह विपक्ष के निशाने पर आ गए हैं. दरअसल भागवत ने अपने संबोधन के दौरान कहा, 'भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश में आर्थिक तथा विकास नीति रोजगार उन्मुख हो यह अपेक्षा स्वाभाविक ही कही जाएगी, लेकिन रोजगार यानी केवल नौकरी नहीं यह समझदारी समाज में भी बढ़ानी पड़ेगी. कोई काम प्रतिष्ठा में छोटा या हल्का नहीं है, परिश्रम, पूंजी तथा बौद्धिक श्रम सभी का महत्व समान है. उद्यमिता की ओर जाने वाली प्रवृत्तियों को प्रोत्साहन देना होगा. स्टार्टअप इसमें अहम भूमिका निभा रहा है. इसे और आगे बढ़ाने की जरूरत है. अगर ऐसे ही सब लोग सरकारी नौकरी के पीछे दौड़ेंगे तो नौकरी कितनी दे सकते हैं? किसी भी समाज में सरकारी और प्राइवेट मिलाकर ज्यादा से ज्यादा 10,20,30 प्रतिशत नौकरी होती है. बाकी सब को अपना काम करना पड़ता है.'
याद कीजिए मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष और सांसद अमित शाह ने राज्यसभा में अपने पहले भाषण के दौरान कहा था कि बेरोजगारी से अच्छा है कि युवा मेहनत कर पकौड़े बेचें. इससे पहले एक चैनल के इंटरव्यू में प्रधानमंत्री मोदी भी पकौड़े बेचने को रोजगार बता चुके हैं. तो क्या अब बेरोजगारी से निपटने के लिए सरकार के पास यही मॉडल बचा है? धार्मिक आधार पर 'जनसंख्या के असंतुलन' का सच क्या है? आज इन्हीं तमाम मुद्दों पर होगी बात आपके अपने कार्यक्रम मसला क्या है में?
सबसे पहले बात धार्मिक असंतुलन की. RSS प्रमुख भागवत ने कहा कि देश में एक समग्र जनसंख्या नीति होनी चाहिए. जो सब पर समान रूप से लागू हो. उन्होंने कहा जब-जब किसी देश में जनसांख्यिकी असंतुलन होता है तब-तब उस देश की भौगोलिक सीमाओं में भी परिवर्तन आता है. एक भूभाग में जनसंख्या में संतुलन बिगड़ने का परिणाम है कि इंडोनेशिया से ईस्ट तिमोर, सुडान से दक्षिण सुडान व सर्बिया से कोसोवा नाम से नये देश बन गये. भागवत ने बीआर आंबेडकर और महर्षि अरविंदो के विचारों का हवाला देते हुए आगे कहा- 'कथित अल्पसंख्यकों में यह डर पैदा किया जा रहा है कि उन्हें हमसे या संगठित हिंदुओं से ख़तरा है.'
मोहन भागवत ने उदयपुर की घटना का जिक्र करते हुए कहा, "अभी पिछले दिनों उदयपुर में एक अत्यंत ही जघन्य एवं दिल दहला देने वाली घटना घटी. सारा समाज स्तब्ध रह गया. अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों ने भी इसका विरोध किया. लेकिन ये सिर्फ़ अपवाद बन कर ना रह जाए, बल्कि अधिकांश मुस्लिम समाज का ये स्वभाव बनना चाहिए. ''
निश्चय ही 28 जून को राजस्थान के उदयपुर में कन्हैयालाल तेली नाम के दर्जी की जिस तरह नृशंस हत्या की गई, उसकी कठोर शब्दों में ना केवल निंदा होनी चाहिए बल्कि सख़्त से सख़्त क़ानूनी कार्रवाई भी होनी चाहिए. ताकि भारत को तालिबान बनने से रोका जा सके. नूपुर शर्मा की पैगंबर मोहम्मद को लेकर की गई विवादास्पद टिप्पणी के समर्थन की वजह से कोई शख़्स किसी की हत्या कैसे कर सकता है? लेकिन क्या भागवत साहब को बजरंग दल के उन कार्यकर्ताओं के लिए चंद शब्द नहीं कहने चाहिए थे, जिन्होंने मध्यप्रदेश, गुजरात जैसे कई राज्यों में गरबा पंडालो के बाहर मुसलमानों की पिटाई की. एक बार उन विजुअल्स को देखिए और तय कीजिए कि क्या यह तालिबानी सभ्यता नहीं है?
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अब एक नज़र, भारत में धर्म आधारित जनसंख्या पर डालते हैं. 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत की कुल आबादी एक अरब 20 करोड़ है. इनमें हिंदुओं की कुल आबादी क़रीब 80% है. जबकि मुसलमानों की 14.2 %. ईसाई, सिख, बौद्ध और जैन की आबादी लगभग 20 फीसदी. प्यू रिसर्च सेंटर के आंकड़ों के मुताबिक 30 हज़ार भारतीय, ख़ुद को नास्तिक मानते हैं, जबकि 80 लाख़ लोग हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध और जैन नहीं हैं.
जानकार बताते हैं कि जिस तरह से भारत की जनसंख्या बढ़ रही है, उस हिसाब से 2030 में भारत, चीन को पछाड़ कर सबसे बड़ी आबादी वाला देश बन जाएगा.
मोहन भागवत ने कहा है कि 70 करोड़ से ज़्यादा युवा हैं हमारे देश में. चीन को जब लगा कि जनसंख्या बोझ बन रही है तो उसने रोक लगा दी. हमारे समाज को भी जागरूक होना पड़ेगा. नौकरी-चाकरी में भी अकेली सरकार और प्रशासन कितना रोज़गार बढ़ा सकती है?
वहीं रोज़गार के मुद्दे पर उन्होंने कहा, ''हमारे देश में रोज़गार का मतलब नौकरी होता है और नौकरी के पीछे ही भागेंगे, वह भी सरकारी. अगर ऐसे सब लोग दौड़ेंगे तो नौकरी कितनी दे सकते हैं? किसी भी समाज में सरकारी और प्राइवेट मिलाकर ज़्यादा से ज़्यादा 10, 20, 30 प्रतिशत नौकरी होती है. बाक़ी सबको अपना काम करना पड़ता है. इसलिए उद्यमिता की प्रवृति बढ़नी चाहिए. देश में स्टार्ट-अप बढ़ रहा है और इसे सरकार भी मदद दे रही है.''
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राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद ने ट्वीट कर मोहन भागवत के इस बयान पर तंज कसा है. उन्होंने लिखा- 'RSS की ठग विद्या से प्रशिक्षित एवं संघ की महाझूठी, महाकपटी पाठशाला से निकले जुमलेबाज विद्यार्थी ही सालाना 2 करोड़ नौकरी प्रतिवर्ष देने का वादा कर वोट बटोरते है? जब जब RSS-BJP अपनी ही बेफिजूल की बातों में फंसती है तो नफ़रत फैलाने वाले सज्जन बिन मांगा ज्ञान बांटने चले आते हैं.'
तो क्या रोज़गार के मुद्दे पर 2024 आम चुनाव में मोदी सरकार को घेरा ना जा सके, RSS उसी रणनीति के तहत परिपाटी तैयार कर रहा है. क्या एक बार फिर से रोज़गार के नाम पर लोगों को पकौड़ा तलने या इसी तरह की कुछ अन्य विकल्प सुझाए जाएंगे? जनसंख्या का कथित धार्मिक असंतुलन जैसे मुद्दे क्या सिर्फ लोगों को भटकाने के लिए हैं? देश में रोज़गार को लेकर मौजूदा स्थिति क्या है? इन्हीं तमाम मुद्दों पर होगी बात...
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