एक 17 साल की बच्ची ने अपने पिता के सपने को अपनी जिद बना ली और दो महीने के अंदर दो बार वर्ल्ड चैम्पियन बनकर बता दिया कि अनुभव कभी भी सफलता का पैमाना नहीं बन सकता. सतारा की इस छोटी सी बच्ची ने अपने मेंटर तक को मात दे दी. हम बात कर रहे हैं तीरंदाज अदिति स्वामी की. एडिटर जी ने इस युवा चैंपियन से उनके सफर के बारे में एक्सक्लूसिव बातचीत की.
अदिति ने बताया कि वो जीत कर बेहद खुश हैं कि तीरंदाजी को देश में पहचान मिल रही है. उनके मुताबिक वो शुरुआत में थोड़ी नर्वस थीं लेकिन ग्रुप इवेंट में मिले गोल्ड मेडल ने उनकी हिम्मत बढ़ाई और उनमें आत्मविश्वास जगाया.
अदिति ने एडिटर जी को बताया,'यह पहली बार था जब मैं विश्व चैम्पियनशिप में भाग ले रही थी. मैं थोड़ा घबराई हुई थी, इसलिए मैंने सोचा कि मुझे शांत होकर खेलना चाहिए. जब मैंने चैंपियनशिप जीती तो सभी ने मुझे बुलाया, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस बारे में ट्वीट किया, यह देखकर बहुत अच्छा लगा कि लोग तीरंदाजी का इतना समर्थन कर रहे हैं और तीरंदाजी भारत में भी जोर पकड़ रही है.
महाराष्ट्र के सतारा से 15 किलोमीटर दूर एक गांव में रहने वाली अदिति का जुनून कुछ ऐसा था कि उन्होंने अपने कमरे की दीवार पर अपने चार लक्ष्य लिख रखे थे जिनमें से दो वह पूरे कर चुकी हैं.
सभी बाधाओं को पार कर महज 17 साल की उम्र में बनी वर्ल्ड चैंपियन, जानें कौन है Aditi Swami
अदिति ने कहा,'लॉकडाउन के दौरान जब सब कुछ बंद था, मैं घर पर ही अभ्यास कर रही थी. मैंने पहले कभी भारत का प्रतिनिधित्व नहीं किया था, इसलिए मेरा पहला सपना तीरंदाजी में भारत का प्रतिनिधित्व करना था, तभी मेरे मन में आने वाले वर्षों में उन सभी प्रतियोगिताओं के साथ एक सपनों की लिस्ट बनाने का विचार आया, जिनमें मैं भाग लेना चाहती थी और मैंने बस उनका पालन किया. जब भी मेरा कोई बुरा दिन या पतन होता तो मैं अपने सपनों की दीवार के बारे में सोचती और फिर से प्रेरित हो जाती. मैंने यूथ वर्ल्ड चैम्पियनशिप और वर्ल्ड चैम्पियनशिप में पदक जीते. मैं इस साल एशियाई खेलों और एशियाई चैंपियनशिप में भारत के लिए स्वर्ण पदक जीतना चाहती हूं.'
अदिति की इस सफलता में सबसे बड़ा हाथ उनके पिता का रहा, जिन्होंने आर्थिक तंगी को कभी भी अदिति के रास्ते में रोड़ा नहीं बनने दिया. चाहे पैसे हो या सुविधाएं उन्होंने कभी भी अदिति को किसी चीज की कमी महसूस नहीं होने दी.
अदिति ने बताया,'हां सर, मैं एक मध्यम वर्गीय परिवार से हूं और तीरंदाजी एक महंगा खेल है. एक धनुष की कीमत लगभग ₹3 लाख है और मुझे अक्सर धनुष बदलना पड़ता है इसलिए हमने पहला धनुष कर्ज लेकर खरीदा, इसलिए मैंने सोचा कि अगर मेरे पिता मुझ पर इतने पैसे खर्च कर रहे हैं तो मुझे उनके लिए भी कुछ करना होगा, मुझे बनाना होगा उसे गर्व है. यहां तक कि जब प्रतियोगिताओं के दौरान समय क्षेत्र अलग-अलग होता था तब भी मेरे पिता खड़े रहते थे और सभी मैच देखते थे. मुझे अपने माता-पिता को गौरवान्वित करने में बहुत गर्व महसूस होता है और वे मेरा बहुत समर्थन करते हैं.'
इस छोटी सी उम्र में इतनी बड़ी सफलता ने देश के लोगों में ओलंपिक पदक की उम्मीद जगा दी है. लेकिन फिलहाल अदिति इस सपने को पूरा करने से महज एक मंजूरी दूर है.
अदिति ने इस बारे में कहा,'मुझे 2020 में नहीं पता था कि कंपाउंड तीरंदाजी 2028 में ओलंपिक खेल होगा, इसलिए मैंने उन प्रतियोगिताओं के साथ सपनों की दीवार बनाई जिन्हें मैं जीत सकती थी. 2028 में कंपाउंड तीरंदाजी को ओलंपिक आयोजन बनाने पर अगले महीने निर्णय होगा, जो होना भी चाहिए, इसलिए मैं इसे भी अपने सपनों की लिस्ट में जोड़ दूंगी.'