चले चलिए कि चलना ही दलील-ए-कामरानी है
जो थक कर बैठ जाते हैं, वो मंजिल पा नहीं सकते
हफीज बनारसी की ये पंक्तियां फिलहाल देश की नंबर 1 महिला बैडमिंटन खिलाड़ी पीवी सिंधु पर सटीक बैठती हैं. कभी बैडमिंटन जगत पर राज करने वाली सिंधु आज एक बुरे दौर से गुजर रही हैं. हाल ही में खेले चोट से वापस लौटी सिंधु इस 6 महीने से भी कम समय में अब तक कुल 11 टूर्नामेंट खेल चुकी है लेकिन एक को छोड़कर अभी तक किसी भी टूर्नामेंट में उन्हें कोई खास सफलता नहीं मिली है.
चोट के बाद वापसी करते हुए सिंधु ने साल की शुरुआत मलेशिया ओपन से की थी जिसमें वो पहले दौर में हार के साथ बाहर हो गई थी. कुछ ऐसा ही उनके साथ इसके बाद खेले गए इंडिया ओपन में हुआ. इसके बाद उन्होंने एशिया मिक्स्ड टीम चैम्पियनशिप में भी हाथ आजमाया जिसमें उन्होंने 4 मैचों में से 3 में जीत दर्ज की. मार्च में उन्होंने ऑल इंग्लैंड चैम्पियनशिप में अपनी दावेदारी पेश की लेकिन वहां भी वो दूसरे राउंड में ही चीन की झांग यी मन से मात खा गईं. इसके बाद खेले गए स्विस ओपन में भी वह दूसरे राउंड तक ही पहुंच पाई और रैंकिंग में खुद से काफी नीचे मौजूद इंडोनेशियाई खिलाड़ी के हाथों बाहर हो गईं.
हालांकि अप्रैल की शुरुआत में खेले गए स्पेन मास्टर्स इवेंट में वो फाइनल तक जरूर पहुंची लेकिन टूर्नामेंट के आखिरी मुकाबले में तुनजुंग के सामने वो बेहद कमजोर दिखीं और 21-8, 21-8 से हार गईं. इसी खिलाड़ी ने उन्हें मलेशिया मास्टर्स के सेमीफाइनल से भी बाहर का रास्ता दिखाया. इसके अलावा इस टूर्नामेंट से पहले सुदीरमान कप के लिए खेले गए मुकाबलों में भी वो अपने दोनों मैच हारी थी. उनकी बुरी किस्मत ने थाइलैंड ओपन और सिंगापुर ओपन में भी उनका साथ नहीं छोड़ा जहां वह पहले राउंड में ही बाहर हो गईं.
हाल ही में खेले गए इंडोनेशिया ओपन में भी सिंधु की नाकामी का सिलसिला बरकरार रहा जिसने उनके फैंस को चिंता में डाल दिया है. साल की शुरुआत 7वें रैंक से करने वाली सिंधु टॉप 10 से बाहर होकर 14वें रैंक पर पहुंच गई है जिसने पेरिस ओलंपिक 2024 में भारत की उम्मीदों पर सवाल खड़ा कर दिया है. आखिर किन कारणों से सिंधु अपने पुराने फॉर्म में वापस नहीं आ पा रहीं है? आइए हम आपको वो 3 संभावित समस्याओं के बारे में बताते हैं.
1. स्थायी कोच की गैरमौजूदगी
इस साल फरवरी में ही शीर्ष भारतीय शटलर ने अपने पूर्व दक्षिण कोरियाई कोच पार्क ते सांग से राहें जुदा कर ली थीं. सांग ने सिंधु के करियर में अहम भूमिका निभाते हुए उन्हें टोक्यो ओलंपिक 2020 में कांस्य पदक, सिंगापुर ओपन और कॉमनवेल्थ 2022 गोल्ड जीतने में मदद की थी. हालांकि इस साल के शुरुआत में मिली नाकामियों के बाद सिंधु ने कहा कि उन्हें बदलाव की जरुरत है और वो नया कोच ढूंढ रही हैं. उन्होंने फिलहाल के लिए मलेशिया के हाफ़िज़ हाशिम को अपना कोच नियुक्त किया है. हालांकि पिछले कई टूर्नामेंटों को देख कर लग रहा है कि वो इस बदलाव के साथ तालमेल नहीं बिठा पा रही हैं.
2. चोट के बाद वापसी
भारत की दो बार की ओलंपिक पदक विजेता के लिए पिछले कुछ महीने खराब रहे हैं. स्टार भारतीय शटलर को अगस्त में राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान बाएं पैर में स्ट्रेस फ्रैक्चर हो गया जिसकी वजह से वह पांच महीने तक एक्शन से दूर रहीं. इसके कारण सिंधु ने BWF वर्ल्ड चैंपियनशिप के साथ-साथ वर्ल्ड टूर फाइनल्स से अपना नाम वापस ले लिया. लेकिन लगता है कि ये ब्रेक उनके लिए काफी नहीं था. सिंधु की लगातार असफलताओं का एक कारण यह भी हो सकता है कि वो अब तक अपनी एंकल इंजरी से पूरी तरह से उबर नहीं पाईं हैं.
3. आत्मविश्वास की कमी
किसी भी खेल के लिए खिलाड़ी का मानसिक तौर पर मजबूत होना, भरपूर आत्मविश्वास और दबाव झेलने की क्षमता होना बेहद जरूरी होता है.लेकिन अगर सिंधु के हालिया मैचों को देखें तो उनमें इन गुणों की कमी दिखाई देती है. चोट से पहले यह 28 वर्षीय शटलर मुश्किल से मुश्किल परिस्थितियों में विरोधी के हाथों से जीत छीन लेती थीं लेकिन आज कल वो थोड़ा सा भी दबाव नहीं झेल पातीं और अंत में जाकर आत्मविश्वास खो देती हैं. ऐसे मौकों पर अक्सर वो गलती कर बैठती हैं जिससे अपोनेंट को फायदा मिल जाता है. सिंधु के पुराने कोच सांग ने भी इस बात का जिक्र किया था.
हार का सिलसिला सिंधु के लिए चिंताजनक संकेत है. उन्होंने अतीत में भी शानदार कमबैक किया है और उनके प्रशंसक उनसे इस सीज़न में भी इसे दोहराने की उम्मीद करेंगे. आधा साल बीत चुका है और सिंधु के पास पेरिस ओलंपिक से पहले अभी भी 8-10 महीनों का समय है. सिंधु ताइपे ओपन में नहीं खेल रही हैं और ये ब्रेक उनके लिए मददगार साबित हो सकता है. इस दौरान सिंधु को अपने पर काफी काम करना होगा और अपनी कमियां ढूंढकर, उनसे छुटकारा पाना होगा. सिंधु भारत में बैडमिंटन के भविष्य और युवा खिलाड़ियों के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं और वह उनकी उम्मीदों पर खरा उतरने की पूरी कोशिश करेंगी.
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