Rajasthan Elections : रिवॉल्विंग डोर तोड़ने में नाकाम रहे गहलोत, बीजेपी के लिए क्या काम आया?

Updated : Dec 03, 2023 23:08
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Editorji News Desk

राजस्थान का जनादेश स्पष्ट है. लगभग सभी एग्जिट पोल की भविष्यवाणियों को खारिज करते हुए, भाजपा ने सत्तारूढ़ दल कांग्रेस पर भारी जीत दर्ज की, राज्य ने हर पांच साल में सरकार बदलने की परंपरा को बरकरार रखा है. बीजेपी की जीत ने इस बात को सीधे तौर पर जाहिर कर दिया है कि सीएम का चेहरा घोषित न करने के बावजूद पीएम नरेंद्र मोदी की गारंटी कांग्रेस पर भारी पड़ी है

इन कारणों से हुई कांग्रेस की हार

गहलोत-पायलट विवाद:
कांग्रेस की हार का एक बड़ा कारण दो गुटों की आपसी लड़ाई है. गहलोत बनाम पायलट. राज्य में कांग्रेस सरकार के दो साल भी पूरे नहीं हुए थे और सचिन पायलट एक दर्जन से अधिक विधायकों के साथ भाजपा शासित हरियाणा के एक रिसॉर्ट में डेरा डाले हुए थे. सरकार गिरने की कगार पर थी. लेकिन 'जादूगर' ने इस कदम का जवाब देते हुए बड़ी संख्या में विधायकों का समर्थन हासिल किया और उन्हें जयपुर के एक रिसॉर्ट में ले जाया गया. सरकार तो बच गयी लेकिन पुराना घाव हरा हो गया.

पेपर लीक:
गहलोत के नेतृत्व वाली सरकार के लिए चिंता का एक बड़ा कारण कई परीक्षाओं के पेपर लीक होना था. 2019 से 2022 के बीच पेपर लीक के कारण कम से कम आठ सरकारी भर्ती परीक्षाएं रद्द कर दी गईं.पहले से ही बेरोजगारी की मार झेल रहे युवाओं का गुस्सा फूट पड़ा. हार की भयावहता को देखते हुए ऐसा लगता है कि कांग्रेस ने युवा मतदाताओं का विश्वास खो दिया है.

महिला सुरक्षा:
राज्य में भाजपा का अभियान महिला सुरक्षा पर केंद्रित था.पार्टी ने राज्य को महिलाओं के खिलाफ अपराध में सबसे खराब राज्य के रूप में चित्रित किया.पीएम मोदी ने अपनी सभी रैलियों में कानून-व्यवस्था को लेकर सरकार की आलोचना की. बीजेपी के आरोपों को सरासर झूठ बताने वाले गहलोत के खंडन के बावजूद आरोप अटके नजर आए.

ध्रुवीकरण:
एग्जिट पोल के नतीजे आने से पहले ही सीएम गहलोत ने मान लिया था कि अगर बीजेपी की ध्रुवीकरण की रणनीति काम आई तो उनकी पार्टी लड़ाई हार सकती है. हो सकता है कि गहलोत सही हों. भाजपा ने उदयपुर के दर्जी कन्हैया लाल की हत्या को मुद्दा बनाकर आक्रामक तरीके से अपने ध्रुवीकरण के एजेंडे को आगे बढ़ाया. पार्टी ने पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया या पीएफआई को राज्य में रैली करने की अनुमति देने के लिए भी राज्य सरकार की आलोचना की.

'रेवड़ी' दौड़:
चुनावों से पहले, दोनों प्रमुख दलों ने तथाकथित 'रेवड़ियों' या मुफ्त उपहारों के माध्यम से मतदाताओं को लुभाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. दोनों पार्टियों ने महिलाओं को आर्थिक सहायता, सब्सिडी वाले गैस सिलेंडर और बड़े पैमाने पर स्वास्थ्य कवर पैकेज की घोषणा की। यह मोदी की गारंटी बनाम कांग्रेस की गारंटी थी. नतीजे बताते हैं कि लोगों ने मोदी पर ही भरोसा जताया.

जाति जनगणना:
कांग्रेस जाति जनगणना के मुद्दे पर बड़ा दांव लगा रही थी.प्रत्येक रैली में, राहुल गांधी ने नीति निर्धारण में पिछड़े वर्गों के कम प्रतिनिधित्व पर प्रकाश डाला. उनका प्रसिद्ध 'देश को चलाने वाले 90 अधिकारियों में से केवल 3 ओबीसी' अपनी छाप छोड़ने में विफल रहा है. क्या राज्य में जाति जनगणना के लिए कोई लेने वाला नहीं है?

कांग्रेस के लिए आगे की राह:

अब जब कोई सीएम पद ही नहीं है, तो गहलोत-पायलट प्रतिद्वंद्विता का क्या होगा? यह देखते हुए कि लोकसभा चुनाव नजदीक हैं, राज्य में विपक्ष का नेतृत्व कौन करेगा.क्या पार्टी अपना घर ठीक कर पाएगी? इस तरह के अनगिनत सवाल पार्टी को घेरे हुए हैं. वे हार पर कैसे प्रतिक्रिया देते हैं यह 2024 में उनके भाग्य का फैसला करेगा.जैसा कि इस बिंदु पर प्रतीत होता है, यह 2024 2019 की पुनरावृत्ति हो सकती है जब एनडीए ने हिंदी राज्य में सभी 25 सीटें हासिल की थीं और कांग्रेस को शून्य मिला था

Rajasthan Elections 2023

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