उत्तर प्रदेश के 35 साल के राजनीतिक इतिहास में योगी आदित्यनाथ ऐसे मुख्यमंत्री (Yogi Adityanath) बन चुके हैं जो लगातार दूसरी बार इस पद पर बैठेंगे. यूपी चुनाव 2022 के नतीजों में बीजेपी ने बंपर जीत हासिल की है. बीजेपी की आंधी में Samajwadi Party, Congress, Bahujan Samaj Party टिक नहीं सके.
बीजेपी की इस विजयगाथा ने राज्य के चुनावी भविष्य की तस्वीर बदलकर रख दी है. इस विजय के नायक रहे Yogi Adityanath ने भी ऐसे कई समीकरणों को धवस्त कर दिया है जो 35 साल तक राज्य में रहे दूसरे मुख्यमंत्री नहीं कर सके थे. आइए समझते हैं, ऐसे मुद्दों को जिन्हें ध्वस्त करके योगी ने प्रदेश में विजय की नई पटकथा लिख डाली...
2017 से पहले योगी आदित्यनाथ Gorakhpur की राजनीति तक ही सीमित रहे थे. 2017 में अचानक मुख्यमंत्री बनने के बाद जब वह प्रदेश की सत्ता के शिखर पर विराजमान हुए तब उनपर कई शंकाए भी उठी थी. ये शंकाए एक योगी की प्रशासनिक कार्यप्रणाली पर थी, सवाल उठने लगे कि क्या योगी यूपी जैसे विशाल प्रदेश की सत्ता को चला सकेंगे? हालांकि, बीते 5 साल में योगी ने न सिर्फ प्रदेश चलाया बल्कि बड़ा वर्ग ये भी मानने लगा कि उन्होंने अपराध पर नकेल कसी. इसी का असर है कि प्रदेश में योगी ने न सिर्फ अपनी धाक जमाई बल्कि फिर से सत्ता में वापसी करने में भी वह कामयाब रहे.
योगी पर विरोधी दलों ने पिछले 5 सालों में ठाकुरवाद को लेकर कई तरह के आरोप लगाए. ट्रांसफर पोस्टिंग के मामले में एक विशेष जाति को कथित तौर पर तरजीह देने की बात की गई. विरोधी दलों ने कई तरह के तर्क भी दिए. हालांकि इस चुनाव में बीजेपी और योगी के चेहरे पर जिस तरह से वोट पड़े, वह बता रहे हैं कि आम जनता के बीच इस तरह के आरोप कोई असर नहीं डाल सके.
पश्चिमी यूपी से शुरू हुए किसान आंदोलन (Farmer's Movement in India) को लेकर ऐसे कयास लगाए जा रहे थे कि इसका असर उस वक्त की मौजूदा सरकार पर पड़ सकता है. पश्चिमी यूपी की किसान बेल्ट में नतीजों को लेकर खुद बीजेपी आशंकित थी. पार्टी ने न सिर्फ किसान आंदोलन वापस लिया बल्कि किसानों को अपने पाले में लाने के लिए कई मुहिम भी चलाई और उनका प्रचार भी किया. अब इस जीत ने दिखा दिया है कि किसान आंदोलन यूपी में बीजेपी को कोई नुकसान पहुंचा पाने में नाकाम रहा.
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बीजेपी को इस चुनाव में जाट (Jat Voters) और मुस्लिम दोनों ही समुदायों के वोट मिले. अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी (एसपी) और Jayant Chaudhary की राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) के चुनाव पूर्व गठबंधन के बाद से राजनीतिक विश्लेषक मान रहे थे कि बीजेपी को इन दोनों ही समुदाय के वोटों का नुकसान हो सकता है. मुस्लिम वोटों की बात न भी की जाए तो भी, जाट वोट पार्टी के साथ रहे हैं, खासकर 2014 के बाद से. 2017 के चुनाव में मुस्लिम महिलाओं के वोट पार्टी को मिलने की बात भी सामने आई थी. इस बार के नतीजों ने जाट वोटरों को लेकर पार्टी में उपजे भय को ध्वस्त कर दिया.