आईपीएल में बीसीसीआई के नियमों के हिसाब से हर फ्रेंचाइजी के पास खिलाड़ियों को खरीदने के लिए पर्स में कुल 90 करोड़ की अधिकतम रकम होती है. लेकिन, क्या आपने कभी सोचा है कि यह रकम अगर खत्म हो जाए तो टीम कैसे प्लेयर को खरीद सकती है?
इस तरह की स्थिति वैसे आईपीएल में अबतक आई नहीं है, पर इससे निपटने के लिए साइलेंट टाई ब्रेकर का नियम बनाया गया है. यह नियम उस समय लागू होता है जब दो टीमें एक ही खिलाड़ी के लिए बोली लगा रही होती हैं और दोनों फ्रेंचाइजी की आखिरी बोली एक हो. लेकिन, उनमें से एक टीम का पर्स खाली हो जाए.
इस केस में दोनों ही फ्रेंचाइजी को उस प्लेयर के लिए बोली लिखकर देनी होती है और जिसकी बोली ज्यादा होती है खिलाड़ी उस टीम का हो जाता है.
अगर साइलेंट बोली के दौरान भी दोनों टीमों की बोली एक ही रहती है तो इस प्रोसेस को फिर से किया जाता है, उस समय तक जब तक की एक टीम की बोली ज्यादा ना हो जाए. लिखित बोली की रकम खिलाड़ी को नहीं, बल्कि बीसीसीआई के खाते में जाती है.