उत्तराखंड विधानसभा चुनाव (Uttarakhand Assembly Elections 2022), सत्ता पर काबिज बीजेपी और विपक्षी पार्टी कांग्रेस, दोनों के लिए एक मुश्किल परीक्षा है. दोनों ही पार्टियां चुनावी मैदान से अलग एक लड़ाई अपने घर में भी लड़ रही हैं.
मौजूदा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी (CM Pushkar Singh Dhami) और उन्हें चुनौती दे रहे हरीश रावत (Harish Rawat) कांटे की लड़ाई वाले चुनाव में उतर चुके हैं लेकिन उनके लिए चुनौती अपने दल में भी कम नहीं है.
बीजेपी के युवा मुख्यमंत्री के सामने लक्ष्य उत्तराखंड की चुनावी परंपरा को तोड़ने का है. राज्य के 21 साल के अस्तित्व में हर चुनाव के बाद इस पहाड़ी राज्य में सरकार बदली है.
रावत और कांग्रेस के लिए, यह मुकाबला करो या मरो जैसा है. 2017 के चुनावों में पार्टी का सफाया हो गया था.
2017 में, बीजेपी ने 70 में से 57 सीटों पर जीत हासिल की थी, जबकि कांग्रेस को सिर्फ 11 सीटें मिली थी.
इस बार के चुनावी सर्वे में दोनों मुख्य पार्टियों के बीच आमने-सामने की टक्कर की बात सामने आई है.
C वोटर के ताजा सर्वे के मुताबिक, बीजेपी को 31 से 37 सीटें मिलने का अनुमान है, जबकि कांग्रेस 30 से 36 सीटों पर जीत हासिल कर सकती है.
इस बेहद करीबी मुकाबले में, पार्टी के अंदर की गुटबाजी दोनों ही दलों के रास्ते में बड़ी रुकावट है.
बीजेपी की मुश्किलें पिछले साल मार्च में तब शुरू हुईं, जब त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अपनी सरकार की चौथी सालगिरह से कुछ दिन पहले मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया.
हालांकि पार्टी द्वारा त्रिवेंद्र सिंह रावत (Trivendra Singh Rawat) को हटाने के लिए कोई आधिकारिक वजह नहीं बताई गई, लेकिन इसके पीछे का कारण रावत की कार्यशैली का पार्टी के कुछ विधायकों द्वारा हो रहा विरोध था.
तीरथ सिंह रावत (Tirath Singh Rawat) ने मुख्यमंत्री के रूप में त्रिवेंद्र सिंह रावत की जगह ली, लेकिन विवादों भरे कार्यकाल के बाद चार महीने के अंदर उनका भी इस्तीफा हो गया.
इसके बाद 45 साल के पुष्कर सिंह धामी मुख्यमंत्री बने, जो मुख्यमंत्री बनने से पहले कभी मंत्री भी नहीं थे.
अब वह बीजेपी में ऐसा चेहरा हैं, जो कांग्रेस के दिग्गज नेता हरीश रावत को टक्कर दे रहे हैं.
और अगर आप ऐसा सोच रहे हैं कि एक साल में 3 मुख्यमंत्री बदलने से बीजेपी का अपना घर दुरुस्त हो जाएगा, तो जरा एक नजर उत्तराखंड बीजेपी पर डाल लीजिए
कुमाऊं से आने वाले राज्य के सबसे युवा मुख्यमंत्री को पार्टी के कुछ वर्गों और राज्य के दूसरे इलाके के लोगों, खासतौर से गढ़वाल के लोगों के कड़े विरोध का सामना करना पड़ रहा है.
पार्टी नेता और कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं, और एक दूसरे मंत्री हरक सिंह रावत भी बीजेपी से किनारा कर चुके हैं.
उथल-पुथल सिर्फ बीजेपी में है, ऐसा नहीं है. उसकी विरोधी कांग्रेस इसमें दो कदम आगे है.
सबसे पुरानी पार्टी राज्य में बड़ी अंदरूनी कलह से जूझ रही है. हरीश रावत ने खुद को मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में पेश करने की कोशिश की है और राज्य कांग्रेस में कई लोग इससे नाराज हैं.
कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव और विपक्ष के नेता व पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम सिंह, हरीश रावत का विरोध करते रहे हैं.
दिसंबर में हालात तब बिगड़ गए जब रावत ने पार्टी में समर्थन न मिलने की बात को ट्विटर पर जगजाहिर कर दिया.
वरिष्ठ नेताओं को दिल्ली तलब किया गया और एक मामले का पटापेक्ष किया गया.
पार्टी ने किसी भी मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार की घोषणा नहीं करने का भी फैसला किया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य कांग्रेस दो खेमों में बटी हुई है. - एक खेमा हरीश रावत और राज्य कांग्रेस अध्यक्ष गणेश गोदियाल का समर्थन करता है, जबकि दूसरा प्रीतम सिंह और देवेंद्र यादव का समर्थन करता है.
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