चुनाव के नतीजों से पहले EVM का मामला फिर सुर्खियों में है. यूपी के पूर्व CM अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने चुनावों में धांधली का आरोप लगाया जिसके बाद एसपी कार्यकर्ताओं ने राज्यभर में प्रदर्शन शुरू कर दिया.
बीते कई सालों से चुनावों से पहले और नतीजों के बाद EVM पर सवाल उठाए जाते रहे हैं. चुनाव हारने वाली पार्टी EVM हैकिंग का दावा करती है जबकि चुनाव आयोग का कहना है कि EVM पूरी तरह सुरक्षित है और इसे हैक नहीं किया जा सकता है
क्या हैक हो सकती है EVM?
चुनाव आयोग ने EVM हैकिंग और छेड़छाड़ के आरोपों की जांच के लिए एक कमेटी बनाई थी. मई 2019 में दी गई कमिटी की रिपोर्ट में कहा गया था कि EVM की हैकिंग या उससे छेड़छाड़ नहीं हो सकती. इस बात के पीछे 2 तर्क दिए गए थे...
पहला : आयोग स्टैंड अलोन EVM का इस्तेमाल करता है. इसे न तो किसी कंप्यूटर से कंट्रोल किया जाता है और न ही इंटरनेट या किसी दूसरे नेटवर्क से वह कनेक्टेड होती है. ऐसे में उसे हैक करना असंभव है. साथ ही, EVM में इस्तेमाल होने वाला सॉफ्टवेयर रक्षा मंत्रालय और परमाणु ऊर्जा मंत्रालय से जुड़ी सरकारी कंपनियों के इंजीनियर बनाते हैं. इस सॉफ्टवेयर के सोर्स कोड को किसी से भी शेयर नहीं किया जाता है.
दूसरा : भारत में जो EVM इस्तेमाल होती है, उस मशीन में दो यूनिट होती हैं. एक कंट्रोलिंग यूनिट (CU) और दूसरी बैलेटिंग यूनिट (BU). दोनों यूनिट अलग-अलग होती हैं और इन्हें चुनाव के दौरान अलग-अलग ही बांटा जाता है. अगर किसी भी एक यूनिट के साथ किसी भी तरह की छेड़छाड़ हुई तो मशीन काम नहीं करेगी. इसलिए कमेटी का कहना था कि EVM से छेड़छाड़ करना या हैक करने की गुंजाइश न के बराबर है.
मशीन बनाने वाला नहीं कर सकता छेड़छाड़?
भारत में इस्तेमाल होने वाली EVM दो सरकारी कंपनियों में, बेंगलुरु में भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड और हैदराबाद में इलेक्ट्रॉनिक कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड में बनती है.
2017 में चुनाव आयोग के FAQ में बताया गया था कि EVM पहले राज्य में जातीह और फिर वहां से जिलों में. मैनुफैक्चरर्स को नहीं पता होता कि कोई मशीन कहां जाएगी और किस पोलिंग बूथ पर इका इस्तेमाल होगा, इसलिए इसमें छेड़छाड़ नहीं हो सकती.
साथ ही, हर EVM का एक अलग सीरियल नंबर होता है. चुनाव आयोग एक ट्रैकिंग सॉफ्टवेयर यूज़ करता है. इससे मशीन की मौजूदगी का पता चलता रहता है.