साल 2000 में गठन के बाद से, उत्तराखंड में हर चुनाव ( Uttarakhand Elections ) में एक नई सरकार चुनी गई है लेकिन इस बार बीजेपी ट्रेंड को बदलने की कोशिश कर रही है.
लेकिन ऐसे कई मुद्दे हैं जो बीजेपी के रास्ते की चुनौती बन सकते हैं
एक साल के अंदर तीन मुख्यमंत्री, बीजेपी सरकार द्वारा हाल में भंग किया गया चार धाम बोर्ड, जिसे लेकर पुजारियों में गुस्सा कायम है, तराई क्षेत्रों में किसानों का गुस्सा, 2021 कुंभ मेले का कुप्रबंधन और नकली कोविड-टेस्ट घोटाला....
आइए इन सभी मुद्दों पर थोड़ा विस्तार से नजर डालते हैं
एक साल में तीन मुख्यमंत्री बदलने को लेकर विपक्ष लगातार बीजेपी पर हमलावर रहा है.
त्रिवेंद्र सिंह रावत ( Trivendra Singh Rawat ) की कार्यशैली का विरोध पार्टी के विधायकों का एक गुट कर रहा था, इसकी वजह से अपनी सरकार की चौथी सालगिरह से कुछ दिन पहले उन्होंने CM पद से इस्तीफा दे दिया.
तीरथ सिंह रावत ( Tirath Singh Rawat ) ने मुख्यमंत्री के रूप में त्रिवेंद्र सिंह रावत की जगह ली लेकिन चार महीने के अंदर उन्होंने भी इस्तीफा दे दिया.
इसके बाद बीजेपी, 45 वर्षीय पुष्कर सिंह धामी ( Pushkar Singh Dhami ) को लेकर आई, जो मुख्यमंत्री बनने से पहले कभी मंत्री भी नहीं थे.
कांग्रेस ने मुख्यमंत्रियों के बार-बार बदलाव को बड़ा मुद्दा बनाया है. पार्टी का एक चुनावी नारा भी है- तीन तिगाड़ा, काम बिगाड़ा, उत्तराखंड में नहीं आएगी बीजेपी दोबारा.
कोविड प्रबंधन और कुंभ
कोविड -19 की दूसरी लहर के चरम पर कुंभ मेला आयोजित करने के लिए उत्तराखंड सरकार की भारी आलोचना हुई.
लगभग 90 लाख लोगों ने हरिद्वार में पवित्र स्नान किया, उनमें से कम से कम 60 लाख लोगों ने अप्रैल में तब स्नान किया जब महामारी की विनाशकारी दूसरी लहर चरम पर थी.
कई उत्तर भारतीय राज्यों में कुंभ तीर्थयात्रियों में संक्रमण का पता चला था.
उत्तराखंड हाई कोर्ट ने इतने बड़े पैमाने पर मेले की अनुमति देने के लिए सरकार की आलोचना की.
और फिर सामने आया बड़े पैमाने पर किया जा रहा नकली कोविड परीक्षण का घोटाला, जहां तीर्थयात्रियों को मेले में शामिल होने के लिए नकली कोविड निगेटिव रिपोर्ट दी गई थी.
उत्तराखंड चार धाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड ( Uttarakhand Char Dham Devasthanam Management Board ) का गठन - इसके दायरे में मंदिरों और तीर्थस्थलों को रेग्युलेट करने के लिए किया गया था. बीजेपी सरकार के इस कदम का पुजारी समाज ने बड़े पैमाने पर विरोध किया. पुजारियों ने नवंबर में पीएम मोदी की केदारनाथ यात्रा को बाधित करने की भी धमकी दी. विपक्षी दल कांग्रेस ने भी बोर्ड को लेकर सरकार पर हमला बोला. गुस्से और संभावित राजनीतिक नुकसान को भांपते हुए पुष्कर सिंह धामी सरकार ने चुनाव से कुछ महीने पहले बोर्ड को भंग कर दिया.
हाल ही में निरस्त किए गए कृषि कानूनों ( Farmers Law in India ) के खिलाफ साल भर से चल रहे किसान आंदोलन का असर उत्तराखंड में बीजेपी सरकार पर भी पड़ सकता है. पहाड़ी राज्य की 9 से 10 सीटों पर सिख मतदाताओं की असरदार संख्या है, खासकर तराई इलाकों में, जहां बीजेपी को मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है. कांग्रेस कृषि कानूनों के निरस्त होने का श्रेय लेने की पूरी कोशिश करेगी.
देखें- Uttarakhand Elections 2022: BJP के सामने यूपी से भी बड़ी चुनौती!