पहली बार खिताब जीतने की खुशी, देश का नाम रोशन करने का गौरव क्या होता है, वो इन चेहरों को देखकर समझा जा सकता है. जो 73 साल में नहीं हो सका है, वो इन खिलाड़ियों ने कर दिखाया और इस ऐतिहासिक जीत को कुछ ऐसे अंजाम दिया कि हर कोई इनके खेल का दीवाना हो गया.
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स्टेडियम में जीत का जश्न जमकर मना और ढोल-नगाड़ों के शोर ने इस ऐतिहासिक जीत में चार चांद लगाए. लक्ष्य सेन हो या सात्विक-चिराग की जोड़ी या फिर किदांबी श्रीकांत, फाइनल में सबने ऐसा प्रदर्शन करके दिखाया कि 14 दफा थॉमस कप का खिताब जीतने वाले इंडोनेशिया के खिलाड़ियों की एक नहीं चली.
लक्ष्य सेन ने एंथोनी सिनिसुका को कड़े मुकाबले में पीटकर जो दमदार आगाज किया उसको श्रीकांत ने जोनातन क्रिस्टी को पीटते हुए इतिहास में तब्दील कर दिया. इन दोनों के बीच असली लड़ाई सात्विक और चिराग शेट्टी की जोड़ी ने भी लड़ी.
टीम के प्रदर्शन से बेहद खुश दिखे चीफ बैडमिंटन कोच पुलेला गोपीचंद ने इस जीत को क्रिकेट में 1983 वर्ल्ड कप में मिली जीत से भी बड़ा बताया है. इसके साथ ही देश के हर कोने से भारतीय खिलाड़ियों को बधाई देने का तांता लग गया है. यकीनन यह जीत बहुत बड़ी और ऐतिहासिक है, क्योंकि इतिहास रोज और आसानी से नहीं रचे जाते हैं और इसके पीछे सालों की कड़ी मेहनत और ना जानें कितने त्याग और बलिदान की कहानियां होती हैं.