Lok Sabha Election: लोकसभा चुनाव में उत्तर से दक्षिण तक निर्दलीय उम्मीदवारों ने पार्टियों के लिए नई मुश्किल पैदा कर दी है. बीजेपी का टिकट छोड़ बिहार के काराकाट से चुनाव लड़ रहे भोजपुरी एक्टर पवन सिंह ने एनडीए के लिए बड़ी मुसीबत खड़ी कर दी है. इस सीट से राष्ट्रीय लोक मोर्चा के उपेन्द्र कुशवाहा एनडीए के उम्मीदवार हैं. ऐसा ही हाल पूर्णिया का है जहां से पप्पू यादव आरजेडी उम्मीदवार बीमा भारती का पसीना छुड़ा रहे हैं. ये लड़ाई दोनों के समर्थकों के बीच झड़प के रूप में भी सामने आई है. राजस्थान की बात करें तो बाड़मेर सीट से बागी रवींद्र सिंह भाटी बीजेपी के लिए मुसीबत पैदा कर रहे हैं. बीजेपी का टिकट नहीं मिलने पर वो निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरे हैं.
कर्नाटक की बात की जाए तो शिमोगा सीट से बागी के एस ईश्वरप्पा ने ताल ठोक दी है. हालांकि उन्होने दावा किया है कि जीत कर वो बीजेपी का ही साथ देंगे हालांकि बीजेपी ने अनुशासनात्मक कार्रवाई करते हुए ईश्वरप्पा को 6 साल के लिए पार्टी से निकाल दिया.
दरअसल निर्दलीय उम्मीदवार अपनी सीट जीते या नहीं जीते लेकिन चुनाव के नतीजों को काफी प्रभावित करते हैं यही वजह है कि इनके चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध की कई बार मांग की जा चुकी है.2015 में लॉ कमीशन ने सरकार से सिफारिश की थी कि सिर्फ रजिस्टर्ड राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों को ही लोकसभा और विधानसभा चुनाव लड़ने की इजाजत दी दाए. आयोग का कहना था कि ज्यादातर निर्दलीय या डमी उम्मीदवार होते हैं या फिर पूरी ताकत से नहीं लड़ते.
देश में पहली बार लोकसभा चुनाव 1951-52 में कराया गया था और उस वक्त भी निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतरे थे. उस वक्त 37 निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव जीते थे और सांसद बने. दूसरे लोकसभा चुनाव में 1957 में 42 निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की थी. ये अब तक का सबसे बड़ा आंकड़ा है. इसके बाद 1962 में तीसरी लोकसभा चुनाव में 20 निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव जीते. 1967 में कुल 35 निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की. जबकि 1971 में सिर्फ 14 निर्दलीय उम्मीदवार संसद की चौखट तक पहुंचे.
इमरजैंसी के बाद हुए लोकसभा चुनाव 1977 में निर्दलीय सांसदों की संख्या और घट गई और 9 निर्दलीय सांसद बने. 1980 के लोकसभा चुनाव में फिर 9 उम्मीदवार जीते वहीं 1984 में हुए चुनाव में 13 निर्दलीय उम्मीदवार सांसद बने. लोकसभा चुनाव 1989 में इनकी संख्या 1 कम हो गयी यानी 12 निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव जीते. 1991 में 10वीं लोकसभा के लिए चुनाव हुआ जिसमें 1 निर्दलीय उम्मीदवार को जीत नसीब हुई. ये अब तक का सबसे कम आंकड़ा है.
11वीं लोकसभा के लिए 1996 में चुनाव हुआ जिसमें 9 निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की. इसी तरह 1998 में 6 निर्दलीय जीते वहीं 1999 में भी 6 निर्दलीय उम्मीदवार संसद पहुंचे. 2004 के 14वीं लोकसभा चुनाव में 5 निर्दलीय उम्मीदवारों की जीत हुई वहीं लोकसभा चुनाव 2009 में 9 निर्दलीय उम्मीदवार जीते.2014 लोकसभा चुनाव में 3 स्वतंत्र उम्मीदवार जीते जबकि 2019 के लोकसभा चुनाव में सिर्फ 4 निर्दलीय उम्मीदवार सांसद बन पाए
2019 में महाराष्ट्र के अमरावती से नवनीत राणा, असम के कोकराझार से नबा कुमार सरानिया, कर्नाटक के मांड्या से सुमलता अंबरीश और दादर नागर हवेली से मोहनभाई सांजीभाई जीत तक संसद की दहलीज पार की