चुनाव आयोग ने 5 राज्यों में चुनाव की तारीखों की घोषणा कर दी है. 10 फरवरी को पहले चरण का मतदान शुरू हो जाएगा. तो इस बार पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सियासी हवा किस ओर बह रही है? क्या 2017 के परिणामों को दोहराया जाएगा या फिर इस बार यह इलाका एक नई इबारत लिखेगा?
साल 2017 के चुनाव में बीजेपी ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सीटों को समेट लिया था. इस इलाके में भारतीय जनता पार्टी ने 76 सीटों में से 66 सीटों पर जीत हासिल की थी. वहीं समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने मिलकर 6 सीटें हासिल की थीं. मायावती की पार्टी BSP को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में काफी मजबूत माना जाता रहा है, लेकिन साल 2017 के विधानसभा चुनाव में सिर्फ 3 सीटें ही उसके खाते में गई थीं. जाट बहुल इलाके में चौधरी चरण सिंह और उनके परिवार की भूमिका हमेशा काफी अहम रही है और वहां RLD को सिर्फ छपरौली सीट पर जीत हासिल हुई थी.
किसान आंदोलन बड़ा मुद्दा
पश्चिमी उत्तर प्रदेश यानी हरित प्रदेश क्षेत्र किसानों और किसान के मुद्दों के लिए जाना जाता है. इसलिए पिछले साल चला किसान आंदोलन का मुद्दा यहां हावी रह सकता है. पिछले साल नवंबर तक तो हालत यह थी कि इस आंदोलन से इस क्षेत्र का लगभग हर समुदाय जुड़ा हुआ था. लेकिन योगी सरकार अंदरखाने इसे जाटों का आंदोलन समझ रही थी. हालांकि अब केंद्र सरकार के द्वारा तीनों कृषि कानून को वापस ले लिया गया है.
पश्चिमी UP में कौन- कौन से मुद्दे?
- किसान खासे तौर पर नाराज नजर
- आवारा पशुओं के कारण किसानों को बेहद नुकसान
- सबसे ज्यादा फसल हानि छोटे किसानों को हो रही है
- पश्चिमी UP के तमाम जिलों में गन्ने की पैदावार
- यहां पर बने चीनी मिल इस गन्ने के महत्वपूर्ण खरीददार
- गन्ने की कीमत को लेकर किसान हमेशा चिंतित
- गन्ने का पैसा समय पर न मिलने से किसान परेशान
- बिजली की कीमत हरियाणा और पंजाब के मुकाबले ज्यादा
कानून-व्यवस्था को लेकर BJP का आक्रामक प्रचार
BJP खासतौर पर कानून-व्यवस्था को लेकर काफी आक्रामक तौर पर अपना चुनाव प्रचार कर रही है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था की हालत हमेशा चुनाव से जुड़ा हुआ एक अहम मुद्दा रहा है. योगी सरकार यह बताने में जुटी है कि अखिलेश यादव की सरकार में खुलेआम गुंडई थी और अब बीजेपी की सरकार में हालात सुधर गए हैं.
मुस्लिम वोट महत्वपूर्ण
पूरे प्रदेश में वैसे तो मुस्लिम आबादी तकरीबन 19 फीसदी है, लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुस्लिमों की तादाद 26 फीसदी हो जाती है. यानी यहां पर ध्रुवीकरण का कार्ड बीजेपी खेलना चाहती है ताकि मुस्लिमों के खिलाफ हिंदुओं को लामबंद किया जा सके. पिछले चुनाव में इसका असर भी साफ देखने को मिला था. लेकिन किसान नेता राकेश टिकैत का नारा "हर हर महादेव और अल्लाह हू अकबर" ने BJP की चिंता बढ़ा दी है.
सिर्फ धार्मिक मुद्दों के सहारे नहीं BJP
बीजेपी राम मंदिर, काशी और मथुरा जैसे धार्मिक मुद्दों के साथ-साथ विकास पर भी जोर दे रही है. इन मुद्दों पर भी काफी जोरदार तरीके से बीजेपी प्रचार करने में जुटी है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बिजली, सड़क और बाकी बुनियादी सुविधाओं की बेहतरी के मुद्दे को भी भाजपा ताकत के साथ उठा रही है. विपक्ष के पास BJP को घेरने के लिए कई सारे मुद्दे तो हैं, लेकिन बीजेपी भी उनकी काट ढूंढने में लगी हुई है.
समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव, RLD चीफ जयंत चौधरी का साथ और किसान आंदोलन का गुस्सा..इन सभी फैक्टर को अगर मिला दें तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में BJP के लिए बड़ी मुश्किलें दिख रही हैं. मायावती की बहुजन समाज पार्टी की खामोशी भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सियासत में भुचाल सा लगने लगा है. क्योंकि दलित वोट बैंक का करवट किस ओर लेगा यह बड़ा सवाल है. कांग्रेस ने भी इस बार अपना महिला कार्ड खेला है और महिला सशक्तिकरण के नाम पर इस वोट बैंक को अपनी तरफ खींचने की जुगत में लगी हुई है.