Chhath Puja 2022 : लोक आस्था का महापर्व छठ को लेकर इन दिनों सभी राजनीतिक दल संवेदनशील होने का ड्रामा करते नज़र आ जाएंगे. लेकिन असल सच्चाई यही है. आपके स्क्रीन पर नजर आ रही यह तस्वीरें स्वर्ग लोक की नहीं हैं और ना ही बादलों के बीच की. सोशल साइट्स पर ज्ञानेंद्र शुक्ल ने कमेंट करते हुए लिखा है कि यह तस्वीर शायद त्रेता-द्वापर-सतयुग से भी करोड़ों वर्ष पहले की हैं, जब बादल धरती पर हुआ करते थे और छठ पूजा के लिए मनुष्य यमुना में कुछ यूं उतरता था!
बताते हैं घनघोर तप-प्रचंड परिश्रम-खूंखार ईमानदारी-भीषण निष्ठा से कलयुग में ऐसा ही दृश्य निर्मित करने में एक ‘परतापी’ ‘चकरवर्ती’ सम्राट को सफलता वरण हो चुकी है.
आख़िर क्या वजह है कि 3000 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च होने के बावजूद यमुना साफ नहीं हो पाई है. यूपी-बिहार के लोगों की मजबूरी देखिए, सभी लोग एक साथ अपने गांव-घर जा नहीं सकते. रेल में टिकट अवेलेबल नहीं है. जो लोग जा रहे हैं वह कालापानी की सज़ा भुगतते जा रहे हैं. बसों की हालत भी कुछ ऐसी ही है. बस के अंदर से लेकर ऊपर तक लोग ठूंसे हुए हैं.
आपदा में अवसर ढूंढ़ने वाले बस मालिकों और एयरलाइंस कंपनियों ने बस किराया भी दोगुना कर दिया है. और तो और छठ पूजा के दौरान पटना, गया, दरभंगा और पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस जाने वाली फ़्लाइट का किराया भी तीनगुना हो गया है ऊपर से ऐसे हालात... वहीं राजनीतिक दल छठ पूजा के बहाने घाट सफाई को लेकर फंड-फंड खेल खेल रहे हैं.
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यूपी-बिहार के लोगों के लिए छठ पूजा का महत्व इन तस्वीरों से तो समझ ही गए होंगे आप. ट्रेन की कठिन यात्रा, बस का दोगुना किराया और यमुना की शक्ल में गंदा नाला, यह सब मिलकर भी यूपी-बिहार के लोगों को उनकी आस्था से अलग नहीं कर सकते. लेकिन इन लाचार लोगों के नाम पर सालों भर राजनीति करने वाले लोग क्या सभी मोर्चे पर विफल नहीं है.
किसी भी राज्य का चुनाव हो, कोई भी राज्य हो, सभी राजनीतिक दलों में कुछ नेताओं की भर्ती ही इस नाम पर होती है कि फलां पुर्वांचल इलाके से है और वहां के लोगों का प्रतिनिधित्व करता है. जिन बिहारी और पूर्वांचलियों के नाम पर नेता फकीर से अमीर हो गए, क्या वजह है कि इन राज्यों के लोगों को अब तक वह सम्मान भी नहीं मिल पा रहा है? सुविधा तो छोड़ ही दीजिए.
जबकि दिवाली और छठ पूजा पर सबसे अधिक लूटा इन्हीं लोगों को जाता है. रेल टिकट लेने के बावजूद बिहारी और पूर्वांचलियों को कुव्यवस्था का शिकार क्यों होना पड़ता है. इन बिहारी और पूर्वांचलियों को आख़िर दोगुना किराया देकर बसों में सामान की तरह ऊपर से नीचे तक लदकर क्यों जाना पड़ता है. और कुछ नहीं मिलने पर जब ये बिहारी और पूर्वांचली फ़्लाइट की तरफ़ रुख़ करते हैं तो 5000 की जगह एयरलाइंस कंपनियां 18000 वसूलने लग जाती है.
आख़िर क्या वजह है कि छठ से ठीक पहले 1100 घाट बनाने के लिए 25 करोड़ रुपये का फंड जारी करने के नाम पर सुर्खियां बटोरने वाली केजरीवाल सरकार और छठ पूजा के लिए घाटों पर स्ट्रीट लाइटिंग बढ़ाने के लिए प्रति वार्ड 40,000 रुपये आवंटित करने वाली दिल्ली नगर निगम, ऐन मौके पर गायब हो जाती है. और अंत में ख़बर आती है कि NGT ने यमुना घाट में छठ पूजा करने पर रोक लगा दी है. आज इन्हीं तमाम मुद्दों पर होगी बात, जिसका नाम है- मसला क्या है?
आज यानी 28 अक्टूबर से चार दिवसीय छठ पूजा की शुरुआत हो गई है. 30 और 31 अक्टूबर को व्रत रखने वाली महिलाएं और पुरुष कमर तक पानी में खड़े होकर डूबते और उगते सूर्य को ‘अर्घ्य’ देंगे. पूरे देश में बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोग हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को यह त्योहार मनाते हैं. श्रद्धालुओं को छठ पूजा का इंतज़ार रहता है लेकिन राजनीति करने वाले लोगों को यानी कि नेताओं को इस महापर्व का बेसब्री से इंतज़ार रहता है.
पिछले शुक्रवार को सीएम केजरीवाल ने आनन-फानन में एक ट्वीट किया और बताया कि यमुना के घाटों पर पहले की तरह अब छठ पूजा मनाई जा सकेगी. जबकि एलजी से परमिशन ही नहीं ली गई थी. इस हड़बड़ी की कुछ राजनीतिक मजबूरी रही होगी.
बाद में दिल्ली सरकार के राजस्व मंत्री कैलाश गहलोत ने छठ पूजा के लिए एक प्रस्ताव तैयार किया और उसकी मंजूरी के लिए सीएम की अनुशंसा के साथ एलजी के पास भेजा. तब जाकर 27 अक्टूबर को दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने यमुना किनारे बने कुछ चुनिंदा घाटों पर छठ पूजा के आयोजन की अनुमति दी.
एलजी ने दिल्ली सरकार को यह भी निर्देश दिए हैं कि वह यमुना किनारे सभी छठ पूजा घाटों पर साफ-सफाई, पीने के पानी व अन्य जरूरी सुविधाओं का इंतजाम करे ताकि श्रद्धालुओं को परेशानी का सामना न करना पड़े.
NGT ने पहले ही निर्देश जारी करते हुए यमुना के कुछ उन्हीं चुनिंदा घाटों पर पूजा करने की इजाज़त दी है जो पहले से निर्धारित थी. ऐसे में एलजी ने सीएम केजरीवाल को जल्दबाजी से बचने की सलाह देते हुए कहा कि बिना सोचे-समझे ट्वीट ना करें, प्रशासनिक प्रक्रियाओं के पूरा होने तक धैर्य रखें. क्योंकि उससे लोगों के बीच भ्रम पैदा होता है.
सोचिए जितनी जल्दबाज़ी सीएम केजरीवाल ने ट्वीट कर यह बताने में दिखाई कि यमुना के घाटों पर अब पहले की तरह ही छठ पूजा की जा सकेगी. काश कि तब यमुना की साफ-सफ़ाई में भी दिखाई होती. तो आज कैमिकल से ज़हरीले झाग को हटाने की नौबत नहीं आती.
आपदा में अवसर तलाशने वाले नेताओं की भी कमी नहीं है. बीजेपी सांसद प्रवेश वर्मा (BJP MP Parvesh Verma Viral Video) घाट पर पहुंच गए और कैमिकल का छिड़काव कर रहे अधिकारी को खरी-खोटी सुनाने लगे. एक बार पहले इस वीडियो को देख लीजिए...
हालांकि बीजेपी सांसद के इस रवैये को देख वहां के स्थानीय लोगों ने ही उन्हें घेर लिया. उन्होंने बीजेपी सांसद प्रवेश वर्मा से सवाल पूछ लिया कि आप इस घाट पर कितने दिन आए हो साफ-सफाई के लिए क्या किया? फिर क्या था अब तक अधिकारियों को ऐसी-तैसी करते नजर आ रहे सांसद महोदय ने अपनी उपस्थिति बतलाने के लिए कार्यकर्ताओं को आगे कर दिए. एक बार पहले यह वीडियो देख लीजिए.
जिस रासायन से फोम साफ किया जा रहा है वह जहरीला है कि नहीं और US EPA यानी कि U.S. Environmental Protection Agency ने इसके इस्तेमाल की हरी झंडी दी है कि नहीं इसको लेकर ना ही अधिकारी सही बता रहे हैं, ना ही सांसद महोदय को पूरी जानकारी है और जनता तो ठहरी ही बेचारी. लेकिन जब एक नागरिक ने सवाल पूछा तो जवाब ढूंढ़ा गया.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कैमिकल सिलिकॉन डिफोमर जो कि एक कारपेट डिफोमर है. यह USA में बनी है लेकिन US EPA ने इसका इस्तेमाल मानव स्कीन पर नहीं किया है और ना ही इसे जल श्रोत के लिए सही बताया है. दिल्ली जल बोर्ड को इस बारे में कोई जानकारी नहीं है. बाद में आम आदमी पार्टी ने भी फोम हटाने के लिए कैमिकल के इस्तेमाल को वैज्ञानिक रूप से सिद्ध मानने से इनकार कर दिया.
यही वजह है कि सोशल मीडिया पर सीएम केजरीवाल को लोग अब ट्रोल कर रहे हैं. Nocturnal Soul नाम के एक ट्विटर यूजर ने एक साबुन कंपनी की विज्ञापन वाली फोटो डालते हुए लिखा है- शूटिंग का नया लोकेशन. दिल्ली की यमुना नदी.
PARIHAR Rajpoot नाम के एक अन्य यूजर ने लिखा- कभी कभी किसी को "एक मौका" देना ही जिंदगी बर्बाद कर देता है.
दीक्षा नेगी नाम की एक यूजर लिखती हैं- दिल्ली सरकार कई सालों से पांच वर्षीय यमुना सफाई का गाना गा रही है. लेकिन हर बार ऐसा करने में विफल रही है. 2015 में केजरीवाल सरकार ने वादा किया था कि पांच सालों में यमुना साफ हो जाएगी. अब 2022 है और हालात देख लीजिए.
वहीं Dr Teena kapoor Sharma नाम की एक यूजर ने सीएम अरविंद केजरीवाल के वह पांच बयानों वाला वीडियो डाला है. एक बार वह भी सुन लीजिए.
यमुना का साफ होना सिर्फ बिहारियों और पूर्वांचलियों के लिए ही ज़रूरी नहीं है जिससे कि वह छठ पूजा मना सके. बल्कि दिल्ली वासियों के लिए भी बेहद ज़रूरी है. दरअसल यमुना नदी के दिल्ली खंड वजीराबाद बैराज से लेकर ओखला बैराज तक लगभग 22 किमी का यह हिस्सा राजधानी के लिए कच्चे पानी का मुख्य स्रोत है.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक मोटे तौर पर दिल्ली की पानी आपूर्ति का 70% हिस्सा यहीं से आता है. जबकि 76 प्रतिशत नदियों के प्रदूषण के लिए भी यही खंड जिम्मेदार है.
यमुना सफाई के लिए केंद्र सरकार के मिनिस्ट्री ऑफ एनवायर्नमेंट और फॉरेस्ट एंड क्लाइमेट चेंज ने जापान इंटरनेशनल कोऑपरेशन एजेंसी के साथ मिलकर फेज वाइज यमुना एक्शन प्लान लागू किया था.
पहला फेज 1993 से 2003 तक का था. इसके तहत 682 करोड़ रुपए खर्च कर यमुना से कई टन कचरा साफ किया गया.
दूसरा फेज 2003 में शुरू हुआ. इस फेज में 624 करोड़ रुपए की लागत से सीवेज नेटवर्क में सुधार और सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के लिए योजना बनाई गई.
जबकि तीसरा फेज 2012 में शुरू हुआ. जिसमें 1656 करोड़ रुपए खर्च कर यमुना एक्शन प्लान तैयार करने की योजना बनी.
छठ पूजा नजदीक आते देख दिल्ली सरकार ने प्रदेश में बड़े स्तर पर त्योहार मनाने के लिए सभी सुविधाओं के साथ 1100 घाट बनाने की बात की. इसके लिए 25 करोड़ रुपये खर्च किए जाने थे.
इतना ही नहीं बीजेपी शासित दिल्ली नगर निगम की तरफ से भी घाटों पर स्ट्रीट लाइटिंग बढ़ाने के लिए प्रति वार्ड 40,000 रुपये आवंटित किए थे. ख़बर आई, टीवी चैनलों की हेडलाइन बनी लेकिन हालात आज भी जस के तस बने हुए हैं.
इसलिए फिर कहता हूं. नागरिक बने रहिए... क्योंकि जब एक नागरिक सवाल पूछता है तो सांसदों के भी पसीने निकल जाते हैं. नहीं तो फिर पार्टी-पार्टी खेलिए. आपके हालात सुधरे ना सुधरे नेताओं के अच्छे दिन तो चलते ही रहेंगे. आज के लिए बस इतना ही. अगले कार्यक्रम में फिर होगी किसी नए मसले के साथ.. नमस्कार...