भारत तो छोड़िए आज भी दुनिया के तमाम बड़े नेता गाहे-बगाहे कहते रहते हैं कि हमें महात्मा गांधी के आदर्शों पर चलने की जरुरत है. दुनिया में भारत को आज भी गांधी के देश के नाम से जाना जाता है. उनका सिविल राइट्स आंदोलन दुनिया के 4 महाद्वीपों और 12 देशों तक पहुंचा था, लेकिन इसके बावजूद अपने ही देश में बापू को लेकर गलफहमियां पालने वालों की कमी नहीं है. लेकिन जानकार ये कहते हैं जो गांधी की आलोचना करते हैं उन्होंने गांधी को कभी पढ़ा नहीं, और जिन्होंने पढ़ा है उन्होंने आधार अधूरा और अपनी सोच के मुताबिक पढ़ा है, या फिर पढ़ के भी समझा नहीं. गांधीजी भी इंसान थे, कुछ मानवीय गलतियों के बावजूद वे महान थे. आइए जानते हैं कुछ ऐसी ही गलतफहमियों और उनकी सच्चाई के बारे में...
सवाल- क्या देश के विभाजन के लिए गांधी जिम्मेदार थे?
जवाब- जी नहीं, विभाजन के लिए तब की परिस्थितियां जिम्मेदार थीं. गांधी जी ने तो विभाजन रोकने की पुरजोर कोशिश की थी. उन्होंने तो नेहरू और पटेल के सामने जिन्ना को प्रधानमंत्री बनाने का प्रस्ताव भी रखा था. यही नहीं जिन्ना को भी कहा था कि आपकी सारी बातें मानेंगे, विभाजन न करें. दिल्ली में विभाजन की तैयारी के वक्त तो गांधी नोखाखली में थे. वहां से जब वो लौटे तो हालात बदल चुके थे.
सवाल- क्या गांधी ने भगत सिंह की फांसी नहीं रुकवाई?
जवाब- महात्मा गांधी ने 18 फरवरी, 19 मार्च, 21 मार्च और 22 मार्च 1931 को तब के वायसराय लॉर्ड इरविन से इस मुद्दे पर बात की थी और पत्र लिखा था. 22 मार्च 1931 को इरविन ने कहा था कि इस पर विचार करेंगे लेकिन वे कुछ कर पाते उससे पहले ही 23 मार्च को भगत सिंह को फांसी दे दी गई. जबकि पहले उन्हें 24 मार्च को फांसी दी जानी थी.
24 मार्च को ही गांधी जी ने कराची में कहा था- मैं किसी खूनी, चोर या डाकू को भी फांसी की सजा के खिलाफ हूं. मैंने भगत सिंह को बचाने की हर मुमकिन कोशिश की लेकिन मैं सफल नहीं हो पाया.
सवाल- क्या गांधी के महिलाओं से अनैतिक संबंध थे?
जवाब- गांधीजी ने साल 1906 में ही ब्रह्मचर्य का व्रत ले लिया था. वे शाकाहारी से फलाहारी बन गए, क्योंकि उनका मानना था कि ये काम की इच्छा को बढ़ाते हैं. ब्रह्मचर्य के पालन के लिए उन्होंने कई प्रयोग किए. इसी क्रम में वे महिलाओं के साथ रहे भी लेकिन उसे अनैतिक नहीं कहा जा सकता. कभी किसी महिला ने ऐसी कोई शिकायत भी नहीं की. कभी इन अफवाहों की पुष्टि भी नहीं हुई है.
सवाल- क्या वे आधुनिकता और तकनीक के खिलाफ थे?
जवाब- कतई नहीं. भारत में पहली बार लाउडस्पीकर का इस्तेमाल गांधी की रैली में ही हुआ. वे साइंटिस्ट जगदीशचंद्र बोस और अलबर्ट आइंस्टीन के प्रशंसक थे और उन्हें समर्थन देते थे. गांधी ने शुरू में जरूर मशीनों का विरोध किया था लेकिन साल 1930 आते-आते उनके विचार बदले. यंग इंडिया में उन्होंने खुद लिखा- भारत गांवों में बसता है, खेती उसका धर्म है इसलिए मशीनों को गांव और कृषि का सहयोगी होना चाहिए न कि विरोधी.
सवाल- क्या गांधी मुस्लिम-परस्त और हिन्दू विरोधी थे?
जवाब- हमारे राष्ट्रपिता कट्टरता के विरोधी थे. मुस्लिम लीग और जिन्ना उन्हें हमेशा सिर्फ हिंदू मानते रहे. कम्युनिस्ट उन्हें हमेशा सांप्रदायिक हिंदू मानते रहे. आंबेडकर उन्हें बुरा सवर्ण हिंदू मानते थे. लेकिन खुद गांधी के विचारों, कर्म और उद्देश्यों में 'हिंदू भारत' कभी नहीं रहा. यंग इंडिया में उन्होंने खुद को सनातनी हिंदू लिखा था पर मूर्तिपूजा में उनका विश्वास नहीं था. वे वेदों, उपनिषदों को तो मानते थे पर वर्णों में बंटा समाज उन्हें स्वीकार नहीं था.
सवाल- क्या गांधी RSS के विचारों के समर्थक थे?
जवाब- 16 सितंबर 1947 को गांधीजी दिल्ली प्रांत प्रचारक वसंतराव ओक के आमंत्रण पर भंगी बस्ती की शाखा में गए थे, ये संघ की किसी शाखा में उनका पहला और अंतिम दौरा था. अपने स्वंयसेवकों से परिचय कराते हुए ओक ने गांधी को 'हिंदू धर्म द्वारा उत्पन्न किया हुआ एक महान पुरुष' बताया था. इसके जवाब में गांधीजी ने कहा था- "मुझे हिंदू होने का गर्व अवश्य है लेकिन मेरा हिंदू धर्म न तो असहिष्णु है और न बहिष्कारवादी. हिंदू धर्म की विशिष्टता, जैसा मैंने उसे समझा है, यह है कि उसने सब धर्मों की उत्तम बातों को आत्मसात कर लिया है. अगर हिंदू यह मानते हों कि भारत में अ-हिंदुओं के लिए समान और सम्मानपूर्ण स्थान नहीं है और मुसलमान भारत में रहना चाहें तो उन्हें घटिया दर्जे से संतोष करना होगा तो इसका परिणाम यह होगा कि हिंदू धर्म श्रीहीन हो जाएगा."