Gujarat Election 2022: गुजरात चुनाव में लोक लुभावन वादे, आरोप-प्रत्यारोप और जाति कार्ड समेत तमाम सियासी चाल चली गई. इस बार राज्य में त्रिकोणीय मुकाबला माना जा रहा है. BJP के सामने जहां अपनी 27 साल की साख बचाने की चुनौती है, तो वहीं आम आदमी पार्टी के पास पाने को तो पूरा राज्य है, लेकिन खोने को कुछ भी नहीं.
पिछले साल सूरत में हुए नगर निगम के चुनाव में AAP ने 27 सीटें जीती थी. कांग्रेस को मुख्य विपक्ष से हटाकर आम आदमी पार्टी ने ना सिर्फ पूरे गुजरात को चौंका दिया था, बल्कि भविष्य के भी संकेत दिए थे. इन नतीजों की अहमियत को इस बात से समझा जा सकता है कि सूरत को बीजेपी का गढ़ माना जाता है. प्रदेश अध्यक्ष चंद्रकांत रघुनाथ पाटिल (C. R. Patil) भी सूरत से आते हैं. इसके अलावा पंजाब में प्रंचड जीत के बाद AAP नेताओं और कार्यकर्ताओं के हौसले सातवें आसमान पर हैं. लिहाजा AAP ने बीजेपी और कांग्रेस दोनों की बेचैनी बढ़ा दी है.
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आम आदमी पार्टी ने स्कूली शिक्षा, अस्पताल और महंगी बिजली को एक बड़ा मुद्दा बनाया है. AAP का फोकस युवाओं, पाटीदार और ओबीसी पर ज्यादा है. AAP के प्रदेश अध्यक्ष गोपाल इटालिया खुद पाटीदार आंदोलन से जुड़े रहे हैं. गुजरात में पाटीदार वोटर्स की संख्या 15-17% है. आंकड़े बताते हैं कि गुजरात का आदिवासी बहुल इलाका BJP के लिए कुछ मुश्किलों भरा रहा है. AAP के सीएम उम्मीदवार इसुदान गढ़वी गुजरात के गढ़वी समाज से आते हैं, ये समाज चारण जाति से ताल्लुक रखता है. जो अति पिछड़ा वर्ग में शामिल है. गुजरात में OBC 48 प्रतिशत है. गुजरात में कुल 4.9 करोड़ युवा वोटर्स हैं. जिनमें से 4.61 लाख ऐसे वोटर हैं, जो पहली बार वोट डालेंगे. हांलाकि, इन पर AAP, BJP और क्रांग्रेस तीनों की नजर है.
दरअसल, केजरीवाल मुफ्त की योजनाओं को आधार बना रहे हैं. AAP उन राज्यों में BJP का विकल्प बनना चाहती है, जहां पिछले कुछ सालों में कांग्रेस कमजोर हुई है. अगर दिल्ली और पंजाब को छोड़ दिया जाए तो बाकि राज्यों में AAP प्रत्याशी अपनी जमानत तक नहीं बचा पाए. उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में AAP ने खूब प्रचार किया, लेकिन नतीजा जीरो निकला. ऐसा ही हाल यूपी चुनाव में भी था. इसके अलावा दिल्ली से लेकर पंजाब तक AAP के कई नेता भ्रष्टाचार के मुकदमे झेल रहे हैं. खुद दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में जेल काट रहे हैं. जबकि आम आदमी पार्टी की नीव ही भ्रष्टाचार के खिलाफ हुए आंदोलन से पड़ी थी. गुजरात का वोटर प्रचार के साथ-साथ 'प्रोडक्ट' से खासा प्रभावित होता है. लिहाजा गुजरात में AAP की डगर आसान नहीं है.
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