India@75: आधी आबादी की प्रेरणा, वो महिलाएं जो बनीं मिसाल

Updated : Aug 11, 2021 14:15
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Editorji News Desk

आजादी की बात हो और देश की आधी आबादी की बात ना हो, ऐसा कैसे हो सकता है, हाल फिलहाल में आधी आबादी की कुछ बुलंद आवाज़ों ने वक्त की रेत पर अपने निशां छोड़े हैं और कुछ लगातार अपने कदमों की धमक से  दुनिया को चौंका रहीं हैं, इन्होंने मेहनत और लगन से अपने जीवन में एक ऐसी लकीर खींची है, जो  सबके लिए एक मिसाल है. आइये ऐसी ही कुछ शख्सियतों पर नज़र डालते हैं-


लक्ष्मी अग्रवाल


वो नाम जिसने एसिड अटैक सर्वाइवर्स की ज़िंदगी को एक नई दिशा दी. साल 2005 में 15 साल की उम्र में लक्ष्मी पर एकतरफा प्रेम करने वाले एक शख्स ने एसिड अटैक किया. तेज़ाब की जलन लक्ष्मी ने अपने तन पर महसूस ज़रूर की लेकिन मन को जख्मी नहीं होने दिया. अगले साल यानि 2006 में लक्ष्मी ने सुप्रीम कोर्ट में एसिड की बिक्री से जुड़ी एक याचिका दाखिल की. फैसला लक्ष्मी के पक्ष में आया, कोर्ट ने तेजाब की बिक्री को लेकर गाइडलाइंस जारी की. ये फैसला लक्ष्मी जैसी हजारों एसिड अटैक सर्वाइवर के  दर्द और तकलीफ पर मरहम जैसा था. साल 2014 में लक्ष्मी को अमेरिका की फर्स्ट लेडी मिशेल ओबामा की ओर से अंतर्राष्ट्रीय महिला सम्मान का पुरस्कार दिया गया.


 पीवी सिंधु,


ऑफिशयली भारतीय बैडमिंटन की सबसे महान प्लेयर ।  ओलंपिक्स में लगातार दो मेडल जीतने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी । रियो ओलंपिक्स के बाद टोक्यो में भी उनके पदक ने उन्हें खेल की अलग ही लीग में पहुंचा दिया है. .  उनके परिवार से लेकर उनके मित्र बताते हैं कि वो बेहद महत्वाकांक्षी हैं और खेल की नई से नई ऊंचाई  छूने में ना सिर्फ यकीं रखती हैं बल्कि उसके लिए जान की बाज़ी लगाने में भी पीछे नहीं हटती हैं.  साइना नेहवाल से  शुरू हुए बैडमिंटन और  कामयाबी के इस सफर को सिंधु ने परवान लगा दिए हैं, वो अभी युवा है और अभी बहुत कुछ हासिल करना है.फिलहाल वो खेल के शिखर तक पहुंचने का सपना देखने वाले यंग खिलाड़ियों की पोस्टर गर्ल हैं.


केके शैलजा


ढर्रे की राजनीति में रहकर भी कैसे अपने काम की अलग पहचान बनाई जा सकती है, ये कोई केरल की पूर्व स्वास्थ्य मंत्री शैलजा टीचर से सीखे, पहले निपाह वायरस और बाद में कोरोना वायरस से निपटने के के लिए उन्होंने जो कुछ किया उसकी चर्चा विदेशों में भी हुई. साल 2020 में उन्हें यूके की एक पत्रिका की ओर से 'टॉप थिंकर ऑफ द इयर' चुना गया. राजनीति में आने से पहले बच्चों को फिजिक्स पढ़ाने वाली शैलजा पहली बार 1996 में विधायक बनीं  साल 2016 में शैलजा ने कुथुंरबा सीट से  एक बार फिर विधानसभा  का चुनाव लड़ा और वो इस बार वो 60,963 वोटों से जीती , केरल विधानसभा में ये अपने आप में ही एक रिकॉर्ड है. उन्हें उनके काम के लिए यूएन मे डिसक्शन के लिए बुलाया गया और ब्रिटिश अखबार गार्जियन ने तो उन्हें 'रॉकस्टार' ही करार दे दिया. हालांकि इस बार वो विजयन कैबिनेट में नहीं है और इसे लेकर सोशल मीडिया पर लोगों ने गुस्सा जाहिर किया है.


डॉ प्रिया अब्राहम


नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी, पुणे की डायरेक्टर प्रिया अब्राहम का नाम उन चंद लोगों में शुमार है जो कोरोना के खिलाफ जंग के मैदान में सबसे अगली पंक्ति में नज़र आते हैं. भारत में कोविड केस आने के दो महीने पहले ही प्रिया  ने NIV की कमान संभाली और उनके नेतृत्व में इंस्टीट्यूट ने बेहद प्रोफेशनल और हिम्मत भरे रवैये से कोरोना से लड़ने में देश की मदद की .  RT PCR Testing हो  या  एंटीबॉडी डिटेक्शन टेस्ट किट  या फिर भारत बायोटेक के साथ कोवैक्सीन को लेकर पार्टरनशिप. अब्राहम की अगुवाई में NIV ने कोरोना से लड़ाई में जिस तरह का योगदान दिया है वो काबिले तारीफ है.
   

मानसी जोशी


पैरा बैडमिंटन वर्ल्ड चैंपियन मानसी जोशी ने मेहनत और लगन की वो लकीर खींची है जो अपने आप में मिसाल हैं. साल 2011 में मानसी ने एक दुर्घटना में अपने पैर गंवा दिए. 9 साल की उम्र से ही बैडमिंटन खेल रही मानसी ने इस घटना से भी जीवन में हार नहीं मानी.उन्होंने फिर से बैडमिंटन कोर्ट पर  दोबारा खेलना शुरू किया और  4 महीने बाद ही वो कृत्रिम पैर लगाकर प्रोफेशनल बैडमिंटन की ओर बढ़ गई . साल 2014 में अपनी मेहनत के बल पर वो प्रोफेशनल खिलाड़ी बन गई और ब्रिटेन में हुई वर्ल्ड चैंपियनशिप में उन्होंने मिक्स्ड डबल्स का सिल्वर जीता. इसके बाद बड़ा मुकाम साल 2019 में आया जब उन्होंने वर्ल्ड चैंपियनशिप में गोल्ड हासिल किया. वो ना सिर्फ युवा लड़कियों बल्कि लड़कों, सब खिलाड़ियों के लिए Inspiration हैं.


रोशनी शर्मा

कई बार हम अपने देश को नापने के लिए कहते हैं, कन्याकुमारी से कश्मीर तक, यानि पूरा हिंदुस्तान देख लेना, लेकिन क्या आप जानते हैं कि बैंगलोर की सॉफ्टवेयर इंजीनियर रोशनी शर्मा ने ये पूरा सफर  बाइक से अकेले ही  तय किया है. यह पूरा रास्ता 5453 किलोमीटर का है जिसमें  पहाड़ ,नदिया, जंगल सब आते है. भारत जैसे पितृसत्तात्मक समाज में लड़कियों के लिए ये आम बात नहीं, ऐसे में रोशनी की उपलब्धि अपने आप में बड़ी बात है.वो कहतीं भी हैं कि अपनी इस जर्नी से वो दिखाना चाहती थीं कि लड़कियां जो ठान ले वो करके रहती हैं.


अवनी चतुर्वेदी


बचपन में आज़ाद परींदे की तरह उड़ने की ख्वाहिश करने वाली अवनी ने अपनी उड़ान से कई स्टीरियोटाइप्स तोड़े. साल 2018 में  फाइटर प्लेन मिग -21  उड़ाकर उन्होंने ना सिर्फ इतिहास रच दिया बल्कि  देश के लिए फाइटर प्लेन उड़ाने का सपना देखने वाली लाखों लड़कियों के सपने को परवान दे दिए. 19 फरवरी 2018 को अवनी ने गुजरात के जामनगर एयरबेस से अकेले ही फाइटर एयरक्राफ्ट मिग 21 से उड़ान भरी, अवनी के साथ मोहना सिंह और भावना कंठ को पहली बार लड़ाकू पायलट घोषित किया गया था. उनके परिवार के ज्यादातर सदस्य सेना के जरिए देश की सेवा में जुटे हैं और यहीं से उन्हें सेना में शामिल होने की प्रेरणा मिली.


अरुणिमा सिन्हा


अरुणिमा सिन्हा ने एक पैर के बूते दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट फतह की है. ऐसा करने वाली वो दुनिया की पहली दिव्यांग महिला हैं. उनके संघर्ष की कहानी भी कम प्रेरणादायक नहीं है. साल 2011 में बदमाशों ने अरुणिमा को चलती ट्रेन से फेंक दिया और इस दुर्घटना में उन्हें अपना पैर गंवाना पड़ा. लेकिन उन्होंने हिम्मत नही हारी, उन्होंने पर्वतारोहण की ट्रेनिंग ली और दुनिया की कईं ऊंची चोटियों को फतह करने का कारनामा अपने नाम किया.  अरूणिमा किलीमंजारो (अफ्रीका) एल्ब्रूस (रूस), कास्टेन पिरामिड ( इंडोनेशिया) किजाश्को ( ऑस्ट्रेलिया) और माउंट अंककागुआ(दक्षिण अमेरिका) पर्वत चोटियों को वो फतह कर चुकी हैं.


शीला दवारे


मिलिए देश की पहली आटो रिक्शा ड्राइवर शीला दवारे से, शीला का नाम पहली महिला ऑटो ड्राइवर के तौर पर 1988 से लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज है. 12वीं की पढ़ाई के बाद शीला ने 18 साल की उम्र में अपना घर छोड़ दिया था, जिसके बाद वो पुणे में ऑटो चलाने लग गईं. इस दौरान उन्हें खासे विरोध का भी सामना करना पड़ा, लेकिन वो पीछे नहीं हटीं. उनसे प्रेरणा लेकर आस पास की कई महिलाओं ने ऑटो चलाकर आत्मनिर्भरता का रास्ता अख्तियार किया, इससे पहले सिर्फ पुरूष ही ऑटो चलाते थे.  


बिलकिस बानो


82 साल की बिलकिस बानो का नाम उन चंद आज़ाद आवाज़ों में शुमार है, जिन्हें आजादी और समानता का पर्याय माना जाता है. नागरिकता संशोधन एक्ट के विरोध में दिल्ली के शाहीन बाग में एक साल तक चले विरोध प्रदर्शन में बिलकिस बानो विरोध और हिम्मत का प्रतीक बनीं . इस पकी उम्र में वो बिना नागा रोज़ ना सिर्फ विरोध प्रदर्शन में शामिल होती रहीं बल्कि सिविल सोसाइटी के लिए भी एक मजबूत भावनात्मक स्तंभ की तरह उभरीं. पिछले साल टाइम मैगजीन ने उन्हें 100 सबसे प्रभावशाली लोगों की लिस्ट में शामिल किया.

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India Air ForceIndia @ 75Independence Day 2021

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