कौन कहता है आसमां में सूराख नहीं हो सकता,
एक पत्थर तो तबीयत से उछालों यारों...
उत्तर प्रदेश के राम बाबू ने दुष्यंत कुमार की इन पंक्तियों को सच कर दिखाया है. कभी मनरेगा के लिए मजदूर का काम करने वाले राम बाबू ने मेहनत और लगन की एक मिसाल कायम की है. गरीबी में अपना पूरा जीवन गुजारने वाले राम बाबू ने बता दिया है कि इंसान अगर चाहे तो अपनी तकदीर खुद लिख सकता है. गुजरात के गांधीनगर में राष्ट्रीय खेलों में एथलेटिक्स प्रतियोगिता के समापन दिन पुरुषों की 35 किमी रेस वॉक स्पर्धा में राम बाबू ने नेशनल रिकॉर्ड तोड़ दिया.
शारीरिक शिक्षा से ग्रेजुएट बेरोजगार रामबाबू ने 2 घंटे 36 मिनट 34 सेकंड में इस प्रतियोगिता को जीत लिया. इससे पहले यह रिकॉर्ड हरियाणा के जुनैद खान के नाम था, जो मंगलवार को 2 घंटे 40 मिनट 51 सेकंड के समय के साथ दूसरे स्थान पर रहे.
PR Sreejesh और Savita Punia ने फिर से गोलकीपर ऑफ द ईयर बन बढ़ाया देश का मान, FIH ने किया ऐलान
राम बाबू ने अपने संघर्ष के दिनों को याद करते हुए जानकारी दी कि कोविड लॉकडाउन के दौरान उन्होंने वाराणसी में एक वेटर के तौर पर भी काम किया है और रोजाना उन्हें काम के 200-300 रुपए मिलते थे.
उन्होंने कहा,"कोच मुझे व्हाट्सएप पर ट्रेनिंग भेजते थे. लॉकडाउन के दौरान मुझे कैंपस के बाहर सड़क पर ट्रेनिंग करनी पड़ती थी. मेरे पास ट्रेनिंग के बाद जिम, तैराकी या मालिश की सुविधा नहीं थी.”
बता दें कि इससे पहले रामबाबू नेशनल ओपन चैम्पियनशिप के पहले सीजन में चैम्पियन रह चुके हैं. इंडियन आर्मी में जाने की इच्छा रखने वाले इस एथलीट की कहानी हमें बताती है कि अगर हौसला बुलंद हो तो कोई बाधा आपको रोक नहीं सकती.