"कौन कहता है आसमाँ में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों" इस कहावत के साबित कर दिखाया है दीक्षा डागर (Deeksha Dagar) ने. उम्र महज 22 साल, सुनने में अक्षम, लेकिन अपनी प्रतिभा की गूंज से न सिर्फ भारत का मान बढ़ा दिया, बल्कि दुनिया में पताका लहरा दिया. दीक्षा ने अपने दृढ़ संकल्प कौशल का प्रदर्शन करते हुए महिला यूरोपियन टूर (Women's European Tour) (एलईटी) पर गोल्फ में अपनी दूसरी जीत हासिल कर ली है.
गोल्फ के लेडीज़ चेक ओपन में अपनी जीत के साथ दीक्षा भारत की प्रतिष्ठित महिला गोल्फरों की विशिष्ट श्रेणी में शामिल हो गईं हैं. अदिति अशोक के नक्शे कदम पर चलते हुए दो या अधिक एलईटी चैंपियनशिप हासिल करने वाली वह दूसरी भारतीय महिला बन गईं हैं.
दीक्षा की जीत के पीछे उसकी मेहनत और संघर्ष बहुत कम लोगों को पता है. उसकी मेहनत और अपने लक्ष्य के प्रति समर्पण का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि 2019 में उन्होंने केप टाउन में दक्षिण अफ़्रीकी महिला ओपन में अपना पहला खिताब जीत लिया था. यही नहीं जब वह महज 18 साल की थीं, तभी एलईटी पर जीत हासिल कर लिया था. ऐसा करने वाली दीक्षा सबसे कम उम्र की भारतीय महिला बन गईं थीं. बहुत कम लोग जानते हैं कि दीक्षा और उसका भाई योगेश डागर दोनों ही सुनने की गंभीर समस्या से पीड़ित हैं. यह एक ऐसी स्थिति है जिसे सुनने में बहुत कठिनाई होती है. इन चुनौतियों से घबराए बिना दीक्षा ने अपनी स्थिति को स्वीकार किया. बाधाओं को पार किया और महिला गोल्फ की प्रतिस्पर्धी दुनिया में सफलता के लिए खुद को आगे बढ़ाया.
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गोल्फ़िंग यात्रा में उनका मार्गदर्शन करने वाले उनके पिता कर्नल नरिंदर डागर हैं, जो स्वयं एक पूर्व स्क्रैच गोल्फर हैं. उन्होंने अपनी बेटी की प्रतिभा को पहचाना और शुरू से ही उसका पूरा साथ दिया. दीक्षा के माता-पिता ने उसकी सुनने की अक्षमता को कभी भी उसके सपनों में बाधा नहीं बनने दिया और एक ऐसा माहौल तैयार किया, जिससे गोल्फ और अन्य खेलों के प्रति उसके जुनून को बढ़ावा मिला. आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए खेल के क्षेत्र में अपने पिता के विश्वास से प्रेरित होकर दीक्षा ने गोल्फ को केंद्र में रखते हुए अपनी एथलेटिक गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित किया. उनके परिवार ने उनकी अपार प्रतिभा को पहचाना. क्योंकि उन्होंने न केवल गोल्फ में बल्कि टेनिस, तैराकी और एथलेटिक्स में भी उत्कृष्ट प्रदर्शन किया था.
दीक्षा की उपलब्धियाँ यूरोपियन टूर से भी आगे तक है. उन्होंने डेफलिंपिक में दो बार जीत हासिल की है. 2017 में रजत पदक और 2021 में स्वर्ण पदक हासिल किया है. उनकी उल्लेखनीय यात्रा ने उन्हें टोक्यो ओलंपिक में भाग लेने के लिए प्रेरित किया, जिससे वह डेफलिंपिक और मुख्य ओलंपिक दोनों में प्रतिस्पर्धा करने वाली पहली गोल्फर बन गईं. गोल्फ के प्रति उनकी अटूट भावना और दृढ़ता ने उन्हें दुनिया भर के महत्वाकांक्षी एथलीटों के लिए एक प्रेरणा के रूप में स्थापित किया है.
दीक्षा डागर की कहानी प्रतिकूलताओं पर काबू पाने में दृढ़ता और दृढ़ संकल्प की शक्ति का एक प्रमाण है. अपनी उल्लेखनीय उपलब्धियों के माध्यम से उन्होंने बाधाओं को तोड़ दिया है और साबित कर दिया है कि अटूट जुनून, प्रतिभा और निरंतर भावना के साथ कोई भी किसी भी चुनौती पर विजय प्राप्त कर सकता है.