पश्चिम बंगाल की राजधानी कलकत्ता से दूर स्थित नदिया जिले के चकदा कस्बे में जन्मी एक लड़की एक दिन अपनी गेंद से भारतीय महिला क्रिकेट का भविष्य लिखेगी किसी को इस बात का अंदाजा नहीं था. महिला क्रिकेट में अबतक सबसे ज्यादा विकेट लेने वाली झूलन 24 सितंबर को अपना आखिरी अंतर्राष्ट्रीय एकदिवसीय मैच खेलेंगी. लेकिन झूलन के लिए चकदा से लेकर यहां तक का सफर आसान नहीं था.
झूलन ने 15 साल की उम्र में ही क्रिकेट खेलना शुरू कर दिया था लेकिन इसके लिए उन्हें और उनके परिवार को समाज से ताने सुनने पड़ते थे. उनका परिवार भी उनके क्रिकेट के प्रति जूनून के खिलाफ था. लेकिन कहते हैं न कि अगर दिल में जज्बा हो तो कुछ भी नामुमकिन नहीं है. झूलन प्रैक्टिस करने के लिए रोज घर से 80 किमी दूर जाती थीं. रोजाना ढ़ाई घंटे का सफर तय करने वाली झूलन का सपना आखिरकार सच हुआ और उन्होंने 2002 में इंग्लैंड के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में डेब्यू किया.
इसके बाद झूलन ने पीछे मुड़कर नहीं देखा. 2008 में 5'11'' की कद वाली झूलन के हाथों में भारतीय महिला क्रिकेट टीम की कमान सौंपी गई. एक कप्तान की भूमिका में भी झूलन सफल रही और अपनी अगुवाई में टीम को ऊँचाइयों तक ले गई.
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अपने 2 दशक के करियर में इस 39 वर्षीय गेंदबाज ने 12 टेस्ट, 203 एकदिवसीय और 68 T20I मैच खेले हैं और कुल 353 विकेट लिए हैं. 2015 में, वह चार सीनियर खिलाड़ियों में से एक थीं, जिन्हें पहली बार बीसीसीआई द्वारा केंद्रीय अनुबंध का उच्चतम ग्रेड दिया गया था.
झूलन जैसी खिलाड़ी न अब तक हुई है और न आगे कभी होगी. उनके हौसले और उनकी मेहनत ने कई युवा खिलाड़ियों को प्रेरणा दी है. भले ही झूलन ने अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट से विदा ले लिया हो लेकिन महिला क्रिकेट के उत्थान में उनका योगदान शायद ही कोई भुला पाएगा.