भारत और कनाडा के मध्य तनाव अपने चरम पर है, आइए इस रिपोर्ट में हम समझते हैं भारत और कनाडा के रिश्तों में तल्खी के अहम बिंदु.
खालिस्तानी शब्द का अर्थ क्या है?
खालिस्तान का मतलब है खालसाओं का देश.पंजाब में लंबे समय से पंजाब के एक हिस्से को खालिस्तान घोषित करने के मांग उठती रहती है.
1969 में पंजाब में विधानसभा चुनाव हुए. इस चुनाव में टांडा विधानसभा सीट से रिपब्लिक पार्टी ऑफ इंडिया के उम्मीदवार जगजीत सिंह चौहान भी खड़े हुए, लेकिन हार गए. चुनाव हारने के बाद जगजीत सिंह चौहान ब्रिटेन चले गए और वहां खालिस्तान आंदोलन की शुरुआत की. इसके बाद साल इस आंदोलन में जरनैल सिंह भिंडरावाले की एंट्री हुई, 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार शुरू किया गया.उधर भारत में 90 का दशक ख़त्म होते होते खालिस्तान आंदोलन ठंडा पड़ने लगा था. इस मामले में पंजाब पुलिस का बड़ा योगदान था.
कनाडा में पंजाबियों का जाना कब शुरू हुआ और इसकी क्या वजह थी?
60 के दशक में शुरू है जब वहां लिबरल पार्टी की सरकार आयी और उसको सस्ते वर्क फाॅर्स की जरुरत पड़ी. मौजूदा वक़्त में कनाडा में रहने वाले भारतीयों की संख्या लगभग 18 लाख के आसपास हैं. इनमें सबसे बड़ा ग्रुप है सिखों का जो 7 लाख, 80 हज़ार के आसपास हैं. सबसे ज्यादा सिख ओंटेरियो के ब्रैम्पटन शहर में रहते हैं. पंजाब में हर युवा बचपन से विदेश जाने का सपना देखते हुए बड़ा होता है और जिस देश में सबसे ज़्यादा लोग जाना चाहते हैं वो है कनाडा, इसकी वजह ये भी वहां उनका कोई न रिश्तेदार या दोस्त सेटल होता है.
कनाडा की सरकार में सिखों का रोल क्या है और क्या इनका ट्रूडो सरकार पर कोई दबाव है?
कनाडा की संसद में 338 सीट हैं. साल 2019 में हुए चुनाव में यहां 18 सिख सांसद चुने गए थे. एक समय था जब जस्टिन ट्रूडो सरकार की कैबिनेट में 4 सिख शामिल थे. सिख राजनीति का एक बड़ा पहलू गुरुद्वारे हैं. कनाडा में 200 के आसपास गुरुद्वारे हैं. जिनकी प्रबंधक कमेटी का चुनाव होता है. और जिनमें से क़ई पर ख़ालिस्तानी चरम पंथियों का दबदबा है. चूंकि सिख एक ब्लॉक के रूप में वोट कर सकते हैं. इसलिए गुरुद्वारों की पॉलिटिक्स का असर राष्ट्रीय स्तर पर भी दिखाई देता है.
इसके अलावा आपको बता दें कि साल 2015 में कनाडा में ट्रुडो की सरकार आने के बाद खालिस्तानियों के हौंसले और बुलंद हो गए. उनकी पार्टी को खालिस्तानी समर्थक समूह ने समर्थन दिया, 2019 में जब लिबरल पार्टी 19 सीटों से बहुमत में पीछे थी. तब खालिस्तान समर्थंक जगमीत सिंह की पार्टी ने उन्हें समर्थन दिया
कनाडा की राजनीतिक पार्टियों को वोट का डर सता रहा था. ये वही डर है जो जस्टिन ट्रूडो को सालों से सता रहा है. इसलिए कभी वो भारत आकर एक घोषित ख़ालिस्तानी आतंकी को डिनर पर न्यौता देते हैं. तो कभी ख़ालिस्तानी पार्टियों से गठबंधन करते हैं. मार्च 2022 के बाद जस्टिन ट्रूडो की सरकार, New Democratic Party नाम की एक पार्टी के समर्थन से चल रही है. जिसके लीडर हैं. जगमीत सिंह. जगमीत की पार्टी खालिस्तान अलगाववाद को खुला समर्थन देती है. और 2022 में कनाडा में हुए रेफेरेंडम को भी NDP ने समर्थन दिया था. ट्रूडो के सरकार में बने रहने के लिए उन्हें जगमीत सिंह की पार्टी के ज़रूरत है.
अब ताज़ा विवाद क्या है?
भारत और कनाडा के बीच ताजा विवाद की शुरुआत 9 और 10 सितंबर को नई दिल्ली में हुए G20 शिखर सम्मेलन के दौरान हुई. भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने G20 समिट में भाग लेने पहुंचे कनाडाई पीएम जस्टिन ट्रूडो के सामने उनके देश में बढ़ रही खालिस्तानी गतिविधियों का मामला उठाया. मोदी ने कनाडाई सरकार से उसकी धरती पर चल रही अलगाववादी गतिविधियां रोकने के लिए जरूरी कदम उठाने को कहा.
इस पर कनाडा के PM जस्टिन ट्रूडो ने मोदी से दो-टूक कह दिया कि भारत सरकार कनाडा के घरेलू मामलों और राजनीति में दखल ना दे. यही नहीं, ट्रूडो ने खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर को अपने देश का नागरिक बताते हुए मोदी के सामने उसकी हत्या का मामला भी उठाया. हालांकि भारत सरकार ने तब ट्रूडो की बात को खास अहमियत नहीं दी.
G20 शिखर सम्मेलन के बाद कनाडा पहुंचते ही जस्टिन ट्रूडो ने वहां की संसद में बयान दिया कि हरदीप सिंह निज्जर कनाडा का नागरिक था और उसकी हत्या भारत सरकार ने करवाई है. इसके साथ ही कनाडाई सरकार ने एक भारतीय डिप्लोमैट को भी अपने देश से निकाल दिया. भारत सरकार ने कनाडा के इस कदम का कड़ा संज्ञान लेते हुए न केवल ट्रूडो के सारे आरोपों को खारिज किया बल्कि नई दिल्ली में मौजूद कनाडा के एक डिप्लोमैट को भी पांच दिन में देश छोड़ने के लिए कह दिया.