गुजरात में सूरत की एक अदालत ने बीते 6 मार्च को बड़ा फैसला दिया. इस फैसले की पूरे देश में चर्चा है क्योंकि कोर्ट ने 20 साल से सजा भुगत रहे उन 127 लोगों को बरी किया है जिन्होंने कोई गुनाह ही नहीं किया. ये फैसला अहम इसलिए है क्योंकि इन 127 लोगों पर प्रतिबंधित संगठन स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (SIMI) का सदस्य होने का आरोप था. इस मामले में तत्कालिन सरकार द्वारा जानबूझ कर बेगुनाहों को फंसाने और नियमों को ताक पर रखने की बात भी सामने आई है. दुखद ये भी है कि फैसला आने से पहले ही 5 आरोपियों की मौत हो गई. आइए जानते हैं क्या था मामला?
HEADER- 20 साल पहले लगा 'आतंकी' होने का आरोप !
सूरत के एक होटल में अल्पसंख्यक समुदाय के लोग इकट्ठा हुए
एजुकेशन वर्कशॉप के लिए 10 अलग-अलग राज्यों से आए थे लोग
साल 2001 के दिसंबर महीने की घटना, पुलिस ने होटल पर रेड डाली
सभी पर सिमी के कार्यकर्ता होने का आरोप लगाकर किया गिरफ्तार
सभी 127 लोग 11 से 13 महीने तक जेल में रहे, बाद में मिली जमानत
VO-2 हालांकि जमानत मिलने के बाद भी वे कोर्ट के चक्कर काटते रहे...करीब 20 साल के इंतजार के बाद उन्हें इंसाफ मिला
HEADER- 20 साल बाद 127 आरोपी साबित हुए बेगुनाह
कोर्ट ने कहा- जिस क़ानून के तहत उन्हें पकड़ा गया वह लागू नहीं है
गुजरात सरकार ने इस मामले में केन्द्र सरकार की इजाजत नहीं ली
जबकि ऐसे मामलों में कार्रवाई के लिए केन्द्र की इजाजत जरूरी
पुलिस यह भी साबित नहीं कर पाई कि गिरफ़्तार व्यक्ति सिमी के थे
कोर्ट ने कहा- ठोस, विश्वसनीय और संतोषजनक सबूत पेश नहीं हुए
जाहिर है 20 सालों के बाद इंसाफ तो मिला लेकिन कई सवालों के साथ. इन 127 आरोपियों में से कईयों के कारोबार तबाह हो गए और कई लोगों की नौकरी चली गई , कुछ तो डिप्रेशन में चले गए हैं...अब सवाल ये है कि उनके साथ हुई नाइंसाफी का इंसाफ कैसे होगा?