सुई से महीन सिलाई करने से लेकर कंधों पर 170 किलो का भारी वजन उठाने तक, 20 साल के अचिंता शिउली ने लंबा सफर तय किया है. बर्मिंघम 2022 में भारत के तीसरे स्वर्ण पदक विजेता की कहानी दर्द, त्याग और दृढ़ संकल्प से भरी है. कभी कम वजन वाले और कुपोषित रहे अचिंता ने इंग्लैंड में 313 किग्रा का रिकॉर्ड कैसे बनाया, इसकी कहानी बहुत लंबी है.
11 साल की छोटी उम्र में अपने पिता को खोने के बाद, कोलकाता से लगभग एक घंटे की दूरी पर स्थित देउलपुर के एक मामूली घर में रहने वाले स्टार ने अपनी मां का हाथ बटाने के लिए दर्जी का काम शुरू कर दिया. टेलीविज़न पर बॉडीबिल्डिंग शो देखकर प्रेरित हुए शुली भाइयों, आलोक और अचिंता ने वेटलिफ्टिंग की दुनिया में कदम रखने का फैसला किया.
आर्थिक तंगी के बावजूद, उनकी मां, पूर्णिमा ने कभी भी अपने बेटे के जूनून को कम नहीं होने दिया और इस तरह, सिलाई छोड़ अचिंता ने वेटलिफ्टिंग में अपनी यात्रा शुरू की. अचिंता के सपने को साकार करने में मदद करने के लिए उनके भाई ने अपने सपने का त्याग कर दिया.अचिंता ने अपना सोना अपने परिवार के बलिदान और अपने भाई के त्याग को समर्पित किया.
अचिंता ने उसी वक़्त अपने परिवार को गरीबी की बेड़ियों से बाहर निकालने के लिए ठान लिया था. अचिंता ने सभी का ध्यान अपनी ओर पहली बार 2015 में खींचा, जब उन्होंने कॉमनवेल्थ युवा चैम्पियनशिप में रजत पदक जीता. तब से यह युवा एथलीट नहीं रुका. उन्होंने जूनियर एशियाई चैंपियनशिप, जूनियर विश्व चैंपियनशिप और राष्ट्रमंडल चैंपियनशिप जैसे कई इवेंट में पदक अपने नाम किये हैं.
अचिंता की यह उप्लब्धि अभी बस एक ट्रेलर है. अगर उनका यह प्रदर्शन जारी रहा तो ओलंपिक के गोल्ड तक का सफर ज्यादा दूर नहीं है.