गुजरात (Gujarat) में इस बार किसके ‘अच्छे दिन’ आएंगे, इसका पता 8 दिसंबर को चल जाएगा. लेकिन उससे पहले तमाम सियासी दलों ने प्रदेश की सत्ता पर काबिज होने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. खासकर बीजेपी, जो पिछले 27 सालों से सत्ता पर काबिज है. हालांकि इस बार बीजेपी (BJP) की राहें आसान रहने वाली नहीं हैं, क्योंकि कांग्रेस (Congress) और आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) से उसे कड़ी टक्कर मिल रही है. बावजूद इसके कुछ चीजें ऐसी हैं, जो बीजेपी के पक्ष में जाती है और इसकी काट दूसरे दलों के पास नहीं है. तो वहीं कुछ कमजोरियां और चुनौतियां भी हैं, जो उसकी राह में रोड़ा बन सकती हैं.
बीजेपी ने हर बार की तरह इस बार भी 'नो रिपीट थ्योरी' का फॉर्मूला (No Repeat Theory Formula) अपनाया है. बीजेपी का ये ऐसा अचूक प्लान है, जिसकी काट विरोधी नहीं ढूंढ़ पाए हैं. बीजेपी ने इस बार बुजुर्गों के बजाय नए चेहरों और युवाओं पर दांव खेला है. कई पुराने और सीनियर नेताओं को टाटा-बाय-बाय कह दिया. पार्टी ने इस बार करीब 38 मौजूदा विधायकों के टिकट काट दिए. बीजेपी ने सभी जातियों को टिकट देकर जातीय समीकरण साधने की कोशिश की है. साथ ही बूथ जीतो, चुनाव जीतो के फॉर्मूले पर काम करने की रणनीति बनाई. इसको लेकर पार्टी ने माइक्रो मैनेजमेंट लेवल (Micro Management Level) पर तैयारी की है और ग्रामीण (Rural Area) इलाकों में खासा जोर लगा रही है.
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बीजेपी के पास पीएम मोदी (PM Modi) जैसा एक ऐसा तुरूप का इक्का है, जिनकी लोकप्रियता आज भी लोगों के सिर चढ़कर बोल रही है. इसके साथ ही बीजेपी के चाणक्य कहे जाने वाले गृहमंत्री अमित शाह (Home Minister Amit Shah) हैं, जो चुनावों की न सिर्फ खुद रणनीति बनाते हैं, बल्कि उसे अमलीजामा भी पहनाते हैं. पिछले चुनाव में बीजेपी के खिलाफ पाटीदारों का गुस्सा अपने चरम पर था, लेकिन इस बार हालात अलग हैं. भूपेंद्र पटेल सीएम (CM Bhupendra Patel) हैं और हार्दिक पटेल (Hardik Patel) भी बीजेपी में शामिल हो चुके हैं, जिसका फायदा पार्टी को मिल सकता है. माना जा रहा है कि बीजेपी के इस कदम से पाटीदारों का गुस्सा कम होगा. इतना ही नहीं प्रदेश में बीजेपी का बूथ स्तर (Booth Level) तक मजबूत संगठनात्मक ढांचा है, जिसे पार्टी के लिए प्लस प्वाइंट माना जाता है. इसके अलावा हिन्दुत्व (Hindutva), विकास और ‘डबल इंजन’ जैसे मुद्दे बीजेपी की राहें आसान कर सकती हैं.
बीजेपी भले ही प्रदेश की सत्ता पर ढाई दशक से ज्यादा वक्त से काबिज हो, लेकिन 2014 में नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के दिल्ली कूच करने के बाद से ही पार्टी में कोई ऐसा दूसरा नेता उभर कर सामने नहीं आया, जो पीएम मोदी की कमी की भरपाई कर सके. नरेंद्र मोदी लगातार 13 साल तक प्रदेश के सीएम रहे, लेकिन उनके दिल्ली (Delhi) जाने के बाद से लेकर अब तक तीन सीएम बनाए जा चुके हैं. इसके अलावा ग्रामीण इलाकों में पकड़ कमजोर होने का खामियाजा भी बीजेपी को भुगतना पड़ सकता है.
चूंकि बीजेपी प्रदेश की सत्ता पर 27 सालों से काबिज है, लिहाजा इस बार उसे सत्ता विरोधी लहर (Anti Incumbency) का सामना करना पड़ सकता है. साथ ही बेरोजगारी, महंगाई और आर्थिक संकट जैसे कई ऐसे मुद्दे हैं, जो बीजेपी की उम्मीदों को पलीता लगा सकते हैं. हालिया मोरबी पुल हादसे (Morbi Bridge Accident) का असर भी बीजेपी के खिलाफ जा सकता है. इसके अलावा युवा वोटर खासकर फर्स्ट टाइम वोटर (First Time Voter) को साथ लाना बीजेपी के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है. टिकट नहीं मिलने से नाराज कई नेता निर्दलीय (Independent) चुनाव मैदान में ताल ठोक रहे हैं, ऐसे में इन बागियों से पार पाना भी बीजेपी के लिए आसान रहने वाला नहीं है. दूसरे दलों के नेताओं के पार्टी में आने और उन्हें टिकट मिलने से पार्टी कार्यकर्ताओं में खासी नाराजगी हैं और इस वजह से उनके उत्साह की कमी देखने को मिल रही है.
बहरहाल, इन कमजोरियों और चुनौतियों को बीजेपी अपनी रणनीति और मजबूती के कैसे पार पाती है, ये देखना दिलचस्प होगा.
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