कभी कभी, सिलसिला, चांदनी, लम्हे, डर, दिल तो पागल है, वीर ज़ारा और जब तक है जान... ये वो फिल्में हैं जिन्होंने सिनेमा के पर्दे पर रोमांस और लव को नई पहचान दी, उसे नए मायने दिए, पर्दे पर प्यार की नई इबारत लिखी. तभी तो यश चोपड़ा को हिन्दी सिनेमा का 'किंग ऑफ रोमांस' कहा जाता है.
बॉलीवुड में रोमांस को जिंदा करने, उसकी बारीकियों को टटोलने, दर्शक को प्यार से प्यार करवाने में यश चोपड़ा का दूसरा कोई सानी नहीं. उनकी फिल्मों में फीमेल कैरेक्टर्स को भी खास तवज्जो दी जाती थी.
अमिताभ बच्चन से लेकर शाहरुख खान... तो वैयजंती माला से लेकर श्रीदेवी और कैटरीना कैफ तक... इंडस्ट्री के हर एक्टर के हुनर को उन्होंने पर्दे पर निखार कर रख दिया.
यूं तो यश चोपड़ा रोमांस के लिए जाने जाते हैं लेकिन अमिताभ बच्चन को सुपर स्टार बनाने में यश चोपड़ा का बेहद अहम रोल है. दीवार और त्रिशूल के जरिए उन्होंने अमिताभ को 'एंग्री यंग मैन' बना दिया तो कभी कभी और सिलसिला के जरिए रोमांटिक मैन.
शाहरुख खान और श्रीदेवी के करिेयर को शेप देने में भी यश चोपड़ा का बेहद अहम रोल है. चांदनी की जबरदस्त सफलता ने श्रीदेवी को हिंदी सिनेमा की टॉप हीरोइन बना दिया था, और फिर आई लम्हे. तो
वहीं शाहरुख खान को भी किंग खान बनाने में किंग ऑफ रोमांस का बड़ा रोल है. डर, दिल तो पागल है, वीर ज़ारा और जब तक है जान जैसी बड़ी और क्रिटिकली एक्लेम्ड हिट फिल्में उन्होंने शाहरुख के साथ ही बनाई हैं.
27 सितंबर, 1932 को लाहौर में पैदा हुए यश चोपड़ा ने आई एस जौहर और बड़े भाई बीआर चोपड़ा के साथ बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर काम शुरू किया. 1959 में आई धूल का फूल उनकी बतौर डायरेक्टर पहली फिल्म थी. बी.आर चोपड़ा के बैनर तले उन्होंने लगातार पांच फिल्में डायरेक्ट कीं. इन फिल्मों में ‘एक ही रास्ता’, ‘साधना’ और ‘नया दौर’ शामिल हैं. लेकिन उन्हें कामयाबी मिली 1965 में आई फिल्म 'वक्त' से जो अपने वक्त की जबरदस्त हिट फिल्म थी.
1970 में उन्होंने यशराज फिल्म्स की शुरुआत की, और अपने बैनर तले 1973 में पहली फिल्म 'दाग' बनाई, जो सुपरहिट साबित हुई. इस फिल्म की सफलता ने उन्हें बॉलिवुड में नया नाम और मकाम दिया. हालांकि एक दौर ऐसा भी आया जब उनकी 5 फिल्में बैक टू बैक फ्लॉप साबित हुईं और यशराज फिल्म्स के बंद होने तक की नौबत आ गई. लेकिन तब उधार के पैसे से बनी 'चांदनी' ने उनके करियर और प्रोडक्शन हाउस दोनों को चमका दिया. 1989 में आई चांदनी जबरदस्त हिट साबित हुई, चांदनी ने हिंदी सिनेमा में रोमांस और म्यूजिक दोनों की वापसी कराई.
यश चोपड़ा जितने सेंसिटिव डायरेक्टर थे, वो उतने ही बोल्ड भी थे. उस जमाने में उन्होंने उन टॉपिक्स पर फिल्में बनाईं जो दूसरा कोई छूने से भी डरता. जैसे टैबू टॉपिक्स और एक्सट्रा मैरिटल अफेयर्स. 1981 में रिलीज हुई फिल्म 'सिलसिला' पहली बार extramarital affair पर बनी फिल्म थी. तो 1991 में आई उनकी फिल्म 'लम्हे', इंटर जेनरेशनल लव को बयां करती ये फिल्म अपने तरह की भारत में बनी पहली फिल्म थी, टॉपिक भी ऐसा जिसे सिनेमा में टैबू माना गया था. लेकिन इस फिल्म ने बतौर फिल्मकार और निर्देशक यश चोपड़ा को एक नई पहचान दिलाई, न सिर्फ भारत बल्कि दुनिया में. ये उनके मुताबिक उनके करियर की फेवरिट फिल्म है. हालांकि भारत में ये बॉक्स ऑफिस पर तब अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई, हालांकि बाद में इसने पैसे कमाए.
यश चोपड़ा ने अपने पांच दशक लंबे फिल्मी करियर में करीब 50 फिल्में इंडस्ट्री को दीं, इनमें से 21 फिल्में उन्होंने खुद डायरेक्ट कीं. यश चोपड़ा को 6 बार राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से नवाजा जा चुका है. 11 फिल्मफेयर अवॉर्ड से वो सम्मानित हो चुके हैं जिनमें 4 बतौर डायरेक्टर तो 4 बेस्ट फिल्म के लिए मिला अवॉर्ड शामिल है. इसके अलावा उन्हें 2001 में दादा साहेब फाल्के सम्मान से तो 2005 में पद्म भूषण से भारत सरकार ने सम्मानित किया है. यश चोपड़ा पहले भारतीय फिल्ममेकर हैं जिन्हें BAFTA ने साल 2006 में लाइफटाइम मेंबरशिप से सम्मानित किया था.
साल 2012 में जब तक है जान की शूटिंग खत्म होते होते यश चोपड़ा की जिंदगी का किरदार भी खत्म हो गया. डेंगू बुखार ने उन्हें ऐसा जकड़ा कि वो अस्पताल से बाहर ही नहीं आ सके और 80 साल की उम्र में उन्होंने अंतिम सांस ली.