भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद रावण (Chandrashekhar Azad Ravan) ने ऐलान किया है कि वह विधानसभा चुनावों (UP Assembly Elections) में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Chief Minister Yogi Adityanath) को उनके घर गोरखपुर में चुनौती देंगे.
क्या ये सिर्फ खबरों में छाने का तरीका है या रावण सच में योगी के सामने चुनौती बन सकते हैं?
बीजेपी ने ऐलान किया है कि सीएम योगी गोरखपुर सदर सीट (Gorakhpur Sadar Seat) से चुनाव लड़ेंगे. वहीं दलितों के अधिकार के लिए लड़ने वाले चंद्रशेखर आजाद ने भी अपनी दावेदारी का ऐलान कर दिया है.
सबसे पहले गोरखपुर सदर सीट (Gorakhpur Sadar Seat) पर एक नजर डालते हैं। विधानसभा क्षेत्र में 4 लाख से अधिक मतदाता हैं, जिनमें से अधिकांश ठाकुर और ब्राह्मण हैं। इसमें करीब 40,000 निषाद समुदाय के वोटों को भाजपा की झोली में जोड़ दें क्योंकि निषाद पार्टी एक सहयोगी है।
आइए सबसे पहले गोरखपुर सदर सीट पर एक नजर डालते हैं. विधानसभा क्षेत्र में 4 लाख से अधिक मतदाता हैं, जिनमें से ज्यादातर ठाकुर और ब्राह्मण हैं. इसमें निषाद समुदाय के करीब 40,000 वोटों को भी बीजेपी के खाते में ही गिनें क्योंकि निषाद पार्टी (Nishad Party) प्रदेश में एनडीए की सहयोगी है.
दलित वोटर, जिनपर आजाद का प्रभाव है, उनकी इस सीट पर बहुत असरदार संख्या नहीं है.
गोरखपुर सदर विधानसभा सीट पर 1989 से ही लगातार बीजेपी जीतती रही है. सिर्फ एक बार यह पार्टी के सहयोगी के पास गई है. 2017 में, बीजेपी के राधा मोहन दास अग्रवाल (Radha Mohan Das Agarwal) ने यहां से 60,000 से ज्यादा मतों के अंतर से जीत दर्ज की थी.
योगी आदित्यनाथ गोरखपुर से पांच बार सांसद रह चुके हैं जबकि चंद्रशेखर आजाद ने पहले कभी चुनाव नहीं लड़ा.
तो फिर क्यों रावण गोरखपुर से लड़ रहे हैं?
यह राजनीति से ज्यादा निजी मामला है. दलित युवा चेहरे आजाद ने नवंबर 2021 में ऐलान किया कि वह योगी के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे. वही योगी जिन्होंने उन्हें NSA के तहत जेल में भिजवा दिया था. योगी की वजह से ही रावण ने पिछले 5 साल का लगभग आधा वक्त जेल में बिताया है.
राजनीतिक स्तर पर, रावण ने घोषणा की है कि उनकी आजाद समाज पार्टी (Azad Samaj Party) अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के साथ साझेदारी नहीं करेगी. रिपोर्ट्स में कहा गया था कि एसपी प्रमुख अखिलेश, आजाद की पार्टी को 3 सीटें देने के लिए तैयार थे, लेकिन वह 25 पर अड़ गए.
रावण राजनीति में नौसिखिए हैं, उनका संगठन भीम आर्मी (Bhim Army) दलित युवाओं के बीच खासा लोकप्रिय है, लेकिन राज्य में उसका कोई महत्वपूर्ण संगठनात्मक या राजनीतिक आधार नहीं है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या अखिलेश के प्रस्ताव को स्वीकार न करके उन्होंने गलती की? क्या योगी के खिलाफ चुनाव लड़ना चुनावी मौसम में खबरों में बने रहने की रणनीति है?
यूपी की दलित राजनीति में मायावती की जगह लेना ही रावण की चाहत है.
मायावती ने आजाद की राजनीति और उनके इस दावे को हमेशा खारिज किया है कि वह दलितों के नेता हैं. बता दें कि यूपी की कुल आबादी में दलितों की संख्या 20% है.
बीते कुछ सालों में, आजाद अपने समाज के उग्र युवा प्रतीक के तौर पर उभरे हैं.
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