जमीन कितनी भी सूखी हो..लेकिन चुनाव आते ही नेताओं को उसपर वोटों की हरियाली दिखने लगती है. बात हो रही है बुंदेलखंड की. जहां जनता का मूड भांपने में राजनीतिक पार्टियां भी कई बार मात खा गई हैं, यही कारण है कि इस बार सपा चीफ अखिलेश यादव बुंदेलखंड की धरती पर राजनीतिक फसल काटने के लिए पूरा दमखम लगा रहे हैं.
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उत्तर प्रदेश की सत्ता की चाबी हासिल करने में लगे अखिलेश यादव ने एक से तीन दिसंबर तक बुंदेलखंड में ताबड़तोड़ रोड शो किए जिनमें भारी जनसैलाब उमड़ा. यूं तो बुंदेलखंड में सपा को अक्सर निराशा ही हाथ लगी है लेकिन अखिलेश के रोड शो में दिखे भारी जनसमर्थन से सवाल पैदा होता है कि क्या अखिलेश आसानी से बुंदेलखंड की चुनौती को पार कर लेंगे.
बुंदेलखंड के राजनीतिक इतिहास को समझने से पहले आइए एक नजर डालते हैं इस क्षेत्र पर.
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1.45 करोड़ आबादी वाले बुंदेलखंड के 29,000 स्क्वायर किलोमीटर वाले उत्तर प्रदेश के क्षेत्र में 78 लाख लोग रहते हैं जबकि मध्य प्रदेश वाले करीब 40,000 स्क्वायर किलोमीटर वाले क्षेत्र में 67 लाख लोग रहते हैं.
आइए एक नजर डालते हैं कि राजनीतिक रूप से कितना अहम है बुंदेलखंड
आइए एक नजर डालते हैं कि सियासी दलों को बुंदेलखंडवासियों का अबतक कितना प्यार मिला है-
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क्या बरकरार रह पाएगा बीजेपी का दबदबा या अखिलेश की रैली में उमड़ा जनसैलाब दे रहा बदलाव के संकेत ?पिछले चुनाव में बसपा से उसका गढ़ छीनने वाली बीजेपी के किले को भेदने की पूरी कोशिश कर रही है समाजवादी पार्टी.
बसपा का दामन छोड़ हाल ही में सपा से जुड़ने वाले कुछ खास लोगों को साथ लेकर अखिलेश बुंदेलखंड में लहराना चाहते हैं जीत का परचम.
हालांकि, बात अगर रैली या रोड शो में उमड़े जनसैलाब की करें तो ये सत्ता की चाबी हासिल करने का कोई पैमाना नहीं है. उत्तर प्रदेश के सियासी रण में ऊंट किस करवट बैठेगा ये तो वक्त ही बताएगा.